नई दिल्ली, 23 जनवरी (शोभना जैन/वीएनआई) इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की हालिया भारत यात्रा के दौरान खबर आई कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी आगामी पश्चिम एशिया यात्रा के दौरान 10 फरवरी को फलस्तीन की भी यात्रा करेंगे.हालांकि यह किसी भारतीय प्रधान मंत्री की यह पहली फलस्तीन यात्रा है, लेकिन यह खबर इस लिये भी अहम है कि प्रधान मंत्री मोदी गत जुलाई की अपनी चर्चित और सफल इजरायल यात्रा के दौरान भारत की पंरपरागत नीति से हट कर फलस्तीन नही गये थे,यहां तक कि प्रधानमंत्री इजरायल के यरूशलम से ठीक आठ किलो मीटर दूर फलस्तीन के रामाल्लाह भी नही गये थे,जब कि यह फलस्तीनी नगर इजरायल की यात्रा पर आने वाले सभी विदेशी राष्ट्राध्यक्षों का अहम पड़ाव रहता हैं. इसी तरह अगले माह प्रधानमंत्री मोदी जब फलस्तीन के इस शहर रामाल्लाह जायेंगे तो पड़ोस मे बसे इजरायल नही जायेंगे. कूटनीतिक स्तर पर माना जा रहा है कि भारत अब दोनो देशो के साथ रिश्तो ्में संतुलन साधने की बजाय और दोनो के साथ एक दूसरे की कीमत पर नही अपितु स्वतंत्र रूप से अपने राष्ट्रीय हितों और अपनी अंतरराष्ट्रीय भूमिका के अनुरूप ्दोनो को ही अलग अलग तरजीह देने की ्कूटनीति अपना रहा है , यही वजह है कि एक तरफ जहां भारत इजरायल के साथ रिश्तों को मजबूती के एक नये आयाम पर पहुंचा रहा है वहीं वह फलस्तीन व अरब जगत के साथ भी अपने रिश्तों पर पूरा ध्यान दे रहा है.
प्रधान मंत्री फरवरी के दूसरे हफ्ते मे होने वाली पश्चिम एशिया की अहम यात्रा मे फलस्तीन के साथ संयुक्त अरब अमीरात और ओमान की भी यात्रा पर रहेंगे.संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा को जहां मोदी सरकार द्वारा विदेश निवेश लाने के नजरिये से खासा अहम माना जा रहा है वही ओमान जहां बड़ी तादाद मे भारतीय लगभग आठ लाख है, निवेश के नजरिये से तो बहुत अहम नही है अल्बत्ता दोनो देशो के बीच रक्षा और सामरिक रिश्ते बहुत अहम हैं, बहरहाल दोनो देशों - इजरायल और फलस्तीन की बात करे तो पिछले दिनों संसद मे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी कहा कि दोनों देश हमारे मित्र देश हैं और उनके साथ हमारे राजनयिक संबंध हैं. भारत द्वारा इजरायल और फलस्तीन को लेकर अपनाई गई इस नई नीति को कूटनीतिक ्विशेषज्ञ 'डी हाइफनेशन' नाम दे रहे हैं। साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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