नई दिल्ली, 06 जुलाई, (शोभना जैन/वीएनआई) दुनिया भर में "ट्रेड वार" की गहराती छाया और इसे लेकर अमरीका और चीन के बीच चल रही भारी तल्खियों के बीच गत सप्तांहत हुये ओसाका 'जी-20' शिखर बैठक की उपलब्धि बतौर, भले ही यह नहीं कहा जा सकें कि तल्खियों वाले कुछ ज्वलंत मुद्दों का फौरी समाधान निकल आया, लेकिन सम्मेलन इस मायने में "सफल' कहा जा सकता हैं कि इस से कुछ सदस्य देशों के बीच अनेक "असहज" मुद्दों के हल होने की दिशा में गतिरोध टूटता नजर आया.
इसी संदर्भ में कहें तो सम्मेलन में अमरीका और चीन के बीच की वार्ता से "भीषण ट्रेड वार" के हल होने की दिशा में गतिरोध टूटने की उम्मीद बंधी हैं जिस से दुनिया भर में इस मुद्दें को ले कर वैश्विक आर्थिक संकट का रूप ले लेने की आशंका से चिंता के जो बादल थे, वे कुछ छंटते से नजर आयें. सदस्य देशों के 'लगभग एकमत" रूख से अमरीका पर दबाव पड़ा और दोनों देश तत्काल शुल्क वृद्धि रोकने और व्यापार वार्ता शुरू करने पर राजी हो गये. हालांकि यह अभी कहना मुश्किल हैं कि "संकट" समाप्त हो ही जायेगा लेकिन फिर भी उम्मीद तो बंधी ही है. भारत की आवाज सम्मेलन में खासी मुखर रही. आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, भगोड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ ्कार्यवाही करने के लिये विश्व बिरादरी द्वारा एकजुटता से निबटने जैसे मुद्दों सहित चिंता और सरोकार वाले अनेक बड़े जटिल मुद्दों पर सदस्य देश इस मंच पर भारत के साथ आयें . शिखर बैठक से इतर भारत की द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय बैठकें भी इस मायने में अहम रही, इसी दौरान व्यापार और शुल्क के मुद्दों को ले कर अमरीका के साथ चल रही तनातनी को दूर करने के लिये अमरीका के रूख में कुछ लचीलापन आया और दोनों के बीच चल रहे "सहज" संबंधों में अचानक "असहजता" का सबब बने इस जटिल व्यापारिक मुद्दे को ले कर चल रहा गतिरोध टूटने की उम्मीद बंधी .
शिखर सम्मेलन से इतर प्रधान मंत्री ्नरेन्द्र मोदी के साथ होने वाली चर्चित द्विपक्षीय वार्ता से चंद घंटो पहले आये अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस ट्वीट से माहौल तनावपूर्ण हो गया था कि 'भारत द्वारा अमरीकी निर्यात पर बढाई गई शुल्क वृद्धि अमरीका को अस्वीकार्य है और वह उसे वापस लें'. अमरीका के साथ व्यापार और शुल्क के मुद्दों को ले कर दोनों के बीच जो तनातनी चल रही थी, वह गतिरोध ओसाका में दोनों शिखर नेताओं के बीच बैठक से वह टूट सकता सकता हैं, ऐसी उम्मीद बंधी थी कि. बहरहाल बैठक हुई और अच्छी बात यह रही कि राष्ट्रपति ट्र्ंप के शुरूआती कड़े तेवर के बावजूद यह द्विपक्षीय मुलाकात "सहज" माहौल में हुई. बातचीत में दोनों देशों ने व्यापार शुल्क ्जैसे मुद्दों को ले कर चल रहे गतिरोध को समाप्त करने के लिये जल्द ही वाणिज्य मंत्रियों की बैठक बुलाने की घोषणा की, वैसे इस से पहले भी दोनों देश इन मुद्दों पर मंत्री स्तरीय तीन बैठकें कर चुके हैं, दोनों देशों ने रक्षा, सुरक्षा के साथ व्यापारिक सहयोग बढाने का फैसला किया बैठक में भारत ने ईरान से तेल नही खरीदने के अमरीकी अल्टीमेटम के संदर्भ में अपनी उर्जा सुरक्षा सरोकारों और फारस की खाड़ी क्षेत्र को ले कर अपनी सुरक्षा संबंधी चिंतायें भी मुखरता से उठाई. ईरान मुद्दा इस लिये भी फौरी चिंता का विषय हैं क्योंकि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को ले कर दोनों देशों के बीच शुरू हुई तल्खियॉ इतनी बढ गयी हैं कि दोनों युद्ध के कगार पर ्पहुंच गये हैं.
जी-20 ताकतवर देशों का ग्रुप है. दुनिया की कुल 85 प्रतिशत सकल घरेलू वृद्धि 'जी डी पी' में अकेले इस समूह का योग्दान रहता हैं.शिखर बैठक के अलावा अन्य इतर बैठकों में जहा अनेक मुद्दों पर सहमति बनती नजर आयी उन में गतिरोध टूटता भी नजर आया, साथ ही जटिल द्विपकक्षीय मुद्दों में भी आगे बढने का रास्ता बनता नजर आया . लगता तो यही है कि राष्ट्रपति ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों को ले कर उन के शुरूआती कड़े तेवरों पर सदस्य देशों के द्बाव का उन पर असर हुआ, लेकिन "मैं और सिर्फ मैं" की राष्ट्रपति ट्रंप की नीति की वजह से जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर अमरीका की ्भारत सहित सदस्य देशों के साथ असहमति बनी रही और अमरीका इस मुद्दें को ले कर अकेला पड़ता गया.
