नई दिल्ली 21 मार्च (वीएनआई)इस वर्ष चैत्र नवरात्र पर तृतीया तिथि का क्षय हुआ है और चैत्र माह की द्वितीया और तृतीया तिथि एक साथ पड़ रही है, इसलिये नवरात्र में मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी और तीसरे रूप मां चंद्रघंटा की पूजा भी आज ही के दिन युगपत् रूप से की जा रही है।
ज्योतिषशास्त्र के ज्ञातायों के अनुसार द्वितीय और तृतीया तिथि का पूजन एकसाथ ही होगा। शास्त्रानुसार यदाकदा नवरात्र पूजन में अगर किसी तिथि का क्षय होता है तो उस तिथि का अधिपत्य रखने वाली देवी व देवता का मात्र पुष्टकारक पूजन ही किया जाता है।
नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के 'ब्रह्मचारिणी' रूप की पूजा करने का विधान है। श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी हैं। यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है।
जो दोनो कर-कमलो मे अक्षमाला एवं कमंडल धारण करती है। वे सर्वश्रेष्ठ माँ भगवती ब्रह्मचारिणी मुझसे पर अति प्रसन्न हों। माँ ब्रह्मचारिणी सदैव अपने भक्तो पर कृपादृष्टि रखती है एवं सम्पूर्ण कष्ट दूर करके अभीष्ट कामनाओ की पूर्ति करती है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा निम्न मंत्र के माध्यम से किया जाता है।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
अर्थात् जिसके एक हाथ में अक्षमाला है और दूसरे हाथ में कमण्डल है, ऐसी उत्तम ब्रह्मचारिणीरूपा मां दुर्गा मुझ पर कृपा करें।
नवरात्र के दूसरे दिन मां भगवती को चीनी का भोग लगाने का विधान है। ऐसा विश्वास है कि चीनी के भोग से उपासक को लंबी आयु प्राप्त होती है और वह निरोगी रहता है। साथ ही उसमें अच्छे विचारों का आगमन होता है और मां पार्वती के कठिन तप को मन में रखते हुए संघर्ष करने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
नवरात्र के तीसरे दिन दुर्गाजी के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी के वंदन, पूजन और स्तवन करने का विधान है।इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
इनकी आराधना से मनुष्य के हृदय से अहंकार का नाश होता है तथा वह असीम शांति की प्राप्ति कर प्रसन्न होता है। माँ चन्द्रघण्टा मंगलदायनी है तथा भक्तों को निरोग रखकर उन्हें वैभव तथा ऐश्वर्य प्रदान करती है। उनके घंटो मे अपूर्व शीतलता का वास है। मां चंद्रघंटा देवी की पूजा निम्न मंत्र के माध्यम से किया जाता है।
पिंडजप्रवरारूढ़ा चंडकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता।।
अर्थात् श्रेष्ठ सिंह पर सवार और चंडकादि अस्त्र शस्त्र से युक्त मां चंद्रघंटा मुझ पर अपनी कृपा करें।