रायपुर 28 फरवरी (वीएनआई) पुराने समय में गर्मी के मौसम में पानी की कमी को दूर करने के लिए कई कुएं और सीढ़ीनुमा तालाब या बावलियां बना कर बारिश के पानी को इकट्ठा किया जाता था.सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ वास्तुकला का भी अद्भुत नमूना माना जाने वाली बावली दरअसल पानी का एक ऐसा विशाल कुंड है, जिसमें पानी तक आने जाने के लिए सीढ़ियां बनी होती हैं, ्काफी समय पहले व्यापार के लिए की जाने वाली लंबी यात्राओं में रात्रि विश्राम के लिए इन्हीं बावलियों का इस्तेमाल किया जाता था.बावली के पानी के आस-पास बनाए गए बरामदों और कमरों में गर्मी से बचने के लिए पनाह ली जाती थी.इसके अलावा रिहायशी इलाकों में इनका इस्तेमाल पानी की ज़रूरत पूरी करने के लिए किया जाता था. हालांकि वक़्त के साथ-साथ ये बावलियां अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं परंतु अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के बम्हनी गांव के युवकों ने पत्थरों और कचरे से पटी सैकड़ों साल पुरानी 'बावली' की खुदाई कर उसने पानी निकाला है. ये बावली गांव के एक पुराने तालाब से लगी हुई है. ग्रामीणों का मानना है कि ये करीब सवा सौ साल पुरानी होगी.
पुरातत्व विभाग के संचालक आशुतोष मिश्रा ने सप्ताहभर के भीतर टीम भेजकर बावली के इतिहास खंगालने की बात कही है. गांव के सरपंच कमलेश कौशिक ने बताया कि युवाओं की टोली ने आठ जनवरी को बावली खोदना शुरू कर दिया था। नौ फरवरी तक खोदने के बाद इस बावली से जलधारा फूट पड़ी। ग्रामीणों का मानना है कि बम्हनी में पहले कबीरपंथ के गुरु कंवल दास भी रहा करते थे। यहां माता साहेब की समाधि भी है। ग्रामीणों का कहना है कि बावली का इस्तेमाल स्नान या दूसरे प्रयोजन लिए होता रहा होगा।
ग्रामीणों के अनुसार, बावली में एक के बाद एक कुल 21 सीढ़ियां मिली हैं। 35 फीट खोदने के बाद पानी निकला। बताया जा रहा है कि खुदाई में घोड़े के अवशेष, कांसे की थाली, शिवलिंग व नंदी की मूतियों के साथ अन्य मूर्तियां भी मिली हैं।