नई दिल्ली, 31 जुलाई, (शोभना जैन/वीएनआई) अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडन के गत जनवरी में सत्ता संभालने के बाद वहा के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन की इस सप्ताह के प्रारंभ में हुई पहली अहम भारत यात्रा पर दुनिया भर के नजरें वर्तमान संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर दोनों देशों की अहम मंत्रणा के साथ साथ इस बात पर भी लगी थी कि दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों की आगें की गति को कैसा स्वरूप मिल सकता हैं.वैसे भी ब्लिंकेन की यह भारत यात्रा ऐसे वक्त हुयी जबकि अफगानिस्तान में तालिबान के बढतें वर्चस्व के भयावह खतरों के अंदेशों को ले कर दुनिया भर में व्याप्त चिंता के बीच एक तालिबानी शिष्टमंडल चीनी शीर्ष नेताओं से मंत्रणा करने बीजिंग में था.ब्लिंकेन और विदेश मंत्री डॉ जयशंकर के बीच हुई अहम वार्ता में ज्वलंत अफगान मुद्दें सहित क्वाड, हिंद प्रशांत क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग बढानें, कोरोना महामारी से निबटनें, मध्य पूर्व संबंधी मुद्दों के साथ ही द्विपक्षीय हितों पर चर्चा हुई. बातचीत से जाहिर होता हैं कि एक तरफ जहा दोनों के बीच उपरोक्त मुद्दों सहित अनेक मुद्दों पर सहमति बढानें और सामरिक साझीदारी को बढानें पर सहमति रही वहीं इन के साथ ही भारत में मानवाधिकारों के कथित हनन और प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने जैसे असहमति के मुद्दों या शिकायतों पर अमरीकी मंत्री की नसीहत भारत को मिली लेकिन डॉ जयशंकर ने दुनिया के दो बड़े लोकतंत्रों के अपनी जिम्मेवारियॉ के प्रति सतर्क रहने की बात करते हुयें दो टूक जबाव पर कहा कि मानवाधिकारों की बात सभी पर एकसमान रूप से लागू होती है.जाहिर हैं कि दोनों पक्षों के बीच ऐसे असहमति के मुद्दों को आपसी संबंधों में रोड़ा बननें देनें की बजाय सहमति वाले बिंदुओं पर आगें मिल जुल कर काम करनें की प्रतिबद्धता लगीं.
अहम बात यह हैं कि चीन को लेकर दोनों देशों की साझा चिंतायें हैं. कोविड से निबटनें और "क्वाड" गठबंधन को ले कर साझीदारी और मजबूत हो रही हैं, सामरिक साझीदारी बढ रही हैं ,वहीं भारत में लोकतांत्रिक मुल्यों, मानवाधिकारों के हनन की अमरीका जब तब हनन की शिकायत करता रहा हैं.यहा यह बात अहम हैं कि ब्लिंकेन की भारत यात्रा से पूर्व ही ऐसी चर्चायें थी कि अमरीकी मंत्री भारत यात्रा के दौरान मानवाधिकार संबंधी मुद्दें पर भारतीय नेतृत्व से चर्चा करेंगे. भारत के विदेश मंत्रालय ने तब अपनी प्रतिक्रिया में कहा भी कि भारत को अपनी लोकतांत्रिक पंरपराओं पर बहुत गर्व हैं, लेकिन वह इन मुद्दों पर चर्चाओं से पीछें भागने वाला नही हैं. बहरहाल ,ब्लिंकेन ने भारत दौरे की शुरुआत में ही समाजिक कार्यकर्ताओं से मानवाधिकारों के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं से मुलाकात की और उनकी चिंताएं सुनीं और भारत को संकेतों में नसीहत भी डाली. उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका कानून के राज और और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे साझे मूल्यों से जुड़े हैं.ब्लिंकेन ने कहा, " दुनिया के सभी लोकतंत्र के सम्मुख बड़ी चुनौतियॉ हैं. "जब दुनियाभर में लोकतंत्र और अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्रता के खिलाफ खतरे बढ़ रहे हैं, ऐसे में यह जरूरी है कि भारत और अमेरिका, बतौर अगुआ इन आदर्शों के समर्थन में साथ खड़े रहें.”ये दोनों ही लोकतंत्र अभी सीख रहे हैं. जैसा कि मैंने पहले कहा, कई बार यह प्रक्रिया दर्दनाक होती है, लेकिन लोकतंत्र की ताकत इसे समाहित करने में ही है.”
