नेबरहुड फर्स्ट नीति कितनी सफल

By Shobhna Jain | Posted on 3rd Sep 2018 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 03 सितम्बर, (शोभना जैन/ वीएनआई) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन दिनो नेपाल मे चल रहे 'बिम्स्टेक शिखर सम्मेलन' में भारत को "नेबरहुड फर्स्ट नीति' और 'एक्ट ईस्ट नीति' की धुरी बताया और इस क्षेत्र को एक दूसरे से संपर्क मार्ग से जोड़ने का आह्वान किया ताकि क्षेत्र  मिल कर आर्थिक तकनीकि विकास कर सके, आतंकवाद और अन्य समस्याओं से मिल कर निबट सके. 

इसी क्रम मे जरा याद कीजिये...चार साल पहले, 26 मई 2014  का दिन,यानि मोदी सरकार का शपथ ग्रहण समारोह... गर्मजोशी भरा माहौल ,एक नई शुरूआत की आहट वाला जोश. नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री  मोदी ने इस शपथ ग्रहण समारोह के लिये विशेष तौर पर आमंत्रित पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ सहित दक्षेस के सभी आठ देशों के राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों  के नेताओं को आमंत्रित किया. श्री मोदी ने क्षेत्र के साथ भाईचारा बढाने के लिये इन सभी को खास तौर पर न्योता दिया था, लग रहा था कि नव निर्वाचित मोदी सरकार की पड़ोस को पहली प्राथमिकता (नेबरहुड फर्स्ट) देने नीति की वजह से भारत के आस पड़ोस के साथ रिश्तों के एक नये दौर की शुरूआत होगी, पड़ोसी देशों के साथ नजदीकियॉ और बढेंगी. 

इसी क्रम में प्रधानमंत्री ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये भूटान को चुना और एक माह बाद ही जून 2014 मे भूटान की यात्रा की. वैसे माल्दीव को छोड़ श्री मोदी ने कार्यकाल के चार साल में  आपसी समझ बूझ और सहयोग बढाने के लिये इन सभी देशों की यात्राये की, लेकिन चार साल बाद अगर इस नीति का लेखा जोखा लें तो यह सवाल हवा मे तैरता है..आखिर यह नीति कितनी सफल रही? आखिर हमारा आस पड़ोस कितना नजदीक आया,  यह क्षेत्र भारत से  कितना और जुड़ ्पाया ?.श्री मोदी के शक्तिशाली, आक्रामक तेवर और निजी संबंध बनाने की शैली वाली विदेश नीति की वजह से पिछले चार वर्षो मे दुनिया के अनेक देशों मे हमारी पहचान बनी, अंतरष्ट्रीय मंचों पर भी एक पहचान बनी, लेकिन एक सच यह भी हैं कि इस सब मे हमारा पास पड़ोस विशेषतः कुछ पड़ोसी  दूर चले गये और जुड़ाव ऐसा नही हो पाया जैसे सोचा गया था. 

पाकिस्तान की तो बात छोड़ ही दें, लेकिन "रोटी बेटी" के रिश्तो वाले नेपाल के साथ भी तीन वर्ष पूर्व रिश्ते डगमगायें जिन्हे पटरी पर लाने के प्रयास अब  भी जारी है.चीन के प्रभाव मे आ कर माल्दीव तो लगातात ऑखे तरेर रहा है, सेशल्स जैसे परंपरागत मित्र देशों के साथ  भरोसा, नजदीकियॉ नही रही जैसा कि रहा करता था. चीन ने इस क्षेत्र मे तेजी से अपना प्रभाव बढाया है और नेपाल,माल्दीव और सेशल्स, श्रीलंका आदि पड़ोसी देशों मे बड़े पैमाने पर आर्थिक निवेश किया,जिस से उन का आर्थिक विकास हुआ,नेपाल जैसा देश जिसे आधारभूत ढॉचा विकसित करने की बहुत जरूरत है, वहां इस क्षेत्र मे काम किया निश्चित तौर पर इस के सामरिक मायने खासे अहम है. क्षेत्र के अन्य देशों की भी कमोबेश ऐसी ही जरूरते है. 

