नई दिल्ली,13 सितंबर (शोभना,अनुपमा जैन/वीएनआई) भोर के सूर्योदय की बेला...सिंदूरी आभा से पूरा माहौल दिव्य सा हो रहा था... साधु साध्वियो के समूह के पीछे एक अन्य धर्मावलंबी मित्र के साथ हम मंदिर से ध्वनित होने वाले मंत्रोच्चार के बीच मंदिर की सीढीयो से नीचे उतर रहे थे.नीचे उतरते वक्त मित्र की जिज्ञासा थी कि क्षमावाणी पर्व आखिर है क्या? वहा मौजूद सभी श्र्द्धालु "क्षमा भाव" क्यों कह रहे थे ? उन्होंने आज"मिच्छामी दुक्कड़म "शब्द सुने, आखिर इस के मायने क्या हैं ? इस पर्व को लेकर मित्र की कितनी ही जिज्ञासायें थी, कितने ही सवाल थे..
जैन धर्म की परंपरा के अनुसार वर्षा ऋतु मे मनाया जाना वाला पर्यूषण पर्व,जैन धर्मावलंबियो मे आत्म शुद्धि का पर्व माना जाता है, मित्र की उत्सुकता है कि आत्म शुद्धि आखिर कैसे की जाती है? इसी पर्व के समापन पर यानि पर्यूषण पर्व के आखिरी दिन, क्षमावाणी दिवस पर यह पर्व मनाया जाता हैं, जब एक दूसरे से क्षमा मांगी जाती हैं और कहा जाता है " मैंने मन ,वचन , काय से ,जाने-अनजाने मे आपका मन दुखाया हो तो हाथ जोड़कर आपसे क्षमा मांगता हूँ" पर्यूषण पर्व के दौरान लोग पूजा,अर्चना, आरती, सत्संग, त्याग, तपस्या, उपवास आदि में अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हैं. जैन धर्म के दिगम्बर संप्रदाय मे कल पर्यूषण पर्व सम्पन्न हो गया जिसके संपन्न होने पर आज क्षमावाणी दिवस मनाया जा रहा हैं, जबकि जैन धर्म की श्वेताम्बर परंपरा मे पर्यूषण पर्व आठ दिन पूर्व सम्पन्न हो चुका है.
दार्शनिक, अध्येता जैन संत आचार्य विद्यासागर के अनुसार भी "क्षमा वीरों का आभूषण है। सही ही कहा जाता है कि क्षमा बराबर तप नहीं, क्षमा धर्म आधार होता है क्रोध सभी के लिए अहितकारी है और क्षमा सदा, सर्वत्र सभी के लिए हितकारी होती है, जैन धर्म की तो अवधारणा ही जीयों और जीने दो के सिद्धांत पर आधारित है ऐसे में जीव मात्र से मैत्री भाव ही मानवता हैं"
हर धर्म मे क्षमा के महत्व है. वैदिक ग्रंथों में भी क्षमा की श्रेष्ठता पर बल दिया गया हैं। ईसा मसीह ने भी सूली पर चढ़ते हुए कहा था, ‘हे ईश्वर! इन्हें क्षमा करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।’ कुरान शरीफ मे भी लिखा है‘जो वक्त पर धैर्य रखे और क्षमा कर दे, तो निश्चय ही यह बड़े साहस के कामों में से एक है।’ सिख गुरु गोविंद सिंह जी एक जगह कहते हैं, ‘यदि कोई दुर्बल मनुष्य तुम्हारा अपमान करता है तो उसे क्षमा कर दो क्योंकि क्षमा करना वीरों का काम है।’
दस दिन तक चलने वालेपर्यूषण पर्व में दस धर्म आते हैं—उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्ज, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम अंकिचन और उत्तम ब्रह्मचर्य। क्षमा दस धर्म का सार है। जैन आचार्य विद्यानंद जी के अनुसार "अगर एक क्षमा गुण आत्मा में आता है तो बाकी के नौ धर्म अपने आप आ जाते हैं। क्षमा को चिंतामणि रत्न कहते हैं। जैसे चिंतामणि रत्न चिंतित वस्तु देता है। पारसमणि लोहे को सोना बनाता है। उसी तरह क्षमा आत्मा को शुद्ध बनाती है.
जैन विदुशी आर्यिका ज्ञान माताजी के अनुसार" ।क्षमावाणी का पर्व सौहार्द, सौजन्यता और सद्भावना और मनोमालिन्य धोने का पर्व है आज के दिन एक दूसरे से क्षमा मांगकर मन की कलुशता को दूर किया जाता है। जाने अनजाने में हुए किसी तरह के अपराध या गलती के प्रति पश्चाताप का भाव रखते हुए मनोमालिन्य को दूर करने की भावना इस पर्व का प्रयोजन है।
मन, वाणी और कर्म से किसी के भी प्रति अहित या अपराध हो जाना स्वाभाविक है किन्तु महत्त्वपूर्ण है उस अपराध या गलती का बोध और फिर क्षमा याचना सहित प्रायश्चित्त अर्थात् शुद्धिकरण. संत तुकाराम ने भी कहा था" जिस मनुष्य के हाथ में क्षमा रूपी शस्त्र हो , उसका कोई भी कुछ नही बिगाड़ सकता है। एक विद्वान के अनुसार ' वैश्वीकरण के इस दौर में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की उक्ति वास्तव में क्षमा पर्व जैसे आयोजनों में ही चरितार्थ होती दिखती है।"
सब कुछ सुन कर मित्र के चेह्रे पर अजीब सी शांति के भाव उभर आते है, शांत भाव से वे कहते है"आज सुबह से ही कभी किसी बात पर तो कभी किसी बात पर परिवारजनो , दफ्तर के कर्मियो यहा तक कि जिस टेक्सी से मैं यहा आ यी उस के चालक से भी मै उलझ पड़ी, अब लग रहा है कि गलत कौन था सवाल यह नही हैं. मुझे शांत ही रहना चाहिये था. लग रहा हैं उस से क्षमा याचना करु इस बात की नही सो्चू कि गलती किसकी थी, अचानक अब मन बहुत धुला धुला सा हो गया है.साधु साधवी शायद कही बहुत आगे क्षमा भाव का संदेश देने आगे निकल गये है, लगा मंदिर से मंत्रोचार की गूंज और तेज हो गयी जो हर जगह शांति फैला रही है , एक गूंज सी हर और से सुनाई देने लगी "सभी जीव सुखी रहे किसी भी जीव को कोई दुःख न हो,सभी जीवो के दुःख दूर हो जाएँ, मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूँ सभी जीव मुझे क्षमा प्रदान करे ऐसा ही हो.... ऐसा ही हो..."मिच्छामी दुक्कड़म " "-"क्षमा".(वीएनआई)
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