तीन कमरे का घर, खेती और करोड़ों की इज्जत यही हैं सुलखान सिंह।

By Shobhna Jain | Posted on 24th Apr 2017 | देश
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लखनऊ 24 अप्रैल (वीएनआई )सुलखान सिंह अब नए पुलिस महानिदेशक हैं देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के। एक छोटे से गांव का लड़का बिना समझौता किये, कामयाबियों की सीढ़ियां चढ़ता हुआ आख़िरकार उस जिम्मेदारी तक पहुंच गया जहां 22 करोड़ लोग उससे आस लगाए हुए हैं। कौन हैं ये सुलखान सिंह जो आज यूपी के लॉ एंड आर्डर को सही करने की एक नयी उम्मीद बन गए हैं - 1980 बैच के कैडर सुलखान सिंह को बेहद तेज तर्रार, मजबूत, सादगी पसंद, ईमानदार और किसी भी कीमत पर समझौता न करने वाला आईपीएस अफसर माना जाता है। वास्तव में हम एक पुलिस वाले से जैसी उम्मीद करते हैं बिलकुल उसी छवि के हैं सुलखान सिंह। अजय देवगन की फिल्म सिंघम का एक बहुत प्रसिद्ध संवाद था " मेरी जरूरतें कम हैं इसीलिए मेरे काम में दम है"। वास्तव में जब आप सुलखान सिंह को देखते हैं तो यही एहसास होता है कि उनकी ऐसी कोई जरूरत या इच्छा है ही नहीं जिसके लिए उन्हें समझौता करना पड़े या किसी के आगे झुकना पड़े। वो अपने काम अपने फ़र्ज़ के आगे झुकते हैं और यही काफी है। सुलखान सिंह का जन्म यूपी के बाँदा जिले के बेहद साधारण किसान परिवार में हुआ था। आठवीं तक की पढाई गांव में ही हुई, उसके बाद तिंदवारी से हाईस्कूल और फिर 1975 में आदर्श बजरंग इंटरकॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। पढ़ने में तेज़ थे इसलिए देश के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में से एक आईआईटी रुढ़की से इंजीनियरिंग का मौका मिल गया। बाद में उन्होंने लॉ की पढाई भी पूरी की थी। उनके दोस्त, गांव वाले, बैचमैट और हर वो सख्श जो उन्हें जनता है, बताता है कि वे बेहद सरल स्वाभाव के हैं। कहते हैं कि वे जब गांव आते हैं तो उनके मिलनसार स्वाभाव और सादगी से गांव वाले समझ ही नहीं पाते कि वे पुलिस के एक बहुत बड़े अधिकारी से बात कर रहे हैं। इसके अलावा भी ऐसा एक भी किस्सा अब तक सामने नहीं आया जब उन्होंने किसी को भी अपनी वर्दी या अहोदे का घमंड दिखाया हो। सूबे में उन्हें सबसे बड़ी जिम्मेदारी 2001 में मिली थी जब वो लखनऊ में डीआईजी के पद पर तैनात किये गए थे। उस समय भी प्रदेश के साथ देश में भी भाजपा की ही सरकार थी और यूपी के मुख्यमंत्री तब राजनाथ सिंह थे। उस समय सुलखान सिंह ने अपनी रेंज में आये कई ऐसे अफसरों का तबादला कर दिया था जिनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। इसके बाद वे एकदम से चर्चा में आ गए थे। उनसे जुड़ा एक किस्सा यह भी है कि एक बार अपना ट्रांसफर रुकवाने आए एक एसओ को उन्होंने दौड़ा लिया था। 2007 में बसपा की सरकार में मायावती ने उन्हें भर्ती घोटाले की जांच सौंप दी। साथ ही शैलजा कांत मिश्र को भी उनके साथ लगाया गया। सुलखान ने जांच कर भर्ती को रद्द करने की सिफारिश कर दी। जिसके बाद बवाल हुआ लेकिन वो नहीं मानें। वे सख्त हैं लेकिन सुधारात्मक कारवाही के पक्ष में ज्यादा रहते हैं और इसकी एक झलक तब देखने को मिली जब 2009 में आईजी जेल रहते हुए उन्होंने एक पहल की और 10 जेलों में यूपी बोर्ड के परीक्षा केंद्र बने। इसके अलावा, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के परीक्षा केंद्रों को भी मंजूरी दी गई थी। लखनऊ, इलाहाबाद और बरेली की जेलों के बाद कैदियों की शिक्षा जारी रखने के लिए उन्होंने याचिका भी दायर की थी। मायावती की सरकार में की गयी भर्ती घोटाले की जाँच की आंच 2012 में दिखाई दी जब एडीजी रैंक के सुलखान सिंह को उन्नाव के उस पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में भेज दिया गया जहां आमतौर पर डीआईजी रैंक के अधिकारीयों की ही पोस्टिंग होती थी। बहरहाल यही काम करते हुए उन्हें प्रमोशन भी मिला और वे अप्रैल 2015 में डीजी बन गए। इसके बाद उन्हें डीजी ट्रेनिंग का कार्यभार सौंपा गया। बड़े अधिकारीयों में इस पद को कुछ खास नहीं माना जाता लेकिन उन्होंने इसे पूरी गंभीरता से लिया और ट्रेनिंग के तरीकों को सुधारने में लग गए। उनका एक पक्ष समाज सेवा से भी जुड़ा हुआ है। साइड पोस्टिंग के समय वे अक्सर जागरूकता फ़ैलाने का भी काम करते थे जिनमें एक काम दीपावली के समय स्कूल कॉलेजों में जाकर बच्चों को पटाखों से होने वाले नुक्सान के बारे में जागरूक करना था। उनकी बहादुरी, काम और ईमानदारी के लिए उन्हें पुलिस पदक और राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया जा चुका है। वे अपने साथी आईपीएस अधिकारियों के बीच काफी लोकप्रिय और सम्माननीय हैं। उनकी सादगी और जरूरतों का अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि इतने बड़े बड़े और कमाऊ (अगर भ्रष्ट हों तो इन पदों पर रहते हुए आप क्या क्या नही कमा और बना सकते) पदों पर रहने के बावजूद अचल संपत्ति के नाम पर उनके पास केवल तीन कमरे का एक घर और थोड़ी सी खेती की जमीन है। यह घर लखनऊ में स्थित अलकनंदा अपार्टमेंट में है। इस घर को उन्होंने लखनऊ डेवलपमेंट अथारिटी से किस्तों में लिया था। उनके पास 2.3 एकड़ जमीन है जो उन्होंने बांदा के जोहरपुर गाँव में 40 हजार रुपयों में खरीदी थी। अब जबकि उन्हें पुलिस महानिदेशक के रूप में प्रदेश की सबसे बड़ी जिम्मेदारी दी गयी है और पदभार ग्रहण करने के साथ ही अपने इरादे साफ भी कर दिए हैं। उन्होंने वैसे तो बहुत सारी बातें कहीं लेकिन सबसे अच्छी बात ये कही कि पुलिस अगर बिना किसी दबाव में आए निष्पक्ष कार्रवाई करेगी तो बाकी समस्याएं अपने आप ही हल हो जाएंगी। वास्तव में यह बात एकदम सही है और उम्मीद है कि यूपी में पुलिस के काम के तरीके और छवि दोनों को सही करने में उन्हें कामयाबी मिलेगी।

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