शिखर बैठक में भारत के मुखर स्वर की वजह से दुनिया के बड़े देशों द्वारा भगोड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही किये जाने पर सहमति जताते हुए इसे ओसाका घोषणा पत्र में शामिल किया गया. लेकिन इस के साथ ही एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए "डिजीटल इकॉनोमी" पर कड़ा रूख स्पष्ट करते हुए हुए जापान और अमरीका रूख से अलग हटते हुए डिजीटल इकॉनोमी पर ओसाका घोषणा पत्र के "ओसाका ट्रैक " से दूर रहने का फैसला किया. द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय बैठकों में भी भारत ने "निष्पक्षता" से अपनी चिंतायें और सरोकार रखे. रूस, भारत और चीन के बीच त्रिपक्षीय बैठक में भी भारत ने संरक्षणवाद के मुद्दे पर इन देशों के साथ आवाज उठाई लेकिन साथ ही उस ने जापान और अमरीका के साथ हुई त्रिपक्षीय बैठक में दक्षिण चीन सागर क्षेत्र मे चीन का "एकछत्र राज होने " के दावें संबंधी गतिविधियों पर अपनी चिंतायें रखी. चीन की इन गतिविधियों के खिलाफ भारत ,अमरीका , जापान और आस्ट्रेलिया समूह पहले से ही साथ हैं.
डिजिटल ईकॉनोमी के पेंच की अगर बात करे तो जापान के प्रधान मंत्री शिंजो आबे ने "दुनिया भर में डेटा के मुक्त प्रवाह" का प्रस्ताव रखा, "ओसाका ्ट्रैक " के इस प्रस्ताव का अमरीका प्रबल समर्थक हैं. चीन, रूस सहित योरोपीय संघ सहित सभी देश इस प्रस्ताव के समर्थक रहे लेकिन भारत इस तरह के प्रस्ताव को अपने राष्ट्रीय हितों के खिलाफ मानता है. वैसे भी अमरीका के साथ यह मुद्दा पहले से ही फौरी "असहजता" वाला मुद्दा बना हुआ है.गौरतलब हैं कि भारत सरकार ने पिछले साल भुगतान सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों के लिए देश के नागरिकों से जुड़ी तमाम जानकारी और आंकड़ों को भारत में ही रखने को कहा है. इन जानकारियों को विदेश में नहीं देखा जा सकेगा. कुछ अमेरिकी कंपनियों ने भारत सरकार के इस कदम का विरोध किया क्योंकि इसके लिए उन्हें अतिरिक्त निवेश करना होगा. ऐसी खबरे थी कि भारत सरकार के इस प्रावधान से नाराज होकर अमेरिका एच-1बी वीजा की संख्या को सीमित करने पर विचार कर रहा है,जो निश्चय ही अमरीका मे आई टी क्षेत्र मे काम करने के इच्छुक भारतीय प्रोफेशनल्स की संख्या सीमित करेगा.
अमरीका की इन संरक्षंणवादी नीतियों को ले कर दुनिया भर में चिंता व्याप्त है. चिंता इस बात को ले कर हैं कि अमरीका की संरक्षणवादी नीतियॉ अगर इसी तरह चलती रही तो इस से अमरीका दुनिया भर की बाजार पर हावी हो जायेगा. अमरीका और चीन के बीच व्यापार युद्ध की बात करें तो इन नीतियों का चीन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा हैं, यह दूसरी बात हैं कि चीन भी ऐसी ही संरक्षणवादी नीतियों के जरियें विश्व बाजार में अपनी पैंठ बना रहा हैं इसी सब के चलते दोनों के बीच तनातनी ने व्यापार युद्ध का रूप ले लिया, अच्छी बात यह रही कि दोनों के बीच व्यापार वार्ता शुरू करने पर सहमति बन सकी. अगर भारत और अमरीकी व्यापारिक गतिरोध की बात करे तो गत माह अमेरिका द्वारा स्टील और अल्यूमीनियम समेत कुछ उत्पादों पर ज्यादा शुल्क लगाए जाने के जवाब में भारत ने भी 16 जून को बादाम और अखरोट समेत 28 उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया था, जिस से ट्रंप बुरी तरह से नाराज हो गये . इसी प्रष्ठभूमिं में पी एम मोदी से होने वाली मुलाकात से ठीक पहले उन्होंने शुल्क हटाने का अल्टेमेटम दे दिया.गौरतलब हैं कि ट्रंप प्रशासन ने गत पॉच जून को सामान्य तरजीही प्रणाली (जीएसपी) व्यापार कार्यक्रम के तहत लाभार्थी विकासशील राष्ट्र का भारत का दर्जा खत्म कर दिया था. जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस अमेरिकी ट्रेड प्रोग्राम है जिसके तहत अमेरिका विकासशील देशों में आर्थिक तरक्की के लिए अपने यहां बिना टैक्स सामानों का आयात करता है।
बहरहाल अब भारत 2022 में अगले जी-20 शिखर बैठक की मेजबानी करेगा, ऐसे में मुद्दों को न्यायसंगत ढंग से असहमति को सहमति से हल करने मे उस की भूमिका और भी अहम हो जायेगी. समाप्त
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