मालदीव में संभलकर चले भारत

By Shobhna Jain | Posted on 10th Feb 2018 | VNI स्पेशल
altimg

नई दिल्ली, 10 फरवरी, (शोभना जैन / वीएनआई)  मालदीव का राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है. देश मे जारी भारी उथल पुथल के बीच बौखलाये, राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने पंद्रह दिनों के लिए देश मे आपातकाल की घोषणा कर दी, जिस के  मौजूदा हालात के मद्देनजर पंद्रह दिन के बाद और भी बढाये जाने का अंदेशा है।आपातकाल की घोषणा के साथ ही वहा सारे नागरिक अधिकार निलंबित कर दिए गए हैं.श्री  यामीन ने पूर्व राष्ट्रपति  तथा अपने चचेरे भाई मौमून अब्दुल गयूम को गिरफ्तार कर लिया है। एक अन्य पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद पहले से ही निर्वासन झेल रहे हैं। विपक्ष के लगभग सारे नेता  जेल में हैं.लेकिन मालदीव के सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद कि जिन 12 सांसदों को सत्तारुढ़ दल से इस्तीफा देने के कारण यामीन सरकार ने अपदस्थ कर दिया था, उन्हें फिर से बहाल किये जाने के बाद संकट और भी घना हो गया है,इस फैसले के बाद प्रधान न्यायाधीश अब्दुल्ला सईद को भी सेना न्यायलाय से घसीट कर ले गई और गिरफ्तार कर ्लिया जाहिर है न्यायालय के फैसले से सॉसदो के बहाल हो जाने से यामीन की सरकार अल्पमत में चली जाएगी। यही नही राष्ट्रपति यामीन के खिलाफ महाभियोग भी सफल हो सकता है।

यामीन के एक के बाद इन दमनकारी कदमो पर भारत सहित  संयुक्त राष्ट्र सहित अमरीका, इंगलेंड सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय ्ने सर्वोच्च न्यायालय का फैसला न मानने और आपातकाल थोपे जाने पर तीखी प्रतिक्रिया जताई है.इसी उथल पुथल के बीच देश मे लोकतंत्र बहाल करने के लिये बिना कोई कदम उठाये या यूं कहे कि अपना शिकंजा और कसते हुए अब यामीन ने भारत सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन जुटाने का नया पैतरा चलते हुए आनन फानन मे अपने विशेष प्रतिनिधियो को भारत, चीन, पाकिस्तान और सउदी अरब भेजने का फैसला किया है.भारत ने  स्थति मे कोई बदलाव लाये बिना इस तरह की पैतरेबाजी से दूरी बना ली है और औपचारिक रूप से कह दिया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विदेश मंत्री की व्यस्तता की वजह से मुलाकाते संभव नही है. लेकिन साफ है कि भारत ने कड़ा संकेत दे दिया है कि वहा लोकतंत्र के दमन से बहुत नाराज है, दूसरी और चीन पाकिस्तान जैसी ताकते माल्दीव के नजदीक तो है ही साथ ही ्वहा लोकतंत्र कितना कमजोर है यह जग जाहिर है, वहा प्रतिनिधि भेजे जाने का पैतरा आसानी से समझा जा सकता है.

