नई दिल्ली पेरिस 05 जुलाई शोभना जैनवीएनआई) फ्रांस में संसदीय चुनाव के पहले चरण के बाद देश की धुर दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली की पहली बार भारी विजय से जहां इस पार्टी में नयी उम्मीदें जागी हैं और हो सकता हैं कि पार्टी की इस विजय से फ्रांस में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार सरकार बने या जिस तरह से चुनाव के पहले चरण में भारी मतदान हुआ,और यह भी हो सकता हैं कि किसी भी दल को चुनाव में बहुमत ना मिल पाए और स्थिति त्रिशंकु सरकार की बने. चुनाव का दूसरा चरण अब सात जुलाई को हैं, जिस से मतदाता सरकार को ले कर निर्णायक फैसला कर सकेंगे. बहरहाल, वहा सरकार की घरेलू नीतियों की वजह से उथल पुथल के दौर से ्गुजर रहे फ्रांस में सरकार के गठन को ले कर जितनी उत्सुकता फ्रांस वासियों को हैं वहीं खास तौर पर योरोप में धुर दक्षिणपंथी पार्टी की इस पार्टी की विजय के योरोप में पड़ने वाले असर को ले कर योरोप भी उत्सुकता भरी नजरों से देख रहा हैं ्क्योंकि योरोप की राजनीति में दक्षिणपंथ केवल फ्रांस तक ही सीमित नहीं रहा इस की पहुंच धीरे धीरे बढ रही हैं. इसी कशमकश मे मेक्रो ने अपने दल की योरोपीय संसदीय चुनाव मे हार के बाद तुरंत बाद देश में मध्यावधि चुनाव कराने का बड़ा रिस्क लिया लेकिन, पहले चरण के परिणाम उन के आकलन के अ नुरूप नही निकले.
दरअसल दो हफ़्ते पहले गत जून में राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों ने अचानक संसद को भंग करके मध्यावधि चुनाव कराने का एलान कर दिया था, हांलाकि वहा धीरे धीरे दखिणपंथी पार्टी अपनी पकड़ धीरे धीरे मजबूत कर रही थी, इस सब के बावजूद राष्ट्रपति मैक्रों ने संसदीय चुनावों का एलान किया.
अहम बात यह हैं कि हाल ही में हुए यूरोपीय संसदीय के चुनाव में दक्षिण पंथी और धुर द क्षिणपंथी दलों का प्रदर्शन उन का अब तक तक सबसे ज्यादा रहा, यही स्थिति यूरोप के अनेक देशों में बनी हैं या धी धीरे बन रही हैं और खास तौर पर यूरोप मे उनके एजेंडा के प्रति झुकाव बढ़ रहा हैं. इंग्लैंड जर्मनी, स्वीडन जैसे यूरोपीय यूनियन के कुछ देशों में दक्षिणपंथी दलों का वोट प्रतिशत बढा हैं, हालांकि 2022 और 2023 में इन का वोट प्रतिशत घटा.
चुनाव के पहले चरण में नेशनल रैली को 33.1 फीसदी वोट मिले हैं जब कि वामपंथी गठबंधन 28 फीसदी मत पाकर दूसरे स्थान पर हैं.,प्रधान मंत्री मैक्रों की पार्टी 20.7 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही है.पहले दौर की बढ़त के बाद धुर दक्षिणपंथी नेता मरीन ली पेन की आप्रवास विरोधी पार्टी नेशनल रैली के समर्थकों के हौसले बुलंद हैं.मरीन ली पेन और जॉर्डन बरदेला को फ्रांस की 577 सीटों वाली नेशनल असेंबली में पूर्ण बहुमत के लिए 289 सीटों की जरूरत है. पहले चरण की विजय के बाद मरीन ली पेन ने हालांकि कहा कि मैक्रों ग्रुप का लगभग सफाया हो गया है. लेकिन माना जा रहा हैं कि मरीन ली पेन और जॉर्डन बरदेला को फ्रांस की 577 सीटों वाली नेशनल असेंबली में पूर्ण बहुमत के लिए 289 सीटों की जरूरत है.रविवार को होने वाले दूसरे दौर की वोटिंग में सीटों के आकलन के मुताबिक़ भले ही मरीन ली पेन की पार्टी को सफलता मिली हो लेकिन वो पूर्ण बहुमत से दूर रह सकती है.1997 के बाद पहली बार पहले दौर में सबसे ज्यादा वोटरों ने वोट दिया है. इस दौर में 66.7 फीसदी वोटिंग हुई है. शायद इन्हीं समीकरणों के चलते वहा भारी मतदान, इस चुनाव को इतिहास की दिशा बदलने वाला क्यों कहा जा रहा है .
माना जा रहा हैं कि अगर दूसरे चरण मे दक्षिणपंथी पार्टी या वामपंथी गठबंधन को बहुमत मिलता हैं तो मेक्रो के सामने एक अजीबोगरीब स्थिति उत्पन्न होगी जब कि मेक्रो को बहुमत वाली उस पार्टी के नेता को अपना प्रधानमंत्री चुनना होगा , जाहिर हैं कि ऐसी स्थिति मे मेक्रो की योजनाओं को लागू करने में खासी परेशानी होगी. दर असल दो हफ़्ते पहले गत जून में राष्ट्रपति मैक्रों ने अचानक संसद को भंग करके मध्यावधि चुनाव कराने का एलान कर दिया था, हांलाकि तब भी वहा धीरे धीरे द क्षिणपंथी पार्टी अपनी पकड़ रे मजबूत कर रही थी, इस सब के बावजूद राष्ट्रपति मैक्रों ने संसदीय चुनावों का एलान किया था, तकरीबन इन देशों मे इन दलों का रूख आव्रजन विरोधी रहा हैं. बहरहाल फ्रांस के चुनाव नतीजों में दक्षिणपंथी पार्टी का प्रदर्शन खास तौर पर यूरोप की राजनीति को कितना प्रभावित करेगा, इस पर नजर रहेगी. समाप्त
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