नई दिल्ली, 27 मार्च, (शोभना जैन/वीएनआई) 1999 के पुलवामा पाक बर्बर आतंकी हमलें के बाद से भारत पाक रिश्तों में आयी भारी तल्खियों और कड़वाहट के बाद हाल में "रिश्तों में सहजता लाने के लियें शुरू हुयें प्रयासों' के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो दिन पूर्व पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान को पाकिस्तान के 70वें राष्ट्रीय दिवस पर एक शुभकामना संदेश भेजा जिस में उन्होंने उन्हें पाकिस्तान दिवस की मुबारकबाद देते हुए कहा " एक पड़ोसी देश के तौर पर भारत पाकिस्तान के लोगों के साथ ख़ुशगवार रिश्तें चाहता है, लेकिन इस के लियें जरूरी हैं कि माहौल विश्वास और भरोसे से भरा हो, आतंकवाद और शत्रुता से मुक्त हो." ऐसे वक्त इस इस संदेश की खास अह्मियत इस लियें हैं जब कि ऐसी कुछ मीडिया रिपोर्ट आयी हैं जिन में कहा गया हैं कि भारत पाक रिश्तों में कड़वाहट कम करने के लियें दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारी पिछले कुछ माह से "बेक चेनल डिप्लोमेसी के जरियें संपर्क में हैं , और संयुक्त अरब अमीरात दोनों देशों के बीच कुछ माह से इन शांति प्रयासों में सहयोग दे रहा हैं. पिछलें माह 25 फरवरी को जिस तरह से दोनों देशों के वरिष्ठ सैन्य कमांडरों ने जम्मू कश्मीर में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 2003 के संघर्ष विराम का पूरी कड़ाई और गंभीरता से पालन करने के बारें में अचानक एक संयुक्त बयान जारी कर सभी को चौंका दिया, कहा गया कि वह भारत और पाकिस्तान,दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच काफी समय से चल रही "बेक चेनल डिप्लोमेसी" का परिणाम थी , और जिस के लियें संयुक्त आरब अमीरात ने सहयोग दिया ,हालांकि भारत सरकार ने ्दोनों देशों के अधिकारियों के बीच हुई इस तरह की किसी "बेक चेनल डिप्लोमेसी" में किसी तीसरें देश के सहयोग की मीडिया रिपोर्टों पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया हैं.लेकिन यह भी जाहिर हैं कि पिछलें कुछ माह से दोनों देशों के बीच रिश्तों में ऐसे सकारात्मक मोड़/बयान आ रहे हैं. खास कर कहें तो पाकिस्तान के पी एम इमरान और सेनाध्यक्ष जनरल बाजावा के दोस्ती का हाथ बढाने के ऐसे सकारात्मक बयान आयें हैं, जिस से घटनाक्रम उसी दिशा में ्जोड़ा जा रहा हैं, जैसा कि मीडिया रिपोर्टों में कहा गया हैं कि यह शांति प्रयास व्यापक हो सकते हैं.भारत को हमेशा टेढी नजर से देखने वाले जनरल बाजवा ने तो यहा तक कहा कि हमें पुरानी बातें भूल कर अब आगे देखना चाहियें. तो क्या दोनों देशों के बीच रिश्तों में फिजां "वाकई" बदल रही हैं, क्या इसे एक नयी उम्मीद माना जा सकता हैं? पाकिस्तान क्या अब भारत के इस रूख को समझेगा कि आतंक और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते हैं, सार्थक बातचीत के लियें क्या वह सौहार्दपूर्ण माहौल बनायेगा ?
हाल की इन घटनाओं को देख बरबस याद आता हैं.. 19 फरवरी 1999, स्थान, भारत पाक सीमा का वाघा बॉर्डर,तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान के साथ पिछली तमाम रंजिशें दर किनार कर दोस्ती का हाथ बढातें हुए बस यात्रा कर लाहौर जा रहे थें. सरहद के इस पार और उस पार खड़ें आम आदमी के चेहरें पर उम्मीद नजर आ रही थी.एक पत्रकार के नातें मैं भी इस ऐतिहासिक यात्रा का सामाचार संकलन के लियें इस यात्रा में शामिल पत्रकारों के साथ लाहौर जा रही थी.िस दौरान रिश्तों को सहज सामान्य बनाने के लियें कुछ आपसी सहमति भी बनी लेकिन कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान ने भारत पर कारगिल युद्ध थोप दिया. तब से दुनिया काफी बदल चुकी हैं, देशों की राजनीति बदली हैं. विश्व में शक्ति संतुलन के नयें समीकरण बने हैं, लेकिन पाकिस्तान की बदनीयती और बेभरोसें वाला रवैया कमो बेश ्बना रहा ,सीमा पार आतंकवाद इस का बर्बर चेहरा बन गया. भारत हालांकि लगातार लगातार किसी तीसरें पक्ष की मध्यस्थता से साफ इंकार करता रहा हैं, लेकिन कई देश इस तरह के मध्यस्थता प्रयासों की पेशकश कर चुके हैं. हाल ही की बात करें तो अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बालाकोट स्ट्राईक के बाद और उस के बाद भी कई मर्तबा दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लियें मध्यस्थता की पेशकश की थीं, जिसे भारत ने साफ तौर पर खारिज कर दिया था. अगर हाल के घटनाक्रम को ले कर मीडिया रिपोर्टों को देखें तो दोनों देशों के सैन्य कमांडरों द्वारा संघर्ष विराम को लागू करने संबंधी संयुक्त बयान के फौरन बाद यानि अगले ही दिन अमीरात के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद भारत आये जहा उन्होंने विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर के साथ शांति प्रयासों की प्रगति पर चर्चा की.
