एक 'शापित' गांव का किस्सा, जहा रात तो दूर दिन मे भी जाने से घबराते है लोग

By Shobhna Jain | Posted on 23rd Nov 2015 | देश
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जयपुर 23 नवंबर (अनुपमाजैन/वीएनआई) राजस्थान मे एक आज भी खंडहरनुमा एक ऐसा गांव है जहा आबादी तो दूर पिछले 170 वर्षो से रात की बात तो क्या करे दिन मे भी कोई जाता नही है.जैसलमेर के पश्चिम में 18 किलोमीटर दूर कुलधरा नाम का एक ऐसा गाँव है जहाँ क़रीब दो शताब्दियों से मरघट जैसी शांति है. कहा जाता है यह गांव'शापग्रस्त' है और शाप है कि यहा कभी कोई नहीं बस पायेगा. हालांकि आधिकारिक तौर् पर इस बारे मे कुछ नही गया है. राजस्थान के जैसलमेर से लगभग अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुलधरा गाँव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा हैं। बताया जाता है कि कुलधरा गाँव के हज़ारों लोग एक ही रात मे इस गांव को खाली कर के चले गए थे और जाते जाते श्राप दे गए थे कि यहाँ फिर कभी कोई नहीं बस पायेगा। तब से गाँव वीरान पड़ा हैं।. बताया जाता है कि 'पालीवालों' के 5,000 परिवारों ने उस समय के जैसलमेर रियासत के एक दीवान के अत्याचारों से परेशान होकर गाँव छोड़ा. दीवान ने दो जैसलमेर राजाओं मूलराज और गज सिंह के समय दीवान के तौर पर काम किया. दीवान ने पालीवालों के करों और लगान में इतनी बढ़ोतरी कर दी कि उनका व्यापार और खेती करना मुश्किल हो गया.ऐसी मान्यता है कि पालीवाल ब्राह्मणों ने कुलधरा और जैसलमेर के चारों और 120 किलोमीटर इलाक़े में फैले 83 अन्य गांवों को लगभग 500 सालों तक आबाद किया था. गांव वालों ने गांव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातोंरात सभी 84 गांव आंखों से ओझल हो गए। जाते-जाते उन्होंने श्राप दिया कि आज के बाद इन घरों में कोई नहीं बस पाएगा। आज भी वहां की हालत वैसी ही है जैसी उस रात थी जब लोग इसे छोड़ कर गए थे. गॉव मे भूत प्रेत होने के किस्सी कहानी सुनाने वालो के भी कमी नही है इन पालीवाल ब्राह्मणों ने 1825 में गाँव छोड़ते समय शाप दिया था कि इस जगह जो भी बसेगा नष्ट हो जाएगा.पालीवाल नाम दरअसल इसलिए पड़ा क्‍योंकि वो राजस्‍थान के पाली इलाक़े के रहने वाले थे। ऐसा माना जाता है की पालीवाल जैसलमेर से निकलकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में बस गए. बताया जाता है कि इस इलाके मे पालीवाल समुदाय के चौरासी गांव थे और यह कुलधरा उनमें से एक था । मेहनती और रईस पालीवाल ब्राम्हाणों की कुलधार शाखा ने सन 1291 में तकरीबन छह सौ घरों वाले इस गांव को बसाया था। दिलचस्प बात यह है कि कुलधरा गाँव की भवन निर्माण शैली पूर्ण रूप से वैज्ञानिक थी। ईट पत्थर से बने इस गांव की बनावट ऐसी थी कि यहां कभी गर्मी का अहसास नहीं होता था। कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गये थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुज़रती थीं । कुलधरा के ये घर रेगिस्तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे । इस जगह गर्मियों में तापमान 45 डिग्री रहता हैं पर आप यदि अब भी भरी गर्मी में इन वीरान पडे मकानो में जायेंगे तो आपको शीतलता का अनुभव होगा। गांव के तमाम घर झरोखों के ज़रिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी । घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढि़यां कमाल के हैं.कुलधरा में 600 से अधिक घरों के अवशेष, एक मंदिर, एक दर्जन कुएं, एक बावली, चार तालाब और आधा दर्जन छतरियां हैं. घरों के अन्दर के हिस्सों में पालीवालों ने तहखाने बनाये थे जहाँ संभवत वे अपने आभूषण, नकदी और अन्य कीमती सामान रखते होंगे. दो दशक पहले राजस्थान सरकार ने उस समय कुलधरा और खाबा को अपने अधिकार में ले लिया जब तीन विदेशी पर्यटक कुलधरा में गुप्त खजानों की खोज करते हुए पकड़े गए. भारतीय पुरातत्व विभाग ने दोनों स्थानों को संरक्षित स्मारक घोषित किया है.राजस्थान सरकार ने कुलधरा की इमारतों के नवीनीकरण और मरम्मत के लिए 4 करोड़ रुपये दिए हैं. एक गैर सरकारी संस्थान जैसलमेर विकास समिति, जिसके अध्यक्ष जैसलमेर के ज़िलाधिकारी हैं, कुलधरा और खाबा की देखरेख राजस्थान पुरातत्व विभाग के साथ मिलकर करती है.वीएनआई

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