तिरूअनंपुरम, 2 जनवरी (वीएनआई) कुछ किन्नर अब जिस तेजी से समाज की मुख्य धारा मे शामिल हो कर खास मुकाम हासिल कर रहे है वही अब अब सभी किन्नरो के धीरे धीरे एक सामान्य जिंदगी का हक देने की एक मुहिम शु्रू हुई है. केरल के एर्नाकुलम जिले के त्रिक्काकारा में किन्न्नरो के लिये एक स्कूल खोला गया है, जो देश मे किन्नरो को शिक्षा देने वाला पहला स्कूल है जहा से वे दसवी तथा बारहवी की परिक्षाये दे सकेंगे.नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ ओपेन लर्निंग के सहयोग से यह स्कूल 'सहज अल्टरनेट लर्निंग सेंटर' खोला गया है. शुरुआत में यहां 10 किन्नर छात्र होंगे.महत्वपू्र्ण यह है कि इन छात्रो मे एक दिव्यांग किन्नर भी है सामाजिक कार्यकर्ता और वॉलंटियर टीचर उन्हें पढ़ाएंगे. सेंटर की स्थापना करने वाली समाजिक कार्यकर्ता विजयराजा मल्लिका कहती हैं, "यह सेंटर उन ट्रांसजेंडर छात्रों के लिये है, जिन्होंने स्कूल मे मिले बुरे व्यवहार के कारण स्कूल छोड़ दिया या फिर उन्हें उनके परिवार या स्कूल प्रशासन ने निकाल दिया."
सेंटर सामाजिक दंश झेल रहे किन्नरों की जिंदगी आसान करना चाहता है. मल्लिका ने कहा, "हम उन्हें मुख्यधारा में लाने की कोशिश करेंगे, पूरी शिक्षा और कौशल के साथ उन्हें समाज का हिस्सा बनाएंगे. वे नौकरी कर सकेंगे और आजाद जिंदगी जी सकेंगे."िस अवसर पर स्कूल मे आने वाले एक छात्र ने कहा किस्कूल मे आते ही उसे लग रहा है कि एक इज्जतदार जिंदगी का रास्ता उसके लिये खुल गया है. वह खूब मेहनत से पढाई कर जिंदगई मे एक शिखर पर पहुचना चाहता है. उसने बताया कि जब उसे बताया गया कि एक किन्नर कॉलेज प्रिसीपल और एक एक पुलिस अधिकारी तक बना है तो उसे लगा काश हम जैसे सभी ऐसा कर पाये अब लगता है एक दिन सभी के लिये पढाई करने और जिंदगी मे कुछ करने का मौका मिल सकेगासमारोह मे जिला कलेक्टर मोहम्मद सफीरुल्ला भी मौजूद थे. इन्हे पढाई के साथ कौशल विकास का प्रशिक्षण भी दिया जायेगा जिससे वे अपना काम धंधा भी शुरू कर सके. इस अभियान मे बड़ी तादाद मे समाजिक कार्यकर्ता,डॉक्टर,शिक्षक जुड़ रहे है
एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत में करीब 20 लाख किन्नर हैं. 2014 में देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दे थी कि किन्नरों को भी बराबर कानूनी अधिकार हैं. अदालत ने उन्हें तीसरे लिंग का कानूनी दर्जा भी दिया. इसके साथ ही किन्नरों को शादी और पैतृक संपत्ति का अधिकार भी मिला. तीसरे लिंग को नौकरी और शिक्षण संस्थाओं में कोटा पाने के योग्य भी करार दिया गया.
बदलाव धीरे धीरे आ रहे है, लेकिन आम जिंदगी में आज भी किन्नर होना किसी अभिशाप से कम नहीं. आम तौर पर किन्नरों को बचपन में ही घर से निकाल दिया जाता है. उन्हें किन्नरों की टोली को दे दिया जाता है. इसके बाद उनके लिये जिंदगी के मायने ही बदल जाते हैं. नाचना गाना, पैसा मांगना या मजबूरन सेक्स में धकेला जाना, ज्यादातर किन्नर इन्हीं अनुभवों से गुजरते हैं.
लेकिन अब बदलाव की हल्की आहट मिल रही है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उड़ीसा की सरकार ने भी ट्रांसजेंडरों के लिये एक कल्याण योजना बनाई है. इसके तहत उन्हें पेंशन जैसी मदद भी मिलेगी. बॉलीवुड भी सहारा दे रहा है. हाल ही में ट्रांसजेंडर महिलाओं के 6 पैक बैंड का एक गाना एक फिल्म में शुमार किया गया.