आखिर कब तक सुलगता रहेगा हांगकांग

By Shobhna Jain | Posted on 29th Aug 2019 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 29 अगस्त (वीएनआई/शोभना जैन) एशिया के वित्तीय केन्द्र माने जाने वा्ले हांगकांग में गत जून से विवादास्पद प्रत्यार्पण विधेयक को ले कर शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों और शांति का दौर खत्म होता नहीं दिख रहा है,ये प्रदर्शन अब लोकतंत्र समर्थक और राजनैतिक सुधारों का रूप ले चुके है,मुख्य रूप से छात्रों/युवाओं की अगुआई में हो रहे इन प्रर्दशनों में लोग सड़कों पर उतर रहे हैं.दुनिया के  इस व्यस्तम हवाए अडडें पर लाखों प्रदर्शनकारियों के धरने से ले कर  शहर में  विशाल जन सैलाब के जरिये ४० कि मी लंबी मानव श्रंखला बनाने जैसे कदमों के जरिये प्रशासन पर अपनी मॉग मनवाने ्का ध्यान खिंचने का हर तरीका अपनाने के बावजूद दोनों पक्षों के बीच  अभी तक गतिरोध दूर कर, बातचीत का रास्ता नही बन सका हैं.  दोनों पक्षों के बीच उग्र मुठभेड़े होने की भी खबरें  भी जब तब आती रही हैं. चीन इन प्रदर्शनों को  पूरी तेजी से दबाने के लिये पूरी कौशिश कर रहा है,और इन प्रदर्शनों को "आंतकी गतिविधियों का संकेत"  करार देने की कौशिश कर रहा हैं. हालांकि ्वह अभी विशाल जन सैलाब वाले इन प्रदर्शनों को दबाने के लिये  बीजिंग के ९० के दशक के"थ्यानमन स्क्वायर" जैसे दमन चक्र जैसी किसी सैन्य कार्यवाही  से बच रहा हैं,लेकिन इस के अर्ध सैन्य बल  हांगकांग की सीमा से सटे  चीन के शेनझेन नगर में  टेंकों की मौजूदगी में सैन्य अभ्यास करते हुए इस चेतावनी के सूचक हैं कि वह प्रदर्शनों को दबाने के लिये  वह बल प्रयोग कर सकता है.बहरहाल  दुनिया की नजरे इस पूर्व ब्रिटिश कॉलोनी  और एक तरह से चीन के कब्जे वाले हांग कांग  पर लगी है. सब की नजरे इस बात पर हैं कि इस राजनैतिक संकट का क्या हल निकलेगा, अन्ततः चीन के साथ उस के रिश्तें क्या रूप लेते हैं? इन प्रदर्शनों का खुशहाल माने जाने वाले हांगकांग की वित्तीय स्थति पर निश्चित तौर पर प्रतिकूल असर पड़ने का अंदेशा हैं जहा  कि  अर्थ व्यवस्था अमरीका चीन व्यापार युद्ध की वजह से वैसे ही संकट ग्रस्त हो रही थी , साथ ही हांग कांग को सुरक्षित और भरोसेमंद व्यापारिक केन्द्र माने जाने वाले हांग कांग की इस स्थति पर दुनिया भर में चिंता के बादल हैं.ऐसी भी खबरे हैं कि वहा के कुछ उद्द्योगपति आस्ट्रेलिया और पश्चिमी देशों में अपने व्यापार को ले जा रहे हैं.चीन  इस सब के पीछे अमरीका, ब्रिटेन व कुछ अन्य विदेशी ताकतों का हाथ  भी बता रहा है बहरहाल वहा की स्थति खराब है.चिंतायें, सवाल कई है... 

गौरतलब हैं कि  इस फरवरी में हांगकांग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी केरी लेम एक प्रत्यार्पण विधेयक ले कर आये. यही विवादास्पद विधेयक चिंगारी बन गया गया इस के तहत प्रावधान था कि "आपराधिक तत्वों/ भगोड़ों "को  आगे की कानूनी कार्यवाही के लिये  चीन भेजा जा सकता है. प्रदर्शनकारियों का कहना हैं कि इस के जरिये उन के लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिये जायेंगे और इस श्रेणी मे रख दिये गये नागरिकों, यहा आने वाले विदेशियों को इस कानून के तहत चीन की "बर्बर" न्यायिक  प्रणाली के  अधीन कर दिया जायेगा.हांगकांग के लाखों नागरिकों के सड़कों पर उतर आने के बाद  हाल मे विवादास्पद प्रत्यर्पण विधेयक को "मृत " बता   कर ठंडे बस्ते मे तो डाल दिया गया, लेकिन वापिस नही लिया गया.  लेकिन सवाल ये है कि इतने ज़बरदस्त विरोध के लिए लाखों लोग सड़कों पर आखिर आ कैसे गए.प्रदर्शनकारी इस विधेयक को मानव अधिकारों और लोकतंत्र के लिए खतरा मान रहे हैं. ताइवान समेत यूएन, अमेरिका और  अनेक मानवाधिकार संगठन  इस कानून के बारे में चीन के समक्ष अपनी चिंतायें जताते रहे हैं.
 