अपने मजबूत लोकतंत्र तथा  क्षेत्र की शांति,स्थिरता और सुरक्षा के लिये अपने आस पड़ोस मे भी लोकतांत्रिक सरकारो की आवाज उठाने के लिये  जाना जाने वाले भारत ्स्थिति पर सावधानी से नजर रखते हुए ्यामीन को लोकतंत्र बहाली के लिये कड़ा संदेश भी दे रहा है. हालांकि एक पक्ष यह भी दिया जा रहा है कि माल्दीव मे लोकतांत्रिक सरकार बचाने के लिये भारत को १९८८ की तरह वहा लोकतंत्र की रक्षा के लिए भारत को खुलकर सामने आना चाहिए.पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद और उन की एमडीपी समेत मालदीव का बड़ा वर्ग खुले तौर पर कह रहा  है कि भारत इस मामले में सैन्य हस्तक्षेप करे और यामीन के खिलाफ कार्रवाई में सहयोग करे।दूसरी तरफ अपने खास यामीन की सरकार को बचाने के लिये चीन अप्रत्यक्ष रूप से अपने कार्ड खेल रहा है लेकिन साथ ही यामीन सरकार को बचाने के लिये 'चेतावनी' दे रहा है कि माल्दीव  मे किसी प्रकार का सैन्य हस्तक्षेप नही होना चाहिये.यह तय है कि वह वहा भारत को सैन्य ्हस्तक्षेप नही करने के लिये आगाह कर रहा है.साफ जाहिर है कि भारत से घोर नाराजगी  और चीन के साथ गलबहिया कर रहे यामीन के जाने से चीन को तगड़ा  धक्का  लगेगा, इसी लिये ्बौखलाया चीन इस तरह की चेतावनी दे रहा है. चीन के माल्दीव से गहरे ्सामरिक हित जुड़े है और  अपने विस्तारवादी मंसूबे के लिये चीन माल्दीव का जम कर इस्तेमाल कर रहा है.भारत ने पहले भी वहा के हालात पर  सधी सधाये  लेकिन तीखे तेवर वाला बयान जारी किया, जब कि आम तौर  भारत के कूटनीति  बयान खासे संयमित भाषा मे वाले होते है. माल्दीव उच्चतम न्यायलय के फैसले पर टिप्पणी करते हुए भारत ने दो टूक शब्दो में कहा कि लोकतंत्र की भावना और कानून के राज के सम्मत, सरकार के सभी अंगो के लिये जरूरी है कि वे उच्चतम न्यायालय के  आदेशो का पालन करे. जाहिर है चीन  भारत के रूख पर कड़ी निगाह रखे हुए है.

 
भारत के साथ इंडिया फर्स्ट का जाप करने , और भारत के साथ सबसे पहले मुक्त व्यापार समझौता करने वाले माल्दीव ने रातो रात विपक्ष को बिना विश्वास लिये बिना  चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया, उसे एक पूरा द्वीप सामरिक उद्देश्यों के लिए दे दिया और मालदीव के सभी  भारत समर्थको  को भारतीय राजदूत से मिलने-जुलने पर रोक-टोक लगा दी थी।  चीन के साथ बढती नजदीकियो  और भारत के साथ दिखावटी सुलह सफाई करने मालदीव के विदेश मंत्री अभी कुछ दिन पहले भले ही भारत  आए थे , लेकिन मौजूदा घटनाक्रम ने स्थति साफ कर दी है, माल्दीव की मंशा क्या है. निश्चय ही मालदीव की राजनीतिक अस्थिरता का हिंदमहासागर क्षेत्र और भारत पर  प्रभाव  पड़ता है लेकिन  इस समय  भारत  के लिये वो स्थतियॉ नही है जब कि भारत के लोकतांत्रिक छवि वाले पड़ोसी की वजह से ही तत्कालीन राष्ट्रपति गयूम ने भारत सरकार से अपनी लोकतांत्रिक सरकार बचाने के लिये मदद मॉगी और 3 नवंबर 1988 को निर्वाचित गयूम सरकार का तख्ता पलट को बचाने के लिये तत्कालीन राजीव  गॉ्धी ने 'ऑपरेशन केक्टस' के जरिये अपने 1700 सैनिक वहा  भेजे थे.लेकिन मजबूत लोकतंत्र की छवि उसे मौजूदा दौर मे  संभल कर चलने की जरूरत के साथ ही लोकतंत्र की बहाली के लिये कड़े संदेश देने की भी है .दरअसल किसी प्रकार के हस्तक्षेप की स्थति मे  भारत से खार खाये और चीन से गलबहिया डाले यामीन खुद को विक्टिम बताये जाने की चीख पुकार करने लगेगे.दक्षेस का सदस्य देश होने के नाते भी मालदीव के साथ भारत को इस चुनौतीपूर्ण मसले से सावधनी से निपटना होगा।पाकिस्तान में  दक्षेस सम्मेलन का भारत द्वारा बहिष्कार करने के ऐलान पर मालदीव एकमात्र ऐसा देश था जिसने इस आह्वान पर अनिच्छा जताई थी। दरअसल भारत के आसपास हिंदमहासागर में चीन की बढ़ती नजदीकीयॉ  भारत के लिये चिंता की बात  हैं. चीन अपना सैन्य बेस मालदीव में बनाने की जुगाड मे है, एक ऐसे वक्त में जब वो ्पाकिस्तान के ग्वादर, श्रीलंका के हमम्टोला में भी बेस बनाने की तरफ बढ़ रहा है. जिबूती में वो पहले ही बेस बना चुके हैं.उसे एक पूरा द्वीप सामरिक उद्देश्यों के लिए दे दिया तो भारत के लिए चिंता की बात तो है. इससे सारे अरब सागर और हिंद महासागर में उनका प्रभाव होगा.