इशारों में ही ब्लिंकेन की इस नसीहत पर कि भारतीय लोकतंत्र की ताकत उसके आजाद नागरिक हैं.ब्लिंकेन ने कहा कि लोकतंत्र का एक वादा यह है कि हमेशा एक बेहतर, और जैसा कि अमेरिका का संस्थापकों ने कहा था, ज्यादा संपूर्ण संघ के लिए प्रयासरत रहना.”इसी पर डॉ. जयशंकर ने जवाब में कहा, " ज्यादा संपूर्ण संघ बनाने का जिम्मा भारत पर भी उतना ही लागू होता है जितना अमेरिका पर.भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, "स्वतंत्रताएं जरूरी हैं, हम उनका सम्मान करते हैं लेकिन लेकिन आजादी की तुलना खराब प्रशासन से कमजोरर प्रशासन से नहीं की जानी चाहिए. ये दोनों पूरी तरह अलग अलग बातें हैं.” बहरहाल समाजिक कार्यकर्ताओं से मुलाकात का एक अहम पहलू यह रहा कि ब्लिंकेन ने दलाई लामा के प्रतिनिधि गेशी दोरजी से मुलाकात की जिस से चीन बुरी तरह से बौखला गया. अमरीका भी दलाई लामा क समर्थन करता हैं.यह मुलाकात ऐसे दौर में हुई हैं जब कि चीन और अमरीका के बीच संबंध बेहद तनाव पूर्ण दौर में है और इधर भारत चीन द्वारा उसके भू क्षेत्र के अतिक्रमण और सीमा पर निरंतर हिंसा से निबट रहा हैं.जानकार मानते हैं कि ये अमेरिका और भारत का चीन को संकेत है कि आने वाले समय में तिब्बत का मुद्दा उठाया जा सकता है. दरसल ब्लिंकेन का दलाई लामा के प्रतिनिधि से मिलना और प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का हाल ही में दलाई लामा के जन्म दिन पर उन्हें सार्वजनिक तौर बधाई संदेश देना भारत और अमेरिका के तिब्बत के मुद्दों को उठाने का संकेत है." और ये सब ऐसे समय हुआ है जब हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तिब्बत का दौरा किया है और अपनी आक्रामक नीतियों का प्रदर्शन किया है.
हालांकि समझा जाता हैं कि ब्लिंकेन की भारत यात्रा का मकसद भारत, अमरीका, आस्ट्रेलिया और जापान के गठबंधन "क़्वाड" के इस वर्ष के प्रस्तावित शिखर बैठक की तैयारियॉ थी लेकिन मुख्य तौर पर दोनों पक्षों के बीच अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा के ज्वलंत मुद्दे पर चर्चा हुई, ्कुल मिला कर दोनों देशों के बीच अफगानिस्तान को ले कर कमोबेश लगभग एक सी राय हैं. जिस तरह से अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा बढता जा रहा है,अराजकता बढ रही हैं. लगभग बीस वर्ष तक अल कयदा का वह से सफाया करने के ईरादें से आयीं अमरीका नीत नाटों फौजें अब वहा से तेजी से हट रही हैं. समझा जाता हैं कि अमेरिकी सैनिक अगस्त के अंत तक पूरी तरह अफ़ग़ानिस्तान को छोड़ देंगे.लेकिन भारत, अमरीका सहित अनेक देशों की चिंता हैं कि 1990 के दशक की तरह अफ़ग़ानिस्तान आतंकवाद और चरमपंथ का गढ़ बन जाए. भारत की बड़ी चिंता यही है कि पाकिस्तान की सरपरस्तीं में फला फूला अफ़ग़ानिस्तान फिर से आतंकवाद का गढ़ ना बन जाए. ऐसे में अब जब कि एक "वेक्यूम" की सी स्थति बन गयी है.
