नई दिल्ली, 12 मार्च, (वीएनआई) चीन के साथ रिश्तो के 'एक कदम आगे और दो कदम पी्छे जाने के' सिलसिले के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चीन के साथ रिश्तें सुधारने की कवायद बतौर आगामी जून मे चीन मे होने वाली शंघाई शिखर परिषद की शिखर बैठक के दौरान राष्ट्रपति शी जिन पिंग के साथ द्विपक्षीय शिखर बैठक की संभावना है. इन्ही खबरो के बीच सभी केन्द्रीय मंत्रालयों और राज्य सरकारो को भारत सरकार द्वारा भेजा गया एक नोट भी सुर्खियों मे है.दरअसल इस नोट के बाद सरकार की तिब्बत नीति और दलाई लामा को लेकर उस के रूख को ले कर सवाल उठ खड़े हुए है, नोट में सरकार के वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारियो को तिब्बत के निर्वासित आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के इस माह के अंत से शुरू होने वाले मुख्य समारोह सहित अन्य सम्बद्ध कार्यक्रमो से 'चीन के साथ संबंधो के मौजूदा संवेदनशील दौर' मे दूरी बना्ने की सलाह दी थी. तभी से यह सवाल पूछा जा रहा है कि चीन के साथ संबंधो मे चल रही तनातनी के चलते,उस के साथ रिश्तो को सुधारने की दृष्टि से भारत सरकार ने 'फिलहाल' दलाई लामा से दूरी बनाये रखने का जो फैसला किया है, कही यह गलत फैसला तो नही? क्या भारत 60 वर्ष पुरानी अपनी तिब्बत नीति मे बदलाव ला रहा है? क्या इस बदलाव के भविष्य मे ऐसे अपेक्षित परिणाम आयेंगे, जिस के बारे मे सोच कर यह कदम उठाया है?
दरसल भारत मे शरंणागत दलाई लामा को चीन 'खतरनाक अलगावादी' 'विभाजनकारी' का दर्जा देता आया है और 1959 में भारत का उन्हे और वहा से आये तिब्बती समुदाय को शरण देने का फैसला उसे कभी भी गवारा नही हुआ। दलाई लामा के भारत में निर्वासन के 60 साल पूरा होने के अवसर पर ही तिब्बती समुदाय की तरफ से भारत के प्रति आभार प्रदर्शित करने के लिये 'थैंक यू इंडिया'दिल्ली में दो मुख्य कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था,जिस के लिये अनेक वरिष्ठ सरकारी पदाधिकारियों और नेताओ को आमंत्रित किया गया था हालांकि भारत स्थित तिब्बत के निर्वासित प्रशासन का यह भी कहना था कि उन्हे आधिकारिक तौर पर भारत सरकार द्वारा जारी इस सूचना की कोई जानकारी नही है लेकिन इसके बाद ही निर्वासित तिब्बती प्रशासन ने इस कार्यक्रम का आयोजन स्थल बदलकर धर्मशाला में कर लिया है.
गौरतलब है कि 22 फरवरी को विदेश सचिव विजय गोखले ने कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा को सूचना जारी करते हुए कहा है कि कहा गया है कि मौजूदा समय में देश के संबंध चीन के साथ बेहद संवेदनशील दौर में हैं,ऐसे में हमें आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के कार्यक्रमों में जानें से बचना चाहिए।इसी संदर्भ में केंद्र और राज्य सरकार को मार्च के अंत और अप्रैल महीने की शुरुआत में होने वाली 'थैंक यू इंडिया' के कार्यक्रम में न शामिल होने की ्सलाह दी गई है।
दरअसल चीन के साथ भारत के संबंधो पर लगातार सवालिया निशान बना रहता है.एक तरफ जहा न/न केवल डोकलाम विवाद के सुलझने ्के बावजूद इस के फिर से तूल पकड़ने और ऐसे कुछ और् विवाद भविष्य मे उठ खड़े होने की आशंकाये निरंतर उठती रही है. दूसरी तरफ चीन के घरेलू हालात भी भारत का ध्यान लगातार खिंचते रहे है है.एक तरफ जहा भारत-चीन सीमा पर छिट्पुट तनातनी चलती ही रही है, चीन ने अपने विस्तारवादी मंसूबो के चलते हाल ही अपने रक्षा बजट मे भारी वृद्धि की है और चीन की राष्ट्रपति शी जिन पिंग संवैधानिक रास्ते के जरिये 2023 में अपने कार्य काल के समाप्त होने के बाद ताउम्र राषट्रपति बनने की राह पर है जिस से वह देश के बहुत ताकतवर नेता बन जायेंगे. इन तमाम हालात मे प्रधान मंत्री मोदी और श्री जिन पिंग के बीच जून मे होने वाली द्विपक्षीय मुलाकात की संभावनओ के बीच दलाई लामा से दूरी बनाये रखने के सरकारी निर्देश को अहम माना जा रहा है. जानकारो के मुताबिक गत अगस्त मे डॉकलोम विवाद के बाद रिश्तो मे जमी ठंड दूर करने के नजरिये से दोनो शिखर नेताओ के बीच ्चीन के चिआमेन मे जो शिखर बैठक हुई थे उस मे दोनो ने ही उच्च स्तरीय संपर्क बढाने की उम्मीद जाहिर की थी, और उम्मीद जताई थी कि 2018 मे यह संपर्क और बढेगा, जून मे संभावित इस बैठक को इसी क्रम मे देखा जा रहा है लेकिन यह भी सच है कि चीन के अब तक के रूख के चलते सवाल पूछा जा रहा है कि कही 60 वर्ष पुरानी तिब्बत नीति मे बदलाव का यह फैसला गलत तो नही !
दरअसल सुर्खियों मे आये इस नोट में विदेश सचिव ने कहा है, "हम समझते हैं कि 'थैंक यू इंडिया' बड़ा कार्यक्रम होने वाला है, जो दिल्ली में एक अप्रैल को होगा। दलाई लामा इसमें कई भारत के गणमान्य लोगों को बुलाएंगे। मगर यह वक्त चीन को ध्यान में रखकर देखा जाए, तो बेहद संवेदन्शील होगा।'हालांकि विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में स्पष्ट तौर पर कहा गया, 'आदरणीय दलाई लामा को लेकर सरकार का पक्ष साफ और स्थायी है। वह श्रद्धेय आध्यात्मिक गुरु हैं और भारत के लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं। इस रूख में कोई बदलाव नहीं आया है। भारत में धार्मिक गतिविधियों को लेकर उन्हें पूरी स्वतंत्रता है।' सूत्रों के मुताबिक इन कार्यक्रमों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह , पूर्व उप प्रधानमंत्री एल के आडवाणी, गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू जैसे कई प्रमुख नेताओं को आमंत्रित करने की योजना थी.लेकिन सवाल फिर वही है कि कही दलाई लामा से 'फिलहाल'दूरी बनाये रखने का फैसला गलत तो नही है. साभार : लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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