यह खबर सब से पहले देने वाली अंग्रेजी वेबसाईट के अनुसार इन शांति प्रयासों स्वरूप "चार सूत्री रोडमेप" को लागू करने के बारें में दोनों देशों की सरकांरे धीरे धीरे दोनों देश अपने अपने उच्चायुक्तों को एक दूसरे के यहा तैनात करेंगे जिन्हें दोनों देशों ने कश्मीर से धारा ३७० हटा लेने क बाद वापस बुला लिया था , इस रोडमेप के तहत बाद में व्यापरिक और आर्थिक संबंधों की बहाली और फिर अगर सकारात्मकता बढती हैं तो कश्मीर मुद्दें पर भी कुछ बातचीत की संभावना बन सकती हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार शाह जायद ने इमरान खान से भी बातचीत की हैं.वैसे इसी सप्ताह के प्रारंभ में सिंधु नदी जल वार्ता के लिए पाकिस्तान के एक आठ सदस्यीय दल ने दिल्ली में भारतीय अधिकारियों से बैठक की. ये बातचीत दो साल बाद हुई . अगले हफ्तें 30 मार्च को ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हार्ट ऑफ एशिया कॉफ्रेंस होने वाली हैं ्जहा भारत के विदेश मंत्री और पाकिस्तान के विदेश मंत्री दोनों मौजूद रहेंगे, अगर पाकिस्तान सकारात्मकता बरतता रहता हैं तो दोनों के बीच बातचीत की संभावना भी बन सकती हैं.
इन मीडिया रिपोर्टों के आधार पर सवाल यह भी उठ रहे हैं कि गतिरोध को सुलझाने में सऊदी अरब की क्यों दिलचस्पी हो सकती है? कुछ समय पूर्व एक मीडिया इंटरव्यू में आदिल अल जुबैर ने कहा था कि सऊदी अरब पूरे इलाके में अमन चाहता है और इसके लिए कोशिशें कर रहा है एक पूर्व राजनयिक के अनुसार दक्षिण एशिया की राजनीति में निश्चय ही अमीरात एक प्रमुख भूमिका निभा रहा हैं.पाकिस्तान के साथ साथ मोदी सरकार के साथ उस के अच्छे रिश्ते हैं.जब कि एक अन्य राजदूत का कहना हैं कि सऊदी अरब अपने ईरान विरोधी गठजोड़ में मोदी सरकार अपने साथ रखना चाहता है.बहरहाल यह "क्यों" एक वृहद विश्लेषण का विषय हैं. वैसे.इस पूरें घटनाक्रम से अमरीका भी जुड़ा हैं.अमरीका मई तक अफगानिस्तान से अपनी फौजें पूरी तरह से हटाना चाहता हैं, जिस के लियें पाकिस्तान का साथ जरूरी हैं और उधर देश के घरेलू और आर्थिक मोर्चें पर बुरी तरह से विफल पाकिस्तान अरब जगत तक में भी अलग थलग पड़ता जा रहा हैं. शांति प्रक्रिया उस के लिये भी एक अच्छा रास्ता हैं.
विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रिंगला ने पिछलें हफ्तें ही कहा" भारत पाकिस्तान के साथ अच्छे पड़ोसी वालें रिश्तें चाहता हैं और अगर कोई विचाराधीन मुद्दें हैं तो उन्हें द्वि पक्षीय बातचीत से हल करना चाहता हैं लेकिन सार्थक बातचीत सौहार्दपूर्ण माहौल में ही संभव हो सकती हैं, और सौहार्दपूर्ण बातचीत के लियें माहौल बनाने की जिम्मेवारी अब पाकिस्तान की हैं." जाहिर हैं सौहार्दपूर्ण माहौल में आतंक की कोई जगह नही हैं." निश्चय ही संवाद हमेशा रास्ता खोलता हैं, लेकिन आतंक और वार्ता साथ साथ नहीं चल सकते हैं, यह भी हकीकत हैं.बहरहाल इन तमाम सवालों के जबाव के लियें फिलहाल तो संबंध सामान्य बनाने के लियें आवश्यक प्रयासों के साथ- साथ पूर्ण सतर्कता बरतते हुयें पाकिस्तान के रूख/कदमों पर निगाह रखनी होगी. फिलहाल संघर्ष विराम का पालन हो रहा हैं, सरहद पर बंदूकें खामोश हैं. लेकिन यह तो धीरें धीरें पता चलेगा कि कद्दवाहटें क्या वाकई घुल रही हैं, फिजां क्या वाकई बदल रही हैं.समाप्त
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