दिवाली की रौशनी

By Shobhna Jain | Posted on 11th Oct 2017 | साहित्य
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  नयी  दिल्ली 11  -10-2017,सुनील कुमार ,वी एन  आई

 

भजन की फैक्ट्री  3  साल  पहले बंद हो गयी थी ,भजन  उस फैक्ट्री  में मजदूर  था !तीन  साल से उसका  परिवार  बड़ी किल्लतों  से जिंदगी  निकाल  रहा  था!परिवार  में उसकी पत्नी थी ,और एक  छोटा  बेटा था !छोटे मोटे   काम  कर के ,दिहाड़ी मजदूरी  कर के  वो परिवार  का पेट पाल  रहा था !आज दिवाली थी ,पत्नी घर के काम में व्यस्त  थी ,बच्चा पटाखों   के लिए  जिद  कर के रो रो  कर सो गया था   ,भजन अँधेरे  कमरे में उदासी  में बैठा  था ,दिमाग में यही विचार थे की लोग कितने  खुश हैं ,हर तरफ रौशनी है ,पटाखों  की आवाजें  आ  रही  हैं ,कितनी चहल पहल  है ,काश उसकी फैक्ट्री  बंद  न होती और वो भी बेटे  को पटाखे दिलवाता ,मिठाई  लाता ,कमरे  के अँधेरे में  और अपनी जिंदगी के अँधेरे  में उसे बहुत कुछ समानता  नज़र आ रही  थी!तभी हवा  का एक झोंका अपने साथ किसी  पुस्तक का फटा  हुआ  पन्ना साथ  ले कर आया  और पन्ना भजन के पैरों  के पास आ कर गिरा !भजन ने पन्ना  उठाया  उस पर कुछ पंक्तियाँ लिखी  थीं "कोई ऐसी  रात है जिसकी सुबह  न हुई  हो ",पंक्तियाँ  पढ़ते  ही ,भजन     ने कमरे में बल्ब  का स्विच  ऑन  किया   और बेटे को उठाते  हुए बोला "बेटे   उठो ,दिवाली की रौशनी देखो "          

 


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