कनाडा से रिश्तो पर काली छाया

By Shobhna Jain | Posted on 24th Feb 2018 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 24 फरवरी (शोभना जैन/वीएनआई) कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का भारत दौरा आज संपन्न हुआ पर दोनो देशो के बीच 'अच्छे उभयपक्षीय'संबंधो के बावजूद ऐसा लगता है दौरे पर 'खालिस्तान की काली छाया' हावी रही .कनाडा, विशेष तौर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और उन की सरकार के खालिस्तान के प्रति 'नरम रूख' की वजह से ही एक के बाद नये विवाद इस यात्रा पर हावी रहे. एक तरफ जहा श्री  ट्रूडो अपनी आठ दिवसीय भारत यात्रा के दौरान अपनी पत्नि और तीनो बच्चो के साथ रंग बिरंगे भारतीय परिधान मे मुस्कराते हुए कभी ताजमहल, कभी साबरमती, कभी बॉलीवुड तो कभी जामा मस्जिद के दर्शन कर रहे थे लेकिन इस के साथ ही खालिस्तान के प्रति कनाडा की नरमी के चलते खालिस्तान की काली छाया लगातार  दौरे पर मंडराती रही .

इस यात्रा के दौरान कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो  और उन के परिवार की ्भारतीय अभिवादन की नमस्कार मुद्रा,बेफिक्री सी दिखने वाली मुस्कराहट से चर्खा कातते तो कभी अमृतसर मंदिर मे रोटियॉ बेलते जैसे लम्हो  की फोटो  भले ही जाहिराना तौर पर दिखने मे सब कुछ ठीक ठाक होने जैसी लग रही थी लेकिन  हकीकत यही थी कि ट्रूडो और उन की सरकार की खालिस्तान के प्रति नरमी भरे रूख की छाया  दौरे की शुरूआत से ही दिखाई दे रही थी. कनाडा के मीडिया में कहा यहां तक गया कि भारत सरकार ने श्री ट्रूडो के इसी रूख के चलते उन की यात्रा के प्रति 'बेरुखी' बरती हालांकि आधिकारिक तौर पर भारत ने इन आरोपो का साफ तौर पर खंडन किया .कनाडा मीडिया के इस वर्ग ने तो यहा तक कह दिया कि श्री ट्रूडो की अगवानी के लिये  भारत सरकार ने एक कनिष्ठ मंत्री कृषि राज्य मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को  भेजा जबकि  इस से पहले अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग इजरायली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू  जैसे कुछ शिखर नेताओ की अगवानी स्वय़ प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली हवाई अडडे पर जा कर की और यहा तक कि वे  अपने गृह राज्य गुजरत यात्रा मे भी इन हस्तियों के साथ रहे जब कि श्री ट्रूडो अकेले ही अपने परिवार के साथ गुजरात मे थे, वहा के साबरमती मे गये हालांकि ्भारत मे  आधिकारिक सूत्रो ने कहा कि मोदी सरकार ने  प्रोटोकॉल का उल्लंघन नही किया गया. भारत का कनाडा के साथ कृषि क्षेत्र मे प्रगाढ सहयोग के चलते ही श्री शेखावत ने उनकी अगवानी की.