भारत अफ़ग़ानिस्तान में लोकतंत्र की स्थिरता और मज़बूती पर ज़ोर देता रहा हैं और उस का साफ कहना हैं कि अफगानिस्तान में अफगान नीत और अफ्गान नेतृत्व वाली सरकार हो. अमेरिकी विदेश मंत्री के साथ बैठक के बाद जयशंकर ने कहा कि भारत और अमेरिका दोनों ही ये मानते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान के संकट का सैन्य समाधान नहीं हो सकता है. जाहिर है मौजूदा स्थति को ले कर सभी कि चिंता हैं और जैसा कहा भी जा रहा हैं कि अफ़ग़ानिस्तान कहीं एसा देश ना बन कर रह जायें जो अपने ही नागरिकों पर अत्याचार करे वो एक तिरस्कृत राष्ट्र बन जाएगा.ब्लिंकेन ने कहा कि भारत क्षेत्र में अमेरिका का भरोसेमंद सहयोगी है और भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता और विकास लाने में अहम भूमिका निभाई है और भारत आगे भी ये भूमिका निभाता रहेगा.नए सुरक्षा हालात में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में तेज़ी से बढ़त हासिल की है और उनका दावा है कि उन्होंने देश के आधे से अधिक हिस्से को नियंत्रण में ले लिया है. माना जा रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान की अधिकतर सीमा चौकियाँ और दूसरे देशों से होने वाला व्यापार भी अब तालिबान के नियंत्रण में है.इस तमाम एंगल में चीन फेक्टर समझना होगा.ब्लिंकेन और जयशंकर की मुलाक़ात के समय ही तालिबान के नेता मुल्ला बरादर ने चीन के दौरें पर हैं. और उन्होंने विदेश मंत्री वांग यी से मुलाक़ात की है. अफ़ग़ानिस्तान में चीन का कोई मौजूदा निवेश तो अधिक नहीं है लेकिन वह अफग़ानिस्तान में अपने विसतार वादी एजेंडें और अपने समरिक हितों के चलतें वहा अपने पैर जमानें की जुगत में है और आर्थिक हितों की वजह से खनन उद्योग में निवेश करने, बीआरआई को बढ़ाकर अफगानिस्तान के जरियें इस पूरें क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाना चाहता हिं.दरअसल चीन के लिए अफ़ग़ानिस्तान सिर्फ़ इसलिए भी अहम है क्योंकि वह सुनिश्चित करना चाहता है कि शिनजियांग की अशांत स्थति पर अफ़ग़ानिस्तान के हालात का असर न हो,जहा कि उस ने वीगर मुस्लिम संमुदाय के खिलाफ दमनचक्र चलाता रहा हैं. इसलिए भी वह तालिबान से बात कर रहा है. वह तालिबान से ये भरोसा चाहता है कि अफ़ग़ानिस्तान का असर शिनजियांग पर नहीं होगा'
मौजूदा हालात के हलस्वरूप ये देश तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत के जरिए भविष्य का रास्ता निकालने पर भी जोर दे रहे हैं. अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर कई देश रणनीतियां बना रहे हैं. इनमें इसके साथ बड़ी सीमा साझा करने वाले पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान के अलावा भारत, चीन, रूस और अमेरिका जैसे देश भी हैं. और भारत के लिए तो अफगानिस्तान का भविष्य बहुत मायने रखता है.इसी लियें अब भारत तालीबान से सीधें संपर्क भा बना रहा हैं ताकि अफगानिस्तान में स्थिर और शांति प्रिय सरकार बनें जिस से क्षेत्र मे शांति और सुरक्षा बनी रह सकें . भारत की कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ने से रोकने की कोशिश, जिसे बढ़ावा देने में पाकिस्तान की सरपरस्ती में तालिबान की भा भूमिका रही है.,जिनके चलते भारत के हितों को नुकसान होने की गुंजाइश है. अफगानिस्तान में पिछले दशकों में भारत की ओर से किए विकास कार्यों को बचाना. भारत ने अफगानिस्तान में कई विकास कार्यों सहित वहां की नई संसद के निर्माण में भी मदद की है.
बहरहाल,ब्लिंकेन ने भारत में कहा कि दुनिया में कुछ ही ऐसे संबंध हैं जो कि हम दोनों देशों के संबंधों से अधिक महत्वपूर्ण मानें जा सकते है.विदेश मंत्री जयशंकर ने भी कहा कि दोनों देशों के संबंध इस स्तर पर पहुंचे हुयें हैं कि हम बड़ें मुद्दों का मिल जुल कर निबट सकते हैं.ऐसे में उम्मीद की जानी चाहियें कि "असहमतियों" को रिश्तों को और आगें बढानें में अड़चन बनने देने की बजाय उन से बचते हुयें सहमति वाले बिंदुओं को मजबूत किया जायें और आपसी सहयोग के नयें क्षेत्रों की संभावनायें तलाशी जायें.समाप्त
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