हिंदमहासागर क्षेत्र मे बसे माल्दीव जैसा सामरिक महत्व वाला देश दूर ही नही गया बल्कि तल्खियों से दूर हुआ. इसी क्षेत्र मे अहम पड़ोसी सेशल्स से भी दूरियॉ बनी.निश्चित तौर  भूटान जो इस क्षेत्र मे भारत का भरोसे मंद दोस्त रहा है अब चीन उसे भी  इसी अर्थशास्त्र  के जरिये घेरने की कोशिश कर रहा है, दरअसल भारत के सभी पड़ोसी मित्र देशों मे भूटान ही ऐसा देश रहा है जिसने  भारत की असहमति का सम्मान करते हुए चीन की महत्वाकांक्षी  "कनेक्टीविटी परियोजना "वन बेल्ट वन रोड परियोजना पर हस्ताक्षर नही हिये क्योंकि भारत का कहना है कि यह परियोजना पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र से हो कर गुजरता है जो कि भारत की संप्रभुता को सरासर चुनौती है. 

दरअसल इस परियोजना के जरिये वह इस क्षेत्र मे आधारभूत ढॉचा फैलाना चाहता है. वह इन देशों मे आधारभूत ढॉचे का विकास करने की दलील दे रहा है  लेकिन निश्चय ही इस से चीन का इस क्षेत्र मे दबदबा बनेगा और उस के हित सधेंगे.भारत के आसपास हिंदमहासागर में चीन की ये नजदीकीयॉ  भारत के लिये चिंता की बात  हैं.यह सब इस के बावजूद हो रहा है कि भारत बार बार यही कहता रहा है  वह हिंद महा सागर क्षेत्र मे शांति और स्थिरता का पक्षधर रहा है और इसी दिशा में काम करता रहा है लेकिन चीन के बढते वर्चस्व से इस क्षेत्र में दोस्तियों के समीकरण बदल रहे है.भारत विरोधी ता्कते नेपाल, माल्दीव सेशल्स जैसे देशों मे भारत पर "बिग ब्रदर ्यानि चौधराहट" का आरोप लगा कर इस हवा को भडका रही है. वैसे  श्रीलंका, बंगलादेश, म्यॉमार  और अफगानिस्तान में भी चीन अपना दबदबा बढाने मे जुटा है लेकिन राहत की बात है कि यहा तल्खियॉ नही आयी . बिम्स्टेक बैठक नेपाल श्रीलंका, बंगलादेश, म्यॉमार, भूटान, थाईलेंड जैसे देशो के साथ कनेक्टीविटी बढाने और  आर्थिक तकनीकि सहयोग बढाने और भरोसा कायम करने का ही प्रयास है.

निश्चय ही सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि दुनिया भर से रिश्ते जोड़ने और  बेहतर बनाने की मुहिम मे पड़ोस पीछे नही छूट जाये. भारत  को इस क्षेत्र मे आधारभूत परियोजनाये तेजी से भले न/न सही समय से पूरी करनी चाहिये क्योंकि विकास की तरफ बढते हुए कनेक्टीविटी सब से अहम है.चीन के आक्रामक तेवर की तुलना मे क्षेत्र मे भारत की छवि भरोसेमंद दोस्त , लोकतांत्रिक  मित्र  देश की है. किसी भी देश की प्रगति और विकास  क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा अहम तौर पर जुडा रहता है. निश्चित तौर पर भारत को अपनी "नेबर हुड फर्स्ट नीति' अपनी इसी सकारत्मकता से खास तौर पर पुराने मित्र देशो पर अधिक ध्यान ्देने और सावधानी पूर्ण तरीके से आगे बढने के आधार पर आगे बढानी होगी.वैसे मोदी सरकर के वर्तमान कार्यकाल का यह अंतिम वर्ष है इस दौरान किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नही की जा सकती है लेकिन विदेश नीति एक सतत प्रक्रिया है इस नीति पर आकलन किया जायें. ताकि आस पड़ोस पीछे नही छूट जाये. साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)


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