 कनाडा के प्रधानमंत्री ने  खालिस्तान पर कनाडा के रूख के चलते  यात्रा के दौरान विवाद के तूल पकड़ने पर हालांकि  बिगड़ी बात संभालने की कोशिश करते हुए कहा कि कनाडा सदैव ' संयुक्त भारत ' के पक्ष मे रहा है  और कनाडा के लिये भारत खास अहमियत रखता है.उन्होने  द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर खास जोर दिया . उन्होने कहा ' मै अनेक मर्तबा श्री मोदी से मिल चुका हूं और हम दोनो के बीच अच्छी जमती है'अपनी बेरूखी ्की खबरो को अनदेखा करते हुए उन्होने दोनो देशो के बीच व्यापार बढाने पर  विशेष जोर देते हुए हुए कहा कि दोनो देशो के बीच व्यापार बढने संबंधी अनेक समझौते हुए है. दोनो देशो के बीच श्री मोदी और श्री ट्रूडो के ्नेतृत्व मे हुई शिष्टमंडल की  वार्ता मे इस छाया को दूर रखने का माहौल दिखा हालांकि समझा जाता है कि दोनो नेताओ के बीच अकेले मे हुई बातचीत मे श्री मोदी ने इस विषय पर भारत की चिंताओ को उन के सामने फिर से रखा.वार्ता के बाद प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोनो देशो के सौहार्दपूर्ण संबंधो की चर्चा की, साथ ही कहा कि संप्रदाय का अलगाववाद  के लिये इस्तेमाल को बर्दाश्त नही किया जा सकता है. कनाडा भारत का अहम सामरिक साझीदार है दोनो देशो ्ने आज उभयपक्षीय संबंधो को और प्रगाढ बनाने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए  आज उभपक्षीय सहयोग के छह समझौते किय जिस में दोनो देशो के बीच आतंकवाद से साझा तौर पर निबटने, परमाणु क्षेत्र मे सहयोग,पर्यावरण, साईबर सुरक्षा, उच्च शिक्षा  कृ्षि  शामिल है

दरअसल पिछले तीन दशको से कनाडा की  क्रमिक सरकारो के रह रह कर खालिस्तान के प्रति नरम रूख के पीछे  घरेलू राजनीति का एक गणित है. कनाडा में भारतीय मूल के 13 लाख लोग रहते हैं जिस मे लगभग 4,68,670  सिख है यानि आबादी का 1.4% हिस्सा वहा सिखों है।  कनाडा में भारतीय मूल के लोग, खास तौर पर सिख और गुजराती  काफी प्रभाव शाली है। यहां की राजनीति में भारतीय मूल के लोग सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं। कनाडा की संसद में भारतीय मूल के 19 सदस्य हैं और कैबिनेट स्तर के चार मंत्री हैं।भविष्य में भी कनाडा की राजनीति उन की  भूमिका और प्रभावशाली  होने के संकेत है। कनाडा की राजनीति में ज्यादातर सिख वोट भी ट्रूडो की पार्टी को मिले हैं,जानकारो के अनुसार  इसी वोट बैंक को बढ़ाने की कोशिश में ट्रूडो सरकार जो कदम उठा रही है,जाहिर है भारत कनाडा की धरती का इस्तेमाल इस तरह की भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा ्दिये जाने पर अपनी चिंताये और विरोध  लगातार व्यक्त करता रहा है. इसी क्रम को समझे तो कनाडा की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी न्यू डेमोक्रेटिंक पार्टी के नेता  38 साल के सिख नेता जगमीत सिंह है, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वह ट्रूडो की सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती हैं,और ्वे चुनावो मे उन के दल को हरा कर प्रधानमंत्री भी बन सकते है। कनाडा में आम चुनाव 2019 में होने हैं और जगमीत सिंह का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है।  खबरो के मुताबिक जगमीत ्को खालिस्तान समर्थकों के भी बेहद करीब बताया जा रहा है। जगमीत सिंह को 2013 में भारत का वीजा नहीं मिला था  
 
पिछले तीन दशक में कई बार ऐसा हुआ कि वहां के नेता खालिस्तान की राजनीति को तवज्जो देकर भारत की संवेदनाओं का ख्याल नहीं रख रहे हैं.्भारत की सरकारे लगातार इन मुद्दो पर अपनी चिंताओ, सरोकारो से वहा की सरकारो को अवगत करा रही है. पीएम नरेंद्र मोदी भी आज की ही तरह पहले भी विदेशो मे अनेक शिखर बैठको मे इस मुद्दे पर उन्हे भारत की चिंताओ से अवगत करा चुके है. 2015 में ट्रूडो के सत्ता में आने पर इसकी शुरुआत हुई, पिछले साल दोनो देशो के बीच खालिस्तान को ले कर तल्खियॉ और बढी है. गत अप्रैल में,  ट्रूडो ने  वहा की खालसा डे परेड में हिस्सा लिया था जिस में ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गए जरनैल सिंह भिंडरावाले को हीरो की तरह दिखाया गया था.जानकारी के अनुसार भारत  ने यह कोशिश की थी कि ट्रूडो परेड में हिस्सा न लें, लेकिन यह नहीं हो सका जबकि ट्रूडो से पहले स्टीफन हार्पर कनाडा के पीएम थे और अपने कार्यकाल में वह इस रैली में नहीं गए थे.

