नई दिल्ली, 07 अक्टूबर, (शोभना जैन/वीएनआई) पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियॉ जारी रखने से भारत द्वारा न्यूयॉर्क मे दोनो देशों के विदेश मंत्रियों के बीच न्यूयॉर्क मे निर्धारित वार्ता रद्द किये जाने के बाद दोनो देशों के बीच शीत युद्ध और तेज हो गया है और दोनो के बीच शांति वार्ता की संभावनाये फिर से धूमिल हो गई है.अब जब कि भारत अगले वर्ष होने वाले आम चुनाव के लिए "इलेक्शन मोड" मे आ रहा है और पाकिस्तान की नई इमरान सरकार भी भारतके खिलाफ आतंकी गतिविधियॉ जारी रखे हुए है ऐसे मे कम से कम कुछ समय तक तो किसी प्रकार की शांति वार्ता की उम्मी्द नजर नही आती है. वैसे भी पाकिस्तान के प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री स्तर की इसप्रस्तावित वार्ता के रद्द होने पर जिस तरह की तल्ख प्रतिक्रिया जाहिर की और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने जिस तरह भारत पर आरोप लगाये, संयुक्त राष्ट्र महासभा मे उस की बयान बाजी से तल्खियॉ और बढीऔर दोनो देशों के बीच ३६ का ऑकड़ा बना रहा.
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने महासभा की बैठक में बातचीत के ऑफर पर साफ तौर पर कहा कि भारत हमेशा बातचीत के जटिल से जटिल मुद्दों को सुलझाने का पैरोकार रहा है,भारत का सदैव से ही मानना है किबातचीत सबसे जटिल विवादों को हल करने का एकमात्र तर्कसंगत माध्यम है लेकिन पाकिस्तान हमेशा धोखा देता है. पाक के साथ वार्ताओं के दौर चले हैं, लेकिन हर बार पाकिस्तान की आतंकी हरकतों के चलते बातचीतहोते होते रूक गई.उन्होने कहा 'हत्यारों को महिमामंडित' करने वाले देश के साथ 'आतंकी रक्तपात' के बीच कैसे वार्ता की जा सकती है.
दरअसल भारत सरकार का यही रूख रहा है कि आतंक और वार्ता साथ साथ नही चल सकती.इस के बावजूद भारत इस मुलाकात के लिए रजामंद हुआ लेकिन पाकिस्तान की तरफ से वही ढाक के तीन ्पात रहे.वह भारतके खिलाफ आतंकी गतिविधियॉ, शत्रुता पूर्ण हरकते जारी रखे हुए है, लगातार संघर्ष विराम का न/न केवल उल्लंघन कर रहा है. बल्कि इन घटनाओं मे पिछले कुछ समय से काफी वृद्धि हुई है. कश्मीर में आतंकवाद कोप्रश्रय देना जारी रखे हुए है, हाफिज सईद जैसे आतंकी को लगातार प्रश्रय दे रहा है.ऐसे मे फिर वही सवाल...आखिर इस तरह की" मुलाकात" के मायने क्या है.
न्यूयॉर्क मे दोनो देशो के विदेश मंत्रियो के बीच "मुलाकात" के प्रस्ताव पर रजामंद होने पर पर जहा एक बड़ा वर्ग सरकार के इस मत से सहमत है कि जब तक पाक आतंक को रोकने के लिये कदम नही उठाता है औरतोपो की दनदनाहट और गोली बारी की धॉय धॉय मे शांति वार्ता बेमायने है.ऐसे मे फिर वही सवाल...आखिर इस तरह की" मुलाकात" के मायने क्या है. जरूरी है कि पाकिस्तान पहले सीमा पार आतंकी गतिविधियॉ रोकेतभी उस के साथ कोई बातचीत की जाये लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जिन का मानना रहा कि बातचीत का रास्ता हमेशा खुले रखे जाना चाहिये. बातचीत के रास्ते बंद होने से समस्याओं के हल का रास्ता बंद हो जाता है.एक वरिष्ठ पूर्व राजनयिक के अनुसार एक खिड़की और झरोखा तो कम से कम खुले रखना ही चाहिये लेकिन इस के विपरीत पाकिस्तानी मामलों के जानकार एक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक के अनुसार जिस तरह से कमजोर इमरान खान सरकार पाक सेना की बैशाखियो पर चल रही है उस से तो अन्ततः द्विपक्षीय संबंधो के और तनावपूर्ण होने का ही अंदेशा है ऐसे मे पाकिस्तान के साथ अगर कोई वार्ता होती भी है तो उस का हश्रवही रहेगा जो हाल की पिछली कुछ वार्ताओं का रहा. दिसंबर 2015 में श्रीमति सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान मे दिंसबर 2015 मे हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन के बाद सात वर्ष बाद फिर से सी बी डी " व्यापक द्विपक्षीयवार्ता" शुरू करने की बात कही और अगले ही महीने यानि २ जनवरी 2016 को पठान कोट आतंकी हमला हो गया और वार्ता फिर रूक गई.
दरअसल यहा यह बात भी खास मायने रखती हैं कि इमरान खान द्वारा संबंध सामान्य बनाने की जिम्मेवारी भारत पर डाल देना मे निश्चय ही अंतरराष्ट्रीय दुनिया के लिये दिखावा भर है.यह सिर्फ पाकिस्तान की्पैतरेबाजी हैं. पाकिस्तान द्वारा पीएम मोदी ने इमरान खान को लिखी चिट्ठी में कहा है कि हम पड़ोसी के साथ अच्छे संबंधों के पक्षधर हैं. हमें दोनों देशों के बीच सृजनात्मक तथा सार्थक संबंधों की दिशा में देखनाचाहिए्लेकिन सच यही है कि इमरान साहिब एक मजबूत बहुमत से सरकार बना कर नही आये है उन की सरकार का भविष्य पाकिस्तानी सेना और पाक गुप्तचर एजेंसी आई एस आई की बैसाखियों के भरोसे टिका हैं ऐसेहालात मे अनुभव तो यही बताता है कि निश्चय ही पाकिस्तानी सेना की भारत विरोधी नीति ही अपनाई जायेगी और वे आतंकी गतिविधियो को प्रश्र्य देना जारी रखेंगे ताकि भारत को संबंध सामान्य बनाने की पहल केजरिये राजनयिक सफलता नही मिल सके.
पाकिस्तान के साथ फिलहाल समग्र द्विपक्षीय वार्ता तो फिलहाल संभव नही लगती है क्योंकि भारत भी अब आम चुनाव के मोड मे आ रहा है ऐसे में समग्र वार्ता फिलहाल भले ही नही हो अलबत्ता पाकिस्तान सीमा पारसे आतंकी गतिविधियॉ, जिहादी गतिविधियों पर अंकुश लगा कर, संघर्ष विराम का सम्मान कर कश्मीर में आतंकवाद को प्रश्रय नही दे कर और हाफिज सईद जैसे आतंकी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही कर दोनो देशो केबीच रिश्तों का बेहतर माहौल तो ही बना सकता है. ऐसे मे ट्रेक टू डिप्लोमेसी का रास्ता भी खुल सकता है साथ ही विचाराधीन मुद्दो पर बातचीत और व्यापार वार्ताये तो हो सकेगी. साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
No comments found. Be a first comment here!