नई दिल्ली, 01 सितम्बर, (शोभना जैन/वीएनआई) हाल में फ्रांस मे हुए बहुचर्चित जी 7 शिखर सम्मेलन में भारत ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टृंप के कश्मीर मसले के समाधान के लिये मध्यस्थता के प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक दो टूक शब्दों मे खारिज कर दिया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्टृ्पति टृंप से हुई इस मुलाकात में इस मसलें को भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मुद्दा बताते हुए कहा कि भारत और पाकिस्तान विचाराधीन द्विपक्षीय मुद्दों को आपस में हल कर लेंगे, इस के हल के लिये वह "किसी तीसरे पक्ष को कष्ट देने की जरूरत नही" हैं.
केन्द्र सरकार कश्मीर में धारा अनुच्छेद 370 हटाने के बाद स्थति को सामान्य बनाने के लिये कदम उठा रही हैं. वहा अंदरूनी चुनौतियॉ बड़ी हैं.जहा सरकार के इस कदम को कुल मिला कर देश में सही माना गया हैं और इस का स्वागत किया गया लेकिन वहीं कश्मी्र सीमा पर पाक प्रायोजित आतंकवाद ्से निबटने के साथ साथ सरकार के सम्मुख खास तौर पर इस फैसलें से श्रीनगर घाटी मे बढती जन असंतोष के मद्देनजर वहा के लोगों को भरोसे में लेने की चुनौतियॉ बड़ी हैं.लेकिन इन अंदरूनी चुनौतियों से निबटने के साथ-साथ इस मसले संबंधी बाह्य चिंतायें भी घनी हैं.पाकिस्तानी नेताओं के कश्मीर को लेकर उग्र तेवर और तनाव बढता जा रहा हें, उस की गैरजिम्मेदाराना टिप्पणियॉ दिनों दिन और भड़काउ होती जा रही है, वह भारत में जिहाद छेड़ने की धमकी दे रहा है.रूस, फ्रांस , इंगलेंड, सउदी जैसे अनेक देशों द्वारा इसे भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मसला बताया वही चीन और अमरीका जैसे अन्य बड़े देश अपनी अपनी चिंताओं को ले कर कश्मीर की स्थति पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं. अमरीका द्वारा इस मसले पर अपने "मित्रों" भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता प्रस्ताव को भारत द्वारा दो टूक शब्दों में खारिज होने के चार दिन बाद ही अमरीकी प्रशासन ने फिर एक नया बयान जारी कर कहा कि जम्मू कश्मीर के मौजूदा हालात पर अमेरिका लगातार नजर बनाए हुए है और लोगों की नजरबंदी और वहां लगातार जारी प्रतिबंधों से चिंतित है हालांकि अमेरिका ने पाकिस्तान को भी परोक्ष रूप से चेतावनी दी है कि वह लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर शांति बहाल रखे और सीमापार से आतंकवाद पर लगाम लगाए.
अब जब कि भारत ने इस मसले पर दो टूक बात कह कर द्विपक्षीय मुद्दें के किसी भी मध्यस्थता प्रस्ताव को विराम दे दिया है अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता का कल ही इस नये बयान मे कहा " हम मानवाधिकारों के लिए सम्मान, क़ानूनी प्रक्रियाओं के अनुपालन, और प्रभावित लोगों के साथ एक समावेशी बातचीत का अनुरोध करते हैं".वैसे बयान में यह भी कहा गया कि हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस कथन का स्वागत करते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि जम्मू कश्मीर जल्द ही एक सामान्य राजनीतिक स्थिति में लौट आएगा.
यह बात अहम हैं कि अमरीकी प्रशासन और राष्टृपति टृंप का कश्मीर मसले पर अलग अलग स्वर के बयान आते रहे हैं. कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने फ्रांस में जी-7 शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री मोदी के साथ जम्मू कश्मीर पर 'बहुत विस्तार से' बातचीत की थी. चर्चा के दौरान पीएम मोदी ने जोर देकर कहा था कि 1947 से पहले भारत और पाकिस्तान एक थे और दोनों देशों के बीच सभी मुद्दे भी द्विपक्षीय थे. इसमें किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार्य है.तब बातचीत के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था, 'प्रधानमंत्री मोदी को वास्तव में लगता है कि स्थिति उनके नियंत्रण में है. दोनों लोगों (नरेंद्र मोदी और इमरान ख़ान) के साथ मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं और "मैं तो यहा हूं ही". मुझे लगता है कि वे इस मुद्दा सुलझा ख़ुद हल सकते हैं.