दरअसल घरेलू राजनीति के इन्ही समीकरणो के चलते ही कनाडा सरकार की कैबिनेट में शामिल चार सिख मंत्री  इस दौरे मे कनाडा के सरकारी शिष्टमंडल् मे शामिल ्थे जिस मे रक्षा मंत्री हरजीत सिंह सज्जल खुले तौर पर खालिस्तान समर्थक रहे है. इनमें एक इंफ्रास्ट्रक्चर  के आधारभूत मामलो के  मंत्री अमरजीत सोही को 1988 में खालिस्तान समर्थक होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. हालांकि, यह आरोप साबित नहीं हो पाया.कहा गया कि भारत के नही चाहने पर भी ये मंत्री इस शिष्टमंडल मे शामिल किये गये. रिश्तो मे खालिस्तान की काली छाया जब और भी गहरी हो गई कि जब कि श्री  ट्रूडो के सम्मान मे कनाडा के  भारतीय मूल के उच्चायुक्त नाडिर पटेल द्वारा दिये गये स्वागत समारोह मे खालिस्तानी  आतंकी जसपाल अटवाल को भी निमंत्रित किया गया हालांकि भारत की अपत्ति के बाद इस न्योते को  बाद वापस तो ले लिया और तर्क दिया गया कि वे श्री  ट्रूडो के साथ आये सरकारी शिष्टमंडल मे शामिल नही थे स्वयं श्री ट्रूडो ने इसे गंभीर मामला बताते हुए कहा कि वे मामले की जॉच करवायेंगे बहरहाल रिश्तो मे  इन तमाम बातो से शक का घेरा  तो बढा ही.

'खालिस्तान विवाद'1985 में हुए कनिष्क हवाई दुर्घटना से भी  जुड़ा.गत 23 जून 1985 में एयर इंडिया की फ्लाइट 'कनिष्क AI182' आयरिश हवाई क्षेत्र में उड़ते समय, 31,000 फीट (9,400 मीटर) की ऊंचाई पर बम से उड़ा दिया गया. हादसे में 329 लोग मारे गये.  इस सबसे बर्बर आतंकवादी हमले (329 मौतें) में भी खालिस्तानी आतंकवादियों का हाथ रहा . इन्ही तल्खियो के बीच हाल ही मे कुछ और घटनाये ऐसी रही जिस से दोनो देशो के बीच शक और भी गहरा हो गया.गत दिसंबर मे इंगलैंड और अमरीका  की ही तरह  कनाडा के 14 गुरुद्वारों में भारतीय ुच्चायोग के अधिकारियों के घुसने पर बैन लगा दिया गया था. जिन अधिकारियों की एंट्री पर बैन लगाया गया है, उसमें भारतीय राजनयिक भी हैं. हालांकि, व्यक्तिगत रूप से आने वाले अफसरों को गुरुद्वारों में जाने की इजाजत दी गई है.जिसके खिलाफ ट्रूडो सरकार ने कोई ऐक्शन नहीं लिया।  कनाडा में अधिकारियों ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी बताया था वैसे पिछले साल भी पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन से मिलने से इनकार कर दिया था. उन्होने ने कहा था कि कनाडा के रक्षा मंत्री "खालिस्तानियों से सहानुभूति" रखते हैं.

ट्रूडो प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहली भारत यात्रा पर आए हैं। पीएम मोदी की 2015 में कनाडा यात्रा के दौरान ट्रूडो से मुलाकात लिबरल पार्टी के नेता के तौर पर हुई थी। ट्रूडो नवंबर 2015 में सत्ता में आए थे। पिछले 18 महीने में ट्रूडो सरकार के 11 मंत्री भारत आ चुके हैं।दरअसल इस यात्रा मे दोनो देशो के बीच उभयपक्षीय सहयोग के जो समझौते हुए उन से आपसी सहयोग बढेगा और  आपसी समझ बूझ बढी उस से उम्मीद  करनी चाहिये कि खालिस्तान की काली छाया से सम्भवतः दोनो के रिश्ते कुछ हद तक तक बाहर आये. साभार- लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)


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