इनका कहना है ,नीतीश करते रहे हैं 'सेफ फेस' की राजनीति!

By Shobhna Jain | Posted on 28th May 2017 | राजनीति
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पटना, 28 मई,| जनता दल (युनाइटेड) के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के भोज में खुद न जाकर शरद यादव को भेजकर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भोज में शामिल होकर बिहार में नई राजनीतिक संभावनाओं को लेकर बहस की शुरुआत जरूर कर दी हो, लेकिन इसके साथ ही राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर विपक्ष के एक जुट होने की बात कर के नीतीश विपक्ष के 'पक्ष' में नजर आए हैं। गौर से देखा जाए तो नीतीश जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में थे, तब भी कई मौकों पर विपक्ष के साथ खड़े होते रहे थे और आज जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विरोध में हैं, तब भी कई मौकों पर भाजपा के निर्णयों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। वैसे जानकार इसे 'सेफ फेस' की राजनीति भी बताते हैं। राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि नीतीश ऐसे राजनीतिज्ञों में शुमार हैं, जो राष्ट्रीय राजनीति में अपनी छवि की चिंता करते हैं। उन्होंने कहा, नीतीश के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी पूंजी उनकी अपनी छवि और काम रहा है। वह किसी गठबंधन में रहे हों, इसे लेकर संवेदनशील रहे हैं। यही कारण है कि कई मुद्दे पर वह चुप भी रह जाते हैं। केंद्र सरकार द्वारा पिछले वर्ष 500-1000 रुपये के नोट बंद करने के फैसले का भी नीतीश ने जोरदार समर्थन किया था, जबकि केंद्र सरकार पर उन्होंने कई मौके पर बेनामी संपत्ति पर चोट करने के लिए दबाव भी बनाया। इसी तरह विपक्ष के कई नेता जहां पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर सबूत मांग रहे थे, वहीं नीतीश ने इसका भी खुलकर समर्थन किया था। वैसे देखा जाए तो संदेह नहीं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बहुत सोच-समझ कर राजनीति करते हैं। इस लिहाज से वह ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल से अलग नेता हैं। उन्होंने खुद भी कई बार कहा है कि वह कोई भी फैसला बहुत तैयारी के साथ करते हैं। शराबबंदी के फैसले के बारे में आमतौर पर वह यह बात कहते हैं। उन्होंने इसकी तैयारी बहुत पहले से शुरू कर दी थी। नीतीश कुमार की पिछले 15 साल की राजनीति में नरेंद्र मोदी का विरोध एक अहम पहलू रहा है। उन्होंने मोदी के साथ अपनी फोटो का विज्ञापन छप जाने पर भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को दिया गया भोज रद्द कर दिया था। ऐसे में वह अगर नोटबंदी के फैसले पर नरेंद्र मोदी का समर्थन कर रहे हैं और उनकी भोज में शामिल हो रहे हैं तो यह माना जा सकता है कि वह कोई गहरी राजनीति कर रहे हैं। वैसे, नीतीश जब राजग के साथ थे तब वर्ष 2010 में उन्होंने कहा था कि जो भी दल बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा, उसी दल का समर्थन करेंगे। यह दीगर बात है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) ने भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया और नीतीश बिहार में राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल हो गए। इस राजनीति को लोग दबाव की राजनीति से भी जोड़कर देखते हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता विनोद नारायण झा कहते हैं कि नीतीश राजद पर दबाव की राजनीति करते हैं। उन्होंने कहा कि नीतीश यह जानते हैं कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद जितने मजबूत होंगे, उतना ही सरकार में हस्तक्षेप करेंगे। ऐसे में नीतीश उन्हें कमजोर करने की हर चाल चलते हैं। जद (यू) के महासचिव और सांसद क़े सी़ त्यागी का मानना है कि नीतीश सिद्धांत की राजनीति करते हैं। उनके लिए सत्ता और कुर्सी कोई मायने नहीं रखती। ऐसे में उनके फैसलों को राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।(आईएएनएस)

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