नई दिल्ली, 11 मई (विश्वास/वीएनआई) स्कूल अब आपके घर पर ! जी, कोरोना की बढती दहशत के दौर में स्कूल को अब बड़े पैमाने पर छात्रों के घर लाया गया हैं. कोरोना काल की चुनौतियों से निबटनें का यह फौरी हल निकाला गया हैं ताकि बड़े छात्रों के साथ साथ छोटे छात्रों की पढाई बर्बाद नहीं हो, लेकिन निश्चित तौर पर इस स्कूल में संभल कर पढना होगा यानि कुछ एहतियात के साथ.नेत्र चिकित्सकों का भी मानना हैं कि ऐसे में बच्चे खास कर छोटे बच्चों को अगर कुछ एहतियात बरतना सिखाया जायें तो उन की ऑखो को ज्यादा तकलीफ नही होगी.
शिक्षा के आधुनिकीकरण के साथ बच्चे सिर्फ कुछ घंटों के लिए ही माता-पिता से दूर स्कूलों और कॉलेजों में जाने लगे और अपनी शिक्षा ग्रहण करने लगें हालांकि कुछ बच्चे उच्च शिक्षा और विशेष विषयों पर शोध करने के लिए अभी भी घर से बहुत दूर विदेश जाने लगे थे। लेकिन किसी को बिल्कुल भी नहीं अंदेशा था कि समय एक दिन इस तरह बदलेगा की जो स्कूल की दूरी टेक्नोलॉजी के माध्यम से आपके घर तक सिमट आएगी। खास तौर पर वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न हुई स्थति में दुनिया के कई देशों और हमारे देश भारत मे सभी स्कूल-कॉलेजों के द्वार पर ताले लटक गए है, हालांकि सरकारों ने प्रयास किया है कि बच्चों की शिक्षा ज्यादा प्रभावित न हो इसके लिए अपने दिशा-निर्देश देते हुए ऑनलाइन कोचिंग के निर्देश दिए है। अब स्थति ऐसी हो गई हैं कि छोटे छोटे बच्चों का स्कूल भी घर आ गया हैं, लेकिन इस के साथ कुछ् खतरें भी घरों में घुस आयें हैं.छोटे छोटे बच्चों को ऑख की तकलीफ होने लगी हैं. तो ऑनलाईन स्कूल जरूरी हैं तो इसके लिये एहतियात भी जरूरी हैं. देखा जायें तो बच्चों के मोबाईल और लेपटॉप पर कम्प्यूटर खेल खेलने की आदत की चुनौती से तो मॉ बाप जूझ ही रहे थे कि अब कम्प्यूटर स्कूल भी आ गया हैं. बहरहाल रास्ता तो निकालना ही होगा.
राजधानी स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल के वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक व एसोसियेटे्ड प्रोफेसर डॉ मानव दीप सिंह के अनुसार खास तौर पर छोटे बच्चों को मोबाईल पर पढाई नही करनी चाहिये. उन्हें अपनी शिक्षा डेस्क टॉप पर ही करनी चाहिये वो भी ज्यादा से ज्यादा डेढ दो घंटे से ज्यादा एक साथ नहीं. डेस्कटॉप से भी समुचित दूरी रखें, बीच बीच में ब्रेक लें, ब्रेक के वक्त लंबी दूरी पर देखे. इन दिनों खासतौर पर स्वच्छ वायु मंडल की वजह से रात को चॉद और तारों को कुछ समय तक निहारे.डॉ सिंह ने कहा हालांकि छोटी उम्र में बच्चों के कम्प्यूटर पर काम करने से ऑखों पर चश्मा लगने का खतरा बढ जाता है. यह भी कहा जाता हैं क़ी क़म्प्यूटर पर देर तक काम करने से छात्रों की ऑखों और दिमाग के बीच तालमेल कुछ समय के लिये कम होने का खतरा हो सकता हैं हालांकि इस के वैज्ञानिक शोध नही हुए हैं. डॉ सिंह मानते हैं कि जरूरी हैं इन तमाम हालात में माता पिता बच्चों को कम्प्यूटर पर काम करते वक्त एहतियात बरतना सिखाये.
अगर व्यापक संदर्भ में बात करें तो सवाल उठ रहे हैं कि क्या अब आने वाले समय में ऑनलाइन शिक्षा जैसे कॉन्सेप्ट भारत मे भी सफल हो पायेगें हालांकि पहले भी कुछ कुछ जगह डिस्टेंश एजुकेशन में ऑनलाइन क्लासेज होती थी, लेकिन ये उनके लिए थी जो रेगुलर क्लास लेने में असमर्थ थे। अगर भारत मे ऑनलाइन शिक्षा (घरआया स्कूल) स्कूल का विस्तार हो जाता है तो क्या इसके कुछ हानिकारक परिणाम भी होंगे या फिर कुछ हानि के साथ ज्यादा फलदायक परिणाम होंगे।
अब आप कल्पना कीजिये पहले जब माता-पिता बच्चो को मोबाइल हाथ मे लेने पर डाँटते थे, कहते थे आँखे खराब हो जाएगी। अब वही माता-पिता उन बच्चो को घंटो उसी लैपटॉप पर शिक्षा ग्रहण करने के लिए दवाब डालेंगे। एक अन्य बिंदु यह भी हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में या समाज के सुविधाहीन वर्गों मे अगर किसी के माँ बाप कम पढ़े लिखे निकले तो बच्चों के टेक्नोलॉजी की कुसंगति में भी पड़ने का खतरा हो सकता हैं. बहरहाल यह समय की चुनौती हैं और इसे अपनाना जरूरत तो इस के लिये एहतियात बरतना ही श्रेष्ठ हैं.
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