इसी सिलसिलें में  पिछले लगभग ६० बरस से चीनी "कब्जें" से "स्वतंत्र" होने की लड़ाई लड़ रहे और भारत में शरणागत तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख डॉ लोब्सॉग सॉगे ने भी हांग कांग में लोकतंत्र और स्वतंत्रता के हिमायतियों के प्रति एकजुटता जाहिर करते हुए  चीन से हिंसा का रास्ता  नही अपनाने की सलाह देते हुए सभी सम्बद्ध पक्षों के बीच बातचीत शुरू करने का सुझाव दिया हैं. उन्हों ने कहा "अहिंसा और संवाद से ही हांगकांग की स्थति को हल किया जा सकता हैं" उन्हों ने कहा "जैसा कि दलाई लामा अक्सर कहते हैं कि तिब्बती लोग अहिंसा का पालन करते आये हैं  और अहिंसा और संवाद से ही हांकांग मसले का हल किया जा सकता हैं. डॉ सॉगे ने कहा" मुझे उम्मीद हैं सभी पक्ष बातचीत करेंगे और इस मसलें का शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक रूप से हल करेंगे. गौरतलब हैं कि भारत  सहित दुनिया भर मे रह रहे तिब्बती "  चीन से तिब्बत को मुक्त करो आंदोलन" चला रहे हैं और हांग कांग के लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन्कारियों को भी वे समर्थन  दे रहे हैं.

गौरतलब हैं कि 150 साल के ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन के बाद हांगकांग को 99 साल की लीज पर चीन को सौंप दिया गया। हांगकांग द्वीप पर 1842 से ब्रिटेन का नियंत्रण रहा। जबकि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान का इस पर अपना नियंत्रण था। यह एक व्यस्त व्यापारिक बंदरगाह बन गया और 1950 में विनिर्माण का केंद्र बनने के बाद इसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढी । गौरतलब हैं कि वर्ष 1997 में जब  एक करार के तहत ब्रिटेन ने हांगकांग को चीन के हवाले किया गया था तब बीजिंग ने "एक देश-दो व्यवस्था" की अवधारणा के तहत कम से कम वर्ष 2047 तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी कानूनी व्यवस्था को बनाए रखने की गारंटी दी थी।लेकिन 2014 में हांगकांग में 79 दिनों तक चले "अंब्रेला मूवमेंट" के बाद लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर चीनी सरकार कार्रवाई करने लगी। विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों को जेल में डाल दिया गया। आजादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हांगकांग में जनता के ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शनों के बाद चीन को प्रत्यर्पण के अधिकार के नाम पर कथित रूप से मनमानी करने का लाइसेंस देने वाला कानून मृत बता कर फिलहाल ठंडे बस्ते मेंडाल दिया गया है. चीन समर्थक मुख्य कार्यकारी अधिकारी कैरी लैम ने इस बाबत घोषणा कर दी और हांगकांग की जनता से माफी भी मांगी. लेकिन, अब लैम के इस्तीफे की मांग और राजनैतिक सुधारों की मॉग ने ज़ोर पकड़ लिया है. 

  लेकिन सवाल ये  है कि आखिर कौन सी वजह रही, जिसने हांगकांग को  विशेष तौर पर युवाओं इस कदर उकसा दिया कि लाखों लोग सड़कों पर उतरे?2014 में भी हांगकांग के लोग चीन के खिलाफ बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे थे, लेकिन उस वक्त विरोध प्रदर्शन कामयाब नहीं हुए थे  लेकिन, इस बार विरोध प्रदर्शनों में क्या खास रहा कि इतनी बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतरे और लगातार दबाव बनाने में कामयाब हो रहे हैं. विदेशी मामलों के एक  जानकार के अनुसार"  दर असल इसका एक बड़ा कारण है हांगकांग के भविष्य को लेकर विशेष तौर पर युवाओं में  पनपने वाला डर.  उन्हें चीनी सरकार से  अपनी  आजादी छिनने का खतरा नज़र आ रहा है इसलिए हांगकांग के युवा इसके विरोध में खड़े हो रहे हैं.हांगकांग में ज्यादातर लोग चीनी नस्ल के हैं लेकिन, चीन का हिस्सा होने के बावजूद हांगकांग के अधिकांश लोग चीनी के रूप में पहचान नहीं रखना चाहते हैं। खासकर युवा वर्ग। केवल 11 फीसद खुद को चीनी कहते हैं। जबकि 71 फीसद लोग कहते हैं कि वे चीनी नागरिक नहीं अपितु हांगकांग  के नागरिक है.यही कारण है कि हांगकांग में हर रोज आजादी के नारे बुलंद हो रहे हैं. 18 से 35 साल की उम्र वाले वोटरों की संख्या साल 2000 में जहां 58 फीसदी थी, वहीं 2016 में ये संख्या बढ़कर 70 फीसदी हो चुकी है". देखना हैं कि दोनों पक्षों के बीच गतिरोध कब खत्म होता है,यह घटनाक्रम क्या रूप लेता हैं.वी एन आई


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