चीन इन देशो मे ्मदद और कर्ज के नाम पर अपना जाल बिछा रहा है, निश्चित तौर पर उसके पास कई विकल्प है लेकिन सीधे दखल की बजाय उसे हालात पर निगरानी रख कर संभल कर चलना होगा ्जैसा कि चीन कर रहा है माल्दीव की बाहरी मदद का 70 फीसदी हिस्सा अकेले चीन देता है।मालदीव में करीब 25 हजार भारतीय रह रहे हैं। हर साल मालदीव जाने वाले विदेशी पर्यटकों में 6 फीसदी भारतीय होते हैं। वही चीन के सैलानियो का प्रतिशत 20 प्रतिशत  है.लगभग दस साल पहले चीन ने हिंद महासागर में समुद्री दस्युओ से निबटने के अभियानों की दलील देकर नौसेना जहाजों को भेजना शुरू किया और वहा  सैन्य जमावड़ा जमा लिया.  चीन घटना क्रम पर पूरा प्रभाव रखते हुए सीधे यामीन के साथ नही दिखाई देने का नाटक कर रहा है. जरूरी है भारत  इस क्षेत्र ्मे सुरक्षा संबंधी पहलुओ पर  ध्यान  देते हुए  माल्दीव की जनता के साथ संबंधो को निर्बाध चलने दे. उल्लेखनीय है कि शिक्षा, चिकित्सा और व्यापार के ्लिये मालदीव के लोग भारत आना पसंद करते हैं।  मालदीव के नागरिकों द्वारा उच्च शिक्षा और इलाज के लिए लॉंग टर्म वीजा की मांग बढ़ती जा रही है, जिस पर भी सरकार को गौर करना होगा. माल्दीव की आर्थिक और राजनैतिक स्थिति धीरे धीरे खस्ता हाल हो रही है, इस्लामी जिहादियो की समस्या से देश मे अशांति बढ रही है,यहा तक कि पर्यटन पर भी बुरा असर पड़ रहा है,वहा  कट्टरपंथ तेजी से जोर पकड़ रहा है सीरिया के गृह युद्ध तक में मालदीव से लड़ाके गए। भारत भी अपने पड़ोस में कट्टरपंथ का जोर पकड़ने पर चिंतित  है.

अपने देश मे  स्थतियॉ धीरे धीरे राष्ट्रपति यामीन के हाथो से बेकाबू होती जा रही है. हालत है कि अगले साल आम चुनावो के सिर पर आने से घबराये यामीन अपना ओहदा बचाने के लिये एक के बाद एक ऐसे अतिवदी कदम उठा रहे है जिस से वे न/न केवल अपने देश मे लोकतंत्र का गला घोट कर अपनी ही जनता को आशंकित कर रहे है, और इससे वहा जनाक्रोश बढ रहा है साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी आलोचना का शिकार बन रहे है. दरअसल हिंद महासागर में स्थित 1200 द्वीपों वाला यह देश   सामरिक दृष्टिकोण से भारत के लिए खासा महत्पूर्ण है। मालदीव के पानी के समुद्री रास्तों से भारत, चीन और जापान को एनर्जी सप्लाई की जाती है।सुरक्षा और रक्षा क्षेत्र के लिहाज से भी भारत के लिए मालदीव जरूरी है।दक्षिण एशिया की मजबूत ताकत होने और हिंद महासागर क्षेत्र में नेट सिक्यॉरिटी प्रोवाइडर होने के कारण माल्दीव के भारत के साथ रिश्ते अहम है।जरूरी है कि भारत सावधानी सतर्कता बरतते हुए घटना क्रम  पर नजर रखे और  कड़े संदेश देने की अपनी वर्तमान नीति पर आगे बढे। साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)


Leave a Comment:
Name*
Email*
City*
Comment*
Captcha*     8 + 4 =

No comments found. Be a first comment here!

ताजा खबरें

Quote of the Day:
Posted on 22nd Nov 2024
Today in History
Posted on 22nd Nov 2024

Connect with Social

प्रचलित खबरें

© 2020 VNI News. All Rights Reserved. Designed & Developed by protocom india