\'मज़दूर दिवस\' मज़दूरों का एकमात्र दिवस

By Shobhna Jain | Posted on 1st May 2015 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 1 मई, (वीएनआई) आज मज़दूर दिवस है, पूरे विश्व में 1 मई को अंतराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन को कामगार मज़दूरों की एकता और योगदान के रूप में प्रतिवर्ष मज़दूर दिवस या कामगार दिवस के रूप में मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस को मनाने की शुरूआत अमेरिका और कनाडा में मज़दूरी हड़ताल से हुई, वर्ष 1882 में न्यूयॉर्क के सेंट्रल लेबर यूनियन के सेक्रेटरी मेथूय मेगैर और अमेरिकन फेडरेशन ऑफ़ लेबर के पीटर मैगुइरे ने मज़दूर दिवस के रूप में पहला प्रस्ताव पेश किया । लेकिन 1 मई 1886 से मज़दूर दिवस मानाने की शुरुवात मानी जाती है जब अमरीका की मज़दूर यूनिअनों ने काम का समय 8 घंटे से ज़्यादा न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी उनका कहना था की 8 घण्टे काम, 8 घंटे आराम और 8 घंटे सोच विचार के लिए हो। मौजूदा समय भारत और अन्य मुल्कों में मज़दूरों के 8 घंटे काम करन संबंधित क़ानून लागू है। वंही भारत में में एक मई को मज़द्दोर दिवस सबसे पहले चेन्नई में 1 मई 1923 को मनाना शुरू किया गया था। उस समय इस को मद्रास दिवस के तौर पर प्रवानित कर लिया गया था। मद्रास के हाईकोर्ट सामने एक बड़ा मुज़ाहरा कर कर एक संकल्प के पास करके यह सहमति बनाई गई कि इस दिवस को भारत में भी कामगार दिवस के तौर पर मनाया जाये और इस दिन छुट्टी का ऐलान किया जाये। भारत सहित अन्य 80 देशो में 1 मई को मज़दूर दिवस मनाया जाता है। जबकि कनाडा और अमेरिका सहित कुछ देशो में यह सितम्बर माह के पहले सोमवार को मनाया जाता है। मज़दूरों या कामगारों की बात करे तो किसी भी देश की प्रगति या उसके औधोगिक विकास में मज़दूर वर्ग या कामगारों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। उनके श्रमदान से ही बड़ी बड़ी औधोगिक इकाईयों की संरचना तैयार होती है। बड़ी बड़ी इमारते, बड़े बड़े अस्पताल, सड़के, रेल- परिवहन, शहरीकरण और किसी भी वस्तु के निर्माण में मज़दूर वर्ग का अहम योगदान होता है। मज़दूरों के बिना हम किसी भी वस्तु या प्रोजेक्ट की हम कल्पना नहीं कर सकते। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास में सदा से ही मज़दूर वर्ग ने अपना विशेष योगदान दिया है। लेकिन फिर में मज़दूर वर्ग ने शुरू से ही अपने आप के लिए हमेशा ही संघर्ष किया है, फिर चाहे उसके शोषण की बात हो या फिर उसके हक़ की बात हो। मज़दूर दिवस भी उसके संघर्ष की ही एक कहानी है, जिसको उसने 18 वी शताब्दी के अंत में और 19 वी शताब्दी के शुरुआत में संघर्ष के जरिये ही वर्ष में एक दिन अपने नाम किया। एक तरफ 1 मई का दिन मजदूरों में एक नई उमंग और नया जोश लेकर आता था, वहीँ बड़े बड़े पूंजीपतियों और उद्योगपतियों के मन में एक डर सा पैदा कर देता था, लेकिन आज मजदूर दिवस की परिस्थियाँ बदल चुकी बढ़ती महंगाई और रोजगार की कमी की वजह से मज़दूर वर्ग फिर से शोषित हो रहा है और उनके हाथ की कठपुतली बनता जा रहा है। राजनीतिक पार्टिया और नेता भी उनके हक़ की आवाज़ उठा कर सत्ता में आ तो जाते है मगर बाद में उनकी घोषणाएं सिर्फ घोषणा बन कर ही रह जाती है और सदा की तरह मज़दूर सिर्फ ठगा ही रह जाता है। गांधी जी ने भी कहा था कि किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों और किसानों पर निर्भर करती है। गुरु नानक देव जी ने भी किसानों, मज़दूरों और कामगार के हक में आवाज़ उठाई थी और उस समय के अहंकारी और लुटेरे हाकिम ऊँट पालक भागों की रोटी न खाकर उसके अहंकार को तोड़ा और भाई लालो की काम की कमाई को सत्कार दिया था। गुरू नानक देव जी ने ‘काम करना, नाम जपना, बाँट छकना और दसवंध निकालना\' का संदेश दिया।

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