दिल्ली 17 अक्टूबर (वीएनआई )सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए पुस्तकालय में न्याय की एक नई प्रतिमा का अनावरण किया गया है, जो इसके प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है। यह प्रतिमा, जो औपनिवेशिक युग की प्रतिष्ठित प्रतिमा के विपरीत है, एक महत्वपूर्ण संकेत है। नए संस्करण में परंपरागत मूर्ति की तरह नई प्रतिमा के एक हाथ मे तराजू तो है पर दूसरे हाथ में तलवार की जगह भारत का संविधान है., लेडी जस्टिस' की इस मूर्ति मे आंखों पर पट्टी बान्ध कर नही बल्कि खुली आँखों के साथ खड़ी हैं,
प्राप्त जानकारी के अनुसार यह परिवर्तन भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़की पहल पर किया गया है और यह आधुनिक भारत में न्याय के प्रति एक जागरूक और विकसित दृष्टिकोण को दर्शाता है। पहले के संस्करण में, आंखों पर पट्टी कानून के समक्ष समानता का प्रतीक थी, और तलवार अधिकार और अन्याय को दंडित करने की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती थी। हालांकि, इस पुनः डिज़ाइन की गई प्रतिमा को सांकेतिक रूप से देखा जाएन्याय की देवी की नई मूर्ति साफ संदेश दे रही है कि न्याय अंधा नहीं है. बल्कि पूरी तरह से जागरूक है, जो संविधान द्वारा निर्देशित है। . हालांकि, फिलहाल यह साफ नहीं है कि ऐसी और मूर्तियां लगाई जाएंगी या नहीं.
न्याय की देवी की नई मूर्ति में ःपूरी मूर्ति सफेद रंग की है
प्रतिमा में न्याय की देवी को भारतीय वेषभूषा में दर्शाया गया है. वह साड़ी में दर्शाई गई हैं
आंखे खुली हैं उन पर पट्टी नही बंधी है
सिर पर सुंदर का मुकुट भी है
माथे पर बिंदी, कान और गले में पारंपरिक आभूषण भी नजर आ रहे हैं
न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू है
दूसरे हाथ में संविधान पकड़े दिखाया गया है
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह मूर्ति नई नहीं है. इसे पिछले साल अप्रैल में ही जजों की लाइब्रेरी में लगाया गया था. लाइब्रेरी में इस मूर्ति को लगाने के पीछे का एक ुद्देश्य अध्ययन को बढ़ावा देना भी है.
यह नई प्रतिमा न केवल एक प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय न्यायपालिका के विकास, जागरूकता और संवैधानिक प्रतिबद्धता का भी प्रमाण है।