पिछले एक माह में टृंप कश्मीर मुद्दें पर लगभग तीन बार मध्यस्थता की पेशकश कर चुके हैं लेकिन अमरीकी प्रशासन का कहना था कि वह इस मुद्दें के द्विपक्षीय हल के पक्ष मे हैं,टृंप ने पह्ली बार मध्यस्थता की पेशकश गत 19 जुलाई को इमरान खान से मुलाकात के वक्त एक साझा प्रेस कॉफ्रेंस में की थी. उन्होंने यहा तक कह डाला कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन से मध्यस्थता की पेशकश की लेकिन फौरन बाद अमरीकी अधिकारियों ने इस पर सफाई देते हुए साफ तौर पर कहा कि भारत ने ऐसी मध्यस्थता की कोई बात नही की, टृंप ने भारत और पाकिस्तान के दोस्त के नाते यह पेशकश की.कश्मीर पर अमरीका की उहापोह इन्ही अलग अलग स्वरों से समझी जा सकती है.्हालांकि इसे डि्लोमेटिक पैतरेबाजी कहना सही नही होगा . अमरीका की कश्मीर को ले कर चिंताओं का एक पहलू उस की अपनी चिंताओं से जुड़ा है.जिस के तार अफगानिस्तान से अमरीकी फौजें हटाने को ले कर पाकिस्तान से फौरी मदद की दरकार से जुड़े है और यही वजह हैं कि इमरान खान से हुई मुलाकात में टृंप कश्मीर मुद्दें के समाधान के लिये तीसरे पक्ष का सहयोग लेने की पाकिस्तान की लाईन को ही आगे बढा रहे थे.पाकिस्तान और अफगानिस्तान के आतंकी चरमपंथी समूह तालिबान ्के बीच गहरी सांठ गांठ जग जाहिर हैं. अमरीका पाकिस्तान पर तालिबान की मदद करने के आरोप लगाता रहा है.ऐसे में जब कि पाकिस्तान की मदद की उन्हें फिलहाल फौरी दरकार हैं,यह लाईन उस की अपनी चिंताओं से भी जुड़ी हैं.दूसरी तरफ यह भी साफ हैं कि पाकिस्तान अफगान शांति प्रक्रिया से भारत को दूर रखना चाहता है.अफगानिस्तान की बदलती हुई स्थतियॉ भारत के लिये खास तौर चिंता्जनक हैं. भारत का प्रयास यही हैं कि अफगानिस्तान से अमरीकी फौजे हटने के बाद वहा तालिबान, आतंकी फिर से हावी नही हो जायें , खास तौर पर भारत के पड़ोस मे शांति और अस्थिरता को खतरा ्नही बन जायें और पाकिस्तान इस स्थति का फायदा खास तौर पर कश्मीर में भारत के खिलाफ आतंक और तेज करने के लिये करें.
भारत और अमरीका संबंध पिछले कुछ समय से अच्छे चल रहे हैं हालांकि भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय एजेंडे में फिलहाल कई और मुद्दे सुलझाए जाने बाकी हैं। ्जिन में अमरीका की जबावी कार्यवाही बतौर भारत द्वारा उस के खिलाफ कुछ उत्पादों पर बढाया गया टेरीफ, रूस के साथ एस 400 मिसायल की खरीद से लेकर 5जी और ईरान के साथ व्यापार जैसे अनेक मुद्दें हैं। वैसे यहा यह जानना दिलचस्प हैं कि टृंप इमरान की इस मुलाकात से पहले टृंप पाकिस्तान को अमरीकी मदद के बावजूद आतंक से निबटने के लिये कोई कार्यवाही नही करने पर कड़ी खरी खोटी सुनाते रहे थे.स्वाभाविक था कि इमरान ख़ान ने कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता के राष्ट्रपति ट्रंप के प्रस्ताव का स्वागत कर दिया.निश्चय ही डिप्लोमेसी में अपने राष्ट्रीय हित और प्राथमिकतायें सर्वोपरी होते है .टृंप "अमरीका फर्स्ट" के नारें से अगले वर्ष राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने पर तुले हैं और ऐसे में अफगान से अपनी फौजों की वापसी उन के लिये अहम मुद्दा हैं.17 साल से जारी अफ़ग़ान युद्ध को समाप्त करने में अमरीका पाकिस्तान की भूमिका को अहम मानता है. इस सब के बीच रिश्तों में संतुलन कायम करने की भी खासी अहमियत होती है और डिप्लोमेसी का यह एक अहम पक्ष हैं.अमरीका की उहापोह इसी की परिचायक लगती हैं.समाप्त
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