अमरकंटक, जहाँ ध्यान लगाना नही, अपितु स्वयं लग जाता है - आचार्य विद्यासागर

By Shobhna Jain | Posted on 23rd Mar 2023 | VNI स्पेशल
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अमरकंटक / मध्यप्रदेश, 23 मार्च (सुनील जैन/ वीएनआई) मध्यप्रदेश, छत्तीस्गढ की सीमा पर स्थित सुरम्य पवित्र  मंदिर नगरी अमरकंटक की भूमि पर  पधारें सुप्रसिद्ध साधक संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि अमरकंटक में साधना का उपयुक्त वातावरण है,यहां ध्यान लगाना नहीं पड़ता अपने आप ही ध्यान लग जाता है. ये पर्वतीय क्षेत्र जड़ी बूटी देकर रोग मिटाता है जड़ों को भी मजबूत बनाता है. उन्होंने कहा कि प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति मे यहां  पाई जानें वाली "गुलबकावली "का  बहुत महामत्य है, उस का रस मध्दिम हो रहे नयनों की ज्योति बढ़ा देता है. इस के साथ ही यहा मन को पवित्र कर मन की ज्योति भी बढ़ाई जा सकती है.

     आचार्य श्री विद्यासागर महाराज आगामी २५ मार्च से  नर्मदा नदी के उदगम स्थल पर होने वाले  जैन  संप्रदाय के पवित्र पंच कल्याणक महोत्सव मे हिस्सा लेने अपने संघ के अनेक मुनियों के साथ यहा आय हुये हैं. और संघस्थ साधुओं की अगवानी पर एकत्रित श्रध्दालुओं को संबोधित करते हुये आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि यहां निर्मित विशाल और भव्य जिनालय के निर्माण में मानवों के साथ देवों ने भी योगदान दिया है.यह विशालकाय मंदिर कृत्रिम भी है और देवों ने योगदान दिया है इसलिये ये अकृत्रिम भी है. आपने उन्होंने कहा कि दृढ़ संकल्पी ही यहां आता है. मंदिर निर्माण में पूरे भारत ने सहयोग किया है।आचार्य श्री ने कहा कि पहले भी चातुर्मास में यहां आना हो चुका है.

नर्मदा जी की उद्गम स्थळी  पर बसी सुरम्य  पवित्र नगरी अमरकंटक में   भारत की प्राचीन स्थापत्य  शैली  का उत्कृष्ट उदाहरण,  जैन मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा  तपस्वी,  दार्शनिक संत आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के सन्निध्य में  आगामी 25 मार्च से दो अप्रेल 23 तक होने जा रही हैं. समुद्र सतह से लगभग साढ़े तीन हजार फुट की ऊंचाई पर मैकल पर्वत माला के शिखर अमरकंटक में राजस्थान के बंसी पहाड़ के गुलाबी पत्थरों से ओडिसी शैली में निर्मित मंदिर आचार्य श्री विद्यासगर महाराज की प्रेरणा भावना और आशीर्वाद का यह अनुपम रूप है. मंदिर के जिनालय के मूलभवन में लोहि और सीमेंट का उपयोग नहीं किया गय बल्कि.पत्थरों को तराश कर गुड़ के मिश्रण से  प्राचीनकालीन निर्माण की तकनीक का प्रयोग कर चिपकाया गया है. जिनालय में राजस्थानी शिल्पकारों की  शिल्पकला अत्यंत मनमोहक है.दीवारों मंडप,स्तंभों पर बनी मूर्तियां देख दर्शक मोहित हो जाता है.

 अमरकंटक, यानि  वह स्थान जहा   प्रदेश के अनूपपुर ज़िले मे समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्थान पर मध्य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाडि़यों का मेल होता है. विंध्य व   सतपुडा की पर्वत क्षृंखला के बीच मैकाल पर्वत क्षृंखला के बीचों बीच बसा अमरकंटक सिर्फ पर्वतों ,घने जंगलों , गुफाओं, जल प्रपातों का पर्याय - एक रमणीक  पर्यटनस्थल ही नही बल्कि एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल भी है जहाँ जीवन दाई नदियाँ हैं, जड़ी बूटियों से भरे जंगल हैं”.“ प्रकृति, अध्यात्म और  जीवन का अद्भुत मेल"

        उन्होंने कहा कि जनवरी 94 में सर्वप्रथम अमरकंटक आना हुआ था, तबसे निरंतर सर्वोदय के विकास में कार्यकर्ता लगे रहे. फागुन चैत में भी बरसात होती रहती हैऋषियों मुनियों तपस्वियों, साधुओं ने यहां ध्यान साधना की है इतिहास इसका साक्षी है. आज की जानकारी भी इतिहास बताता रहेगा.

  आचार्य श्री ने कहा कि आदिनाथ भगवान की प्रतिमा  की जल्द ही प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी,वर्षों से जिस की प्रतीक्षा  हम भी कर रहे थे और आप सब भी प्रतीक्षा ही कर रहे हैं। आप भी आये हैं हम भी आये हैं ,मैं भी प्रतिनिधि बनकर यहां आया हूं।व्यवस्था आप सब करेंगे महोत्सव को बहुत ऊंचाई देना है।ये पर्वतीय क्षेत्र जड़ी बूटी देकर रोग मिटाता है जड़ों को भी मजबूत बनाता है।यहां की गुलबकावली का रस मध्दिम हो रहे नयनों की ज्योति बढ़ा देता है,मन को पवित्र कर मन की ज्योति भी बढ़ाई जा सकती है। अब अमरकंटक आने के लिये चारों दिशाओं से मार्ग हैं.आपके लिये पक्की चौड़ी सड़क है तो हम भी पगडण्डी से आ गये। आपने अपने गुरू आचार्य श्री ज्ञान सागर महाराज का स्मरण करते हुये कहा कि उन्होंने ज्ञान दिया,मति और बुध्दि देकर दिशाबोध कराया।इसी निर्देशन पर चलते रहें।आगे भी वंदना करने वाले यहां आते रहेंगे. देश विदेश से श्रधालु इस  आध्यात्मिक आयोजन में हिस्सा लेने यह पहुंच रहे हैं. मंदिर का निर्माण कार्य पिछलें बीस वर्षों से चल रहा हैं.

सर्वोदय तीर्थ व पंचकल्याणक समिति के प्रचार प्रमुख वेदचन्द जैन ने बताया कि प्रातः कबीर चबूतरा से ज्यों ही आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने संघ सहित अमरकंटक की ओर पदविहार आरंभ किया हजारों श्रावक छह किलोमीटर की यात्रा में पैदल चलने लगे.बड़ी संख्या में महिलाएं भी पूरे उत्साह के साथ पैदल चल रहीं थीं.पदयात्रियों का ये कारवां एक किलोमीटर से भी अधिक लंबा था

मंच पर राजेशकुमार इंद्रकुमार जैतहरी कोतमा को प्रथम पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य मिला शास्त्र भेंट का अवसर ऋषभ चंदेरिया कोतमा को और प्रथम दिवस आचार्य श्री को आहार दान का सौभाग्य सिंघई प्रमोद कुमार, विनोद कुमार कोयला परिवार बिलासपुर को प्राप्त हुआ. प्रतिष्ठाचार्य विनय भैया और ब्रम्ह्यचारी दीपक भैया ने  इस अवसर पर गरिममय मंच संचालन किया. वीएनआई/ सुनील जैन 


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