न्यूयॉर्क, 28 अगस्त (आईएएनएस)। खुद को खुश रखना है, तो दुखद घटनाओं पर आधारित फिल्में देखने की बजाय कम नाटकीयता वाली सच्ची कथाएं पढ़ें।
एक नए अध्ययन के मुताबिक, लोगों को यह गलतफहमी है कि काल्पनिक की बजाय सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानियां पढ़ने से उनकी भावनात्मक प्रतिक्रिया मजबूत होगी।
मैसाचुसेट्स के ब्रेंडिस विश्वविद्यालय के ई.जे.ईबर्ट और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के टॉम मेविस ने कहा, \"अगर पढ़ना ही है, तो लोग दुखद काल्पनिक कथाएं पढ़ सकते हैं, क्योंकि इससे उन्हें ऐसा लगेगा कि यह काल्पनिक है, तो वे कम नाटकीयता वाले दुखद सत्य कथाओं की तुलना में कम उदास होंगे।\"
हालांकि, काल्पनिकता दुखद कथा के प्रभाव को कम नहीं करता, बल्कि सत्य कथा की तुलना में वह पाठक को कम उदास करता है।
इसकी पुष्टि के लिए शोधकर्ताओं ने लोगों के दो समूहों का अध्ययन किया।
निष्कर्ष के दौरान सामने आया कि दुखद सत्य कथा पढ़ने वाले या इन विषयों पर बनी फिल्में देखने वाले लोग उनकी तुलना में ज्यादा उदास होते हैं, जो इन्हीं विषयों पर काल्पनिक फिल्में देखते हैं या किताबें पढ़ते हैं।
यह अध्ययन पत्रिका \'कंज्यूमर रिसर्च\' में प्रकाशित हुआ है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।