माँ अब घर में क्यों नहीं आती हैं गौरैया,क्या नाराज हैं गौरैया?

By Shobhna Jain | Posted on 20th Mar 2021 | देश
altimg
बीकानेर, 20 मार्च (शोभनाजैन/वीएनआई) भोर के धुंधलका और धीरें धीरें उस धुंधलतें को धकेलती मद्धम रोशनी...तिलस्म सा बुनता हुआ माहौल.. 
धुंधलके की मद्धम रोशनी में यह हैं, बहिन का बीकानेर का घर, खुला खुला सा घर, ऑगन और लॉन में लगे विशाल अशोक के पेड़ और घर  में लगे  दूसरें पेड़.. इन्हीं पेड़ों पर  लटकाई गई लक़ड़ियों की छोटी  झोंपड़ियॉ ,जहा कुछ झोंपड़ियों में चिड़ियों ने अपने बसेरे भी बनायें है. और भोर के इस धुंधलकतें में इन पेड़ों पर बसेरा बनाने वाली चीड़ियों की  लगातार तेज  होती चहचाहट, और फिर शाम होते होतें एक बार फिर  यह घर ऑगन  चिड़ियों की  चीं चीं की चहचहाट  से गुलजार. लगता हैं सुबह काम पर जाने से कुछ चिड़ियॉ वहा रखे दाना  पानी  लेने के दौरान वे सब आपस में जोर जोर जोर से बतियाती है और  शाम को लौटनें पर जोर जोर से चईं चीं कर  एक दूसरें को दिन भर की रिपोर्ट दे रही होती हैं, जब कि कुछ चिड़िया भर वहा रखा दाना पानी खा कर एक ड़ाल से दूसरी पर झूल रही होती है. .सूरज की किरणें उतरतें उतरतें पेडों पर लटके दाना पात्रों और  लॉन की घास पर बिखेरें गयें अनाज के दानों को चुगती गिलहरियॉ, फाख्तायें और कबूतर...
इस सब के बीच अक्सर कुछ बरस पहले  का  वाकया  अक्सर याद आता हैं.जब हम  दिल्ली में  बहुमंजिला ईमारत में  रहने वालें  एक एक परिचित के फ्लेट में बैठे हुयें यहा बहिन के घर में आने वाली गौरैया, फाख्ता और गिलहरियों की बातें कर रहे थे और बातें हो रही थी   अब शहरों, कस्बों के घरों में कभी घर ऑगन में फुदककर चीं चीं करने  वाली और अब ,घरों से गायब हो गई गौरैया की, तो उन का पॉच चार बरस का बेटा  कौतूहल भरे ऑखों से बोला" मम्मा अब घर में क्यों नहीं आती हैं गौरैया, क्या नाराज हैं गौरय्या?  बच्चें ने घर से बाहर पार्क या और जगहों पर चिड़िया देखी होगी, लेकिन जाहिर हैं उस  के लियें हमारी बातें हैरानी भ्री होगी कि जिस गौरैयाके घरों में आने की बात बड़े लोग कर रहे हैं, आखिर अब वो हमारी घरों में क्यों नहीं आतीं,क्या वो नाराज हैं?
सच हैं गौरैयॉ, फाखतायें, गिलहरियॉ सब हम से दूर जा रही हैं.घर के ऑगन में फुदकने वाली और मस्ती से फिर्र फुर्र कर कभी यहा तो कभी वहा उड़्ने वाली गौरैया हम से नाराज हैं, हम ने उन के ठिकानों/ बसेरों को हड़प लिया हैं. लगभग दस हजार बरस से इंसान के साथ सुख चैन से रहने वाली गौरैयारै आखिर  क्यों हमारें घरों से गायब क्यों होती जा रही हैं.कारण हमारें खुद के रचे हुयें हैं, पक्के मकान, बदलती जीवनशैली और मोबाइल रेडिएशन से यह धीरे-धीरे विलुप्त जा रही है. वर्ष २०१० से हर बरस बीस मार्च को  विश्व गौ रैया दिवस  मनाया जाता है, ताकि जिस गौरैया को हमने अपने घर ऑगन से दूर किया, वह नजदीक आ सकें.इस दिवस का उद्देश्य गौरैया का  संरक्षण करना है. इस बरस तो इस दिवस का थीम ही' मै गौरैया को प्रेम करता हूं " रखा गया. पर हकीकत यही हैं कि कुछ बरस पहलें उस बच्चें ने जो सवाल पूछा था, सवाल यथावत कायम है. गौरैया की संख्या लगातार कम होती जा रही हैं.लगातार घट रही गौरैया की संख्या को अगर गंभीरता से नहीं लिया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब गौरैया हमेशा के लिए दूर चली जाएगी.रिपोर्ट्स के अनुसार गौरैया की संख्या में करीब 60 फीसदी तक कमी आ गई है.दिल्ली में तो गौरैया इस कदर दुर्लभ हो गई है कि  आसानी से ्ये हमें दिखती ही नहीं हैं., इसलिए साल 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य-पक्षी घोषित कर दिया.इसी चिंताजनक स्थति के मद्देंनजर ब्रिटेन की 'रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस' ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को "रेड लिस्ट" में डाला.
भारत के जानें मानें सम्मानित कन्जर्वेशनिस्ट मोहम्मद इस्माईल दिलावर द्वारा स्थापित संस्था "नेचर फोर एवर सोसायटी" के पहल पर  "इको सिस्टम एक्शन फॉउ डेशन और अनेक राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय संगठनों ने मिल कर गौरैया और ऐसी ही पक्षियों के संरक्षण के लियें इस दिवस को पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था. नेचर फॉरएवर सोसायटी का एक घोसला अपनाएं अभियान भी  शुरू किया. लगातार घट रही गौरैया की संख्या को अगर गंभीरता से नहीं लिया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब गौरैया हमेशा के लिए दूर चली जाएगी। गौरतलब है कि गौरेया 'पासेराडेई' परिवार की सदस्य है, लेकिन कुछ लोग इसे 'वीवर फिंच' परिवार की सदस्य मानते हैं. गौरेया अधिकतर झुंड में ही रहती है. भोजन तलाशने के लिए गौरेया का एक झुंड अधिकतर दो मील की दूरी तय करता है. शहर कस्बों से गौरैया गायब हो रही हैं, लेकिन समय रहतें प्रयासों से हम अपनी छुटकी सी चिरैया को बचा सकेंगें.
आईयें हम अपनी ग रैया को प्यार करें उसे अपने पास बुलानें के लियें उसे रहने बसने के लियें माहौल बानायें.छोटें से घरों के कोनें में,हरियाली के छोटे से टुकड़ें में भी अगर हम प्रयास करें तो  उस के  बसेरें के लियें जगह छोड़ सकतें हैं. घौंसलें की जगह खाली रखें,दाना पानी की व्यवस्था रखें और ऐसा निर्भर माहौल बनायें जहा वह आसानी से बस सकें. तब अबोध बालक गा सकेगा" चुन चुन करती आई चिड़ियॉ, घास का दाना लाई चिड़ियॉ" (वीएनआई)

Leave a Comment:
Name*
Email*
City*
Comment*
Captcha*     8 + 4 =

No comments found. Be a first comment here!

ताजा खबरें

Connect with Social

प्रचलित खबरें

Today in history
Posted on 11th Nov 2022
© 2020 VNI News. All Rights Reserved. Designed & Developed by protocom india