नई दिल्ली 24/6/16 सुनील कुमार
जंगल का सन्नाटा उसे रोक रहा था
जो उसने देखी उस जुगनू की चमक
उसने पल में जंगल पार कर डाला
आंधियों ने जो देखा उन नंगे बच्चों को,
कागजों के जहाज उड़ाते हुए
आंधियों ने तबाही का इरादा बदल डाला
दरिया के उफान से बेपरवाह
जिसने हाथों को पतवार बनाया
उसने दरिया का पार कर डाला
गिर के सम्भलना , फिर चलना
जिस की आदत बन गई
उसने किला फतह कर डाला
जो किनारे ने अपनी तरफ आते
दरिया को ललकारा ,दरिया ने
अपना बहाव ,उलट डाला
पांव वाले तकते रह गए
बिना पांव वालों ने होसलों की
बैसाखी ली और रास्ता पार कर डाला ,
डूबता सूरज उजाले ले कर जा रहा था
छोटे से चिराग ने दुनिया को
रोशन कर डाला