नई दिल्ली ,7 जनवरी (सुनील कुमार /वीएनआई) मुफ़्ती मोहम्मद सईद , एक ऐसे राजनेता जो विपरीत विचारधाराओ के साथ तालमेल रखते हुए अपनी पार्टी के हितो को ध्यान में रखते हुए अपना रास्ता बनाना जानते थे ..वर्ष 2002 में उन्होंने कांग्रेस के साथ साझा सरकार बनायी , और फिर इस वर्ष एक मार्च में राजनैतिक पंडितो के तमाम आकलनों को धता बताते हुए राज्य में पी दी पी भाजपा गठ बंधन सरकार बनाई और संतुलन बनाते हुए चलाई भी.. एक समझदार राजनीतिक खिलाड़ी की तरह राष्ट्रीय राजनीति और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अपने लिए एक अलग मुकाम बनाया। वर्ष 2002 में हुए विधान सभा चुनाव में पीडीपी ने 16 सीटों पर कब्जा किया। हालांकि यह संख्या 87 सदस्यीय सदन में बहुमत हासिल करने से काफी कम थी लेकिन सईद कांग्रेस के साथ ताल मेल कायम करने कामयाब रहे और उन्हें रोटेशन के आधार पर तीन साल के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया और फिर इस वर्ष दूसरे धुर पर खड़ी भाजपा के साथ मिल कर पी दी पी-भाजपा गढ़बंधन सरकार बनायी ।
लगभग छह दशक तक के राजनीतिक सफर में उनके दो सबसे अहम पड़ाव वर्ष 1989 और वर्ष 2015 में आए। वर्ष 1989 में वह स्वतंत्र भारत के पहले मुस्लिम गृहमंत्री बने गृहमंत्रालय में उनके कार्यकाल को जेकेएलएफ द्वारा उनकी तीसरी बेटी रूबइया के अपहरण किए जाने के साथ जोड़कर याद किया जाता है। आतंकियों ने रूबइया की रिहाई के बदले में अपने पांच साथियों को छोड़ने की मांग की थी और अपनी मांग पूरी होने पर ही रूबइया को छोड़ा गया था। सईद के प्रतिद्वंधियों के अनुसार, इस अपहरण और फिर आतंकियों की रिहाई ने भारत की कमजोरी माना गया और इसके लिए श्री सईद और तत्कालीन सरकार की खासी आलोचना भी हुई ।सईद ने गृहमंत्री के रूप में पदभार उस समय संभाला था, जब उनके इस गृहराज्य में आतंकवाद ने अपने घिनौना रूप दिखाना शुरू किया था।
वह दो बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने। अपने राजनैतिक करियर में सईद राज्य के ताकतवर अब्दुल्ला परिवार के खिलाफ प्रतिद्वंदी शक्ति का केंद्र बनकर उभरे।
आगामी 12 जनवरी को 80 साल के हो जाने वाले सईद ने इस बार जम्मू-कश्मीर की सत्ता संभालने के लिए उस भाजपा के साथ गठबंधन किया, जिसके लिए इस मुस्लिम बहुल राज्य में सत्ता में आने का यह पहला मौका था।
अनंतनाग जिले में बिजबेहड़ा के बाबा मोहल्ला में 12 जनवरी 1936 को जन्मे सईद ने प्राथमिक शिक्षा एक स्थानीय स्कूल में ग्रहण की और उन्होंने श्रीनगर के एसपी कॉलेज से स्नातक किया। उन्होंने अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से कानून की एक डिग्री और अरब इतिहास में स्नातोकत्तर की डिग्री प्राप्त की।
उन्होंने 1950 के दशक के आखिर में जी एम सादिक की डेमोक्रेटिक नेशनल कांफ्रेंस में शामिल होकर राजनीति की दुनिया में कदम रखा। सादिक ने युवा वकील की क्षमताओं को पहचानकर उन्हें पार्टी का जिला संयोजक नियुक्त किया। सईद 1962 में बिजबेहड़ा से राज्य विधानसभा में चुने गए। उन्होंने पांच साल बाद भी इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। उन्हें सादिक ने उप मंत्री नियुक्त किया। सादिक उस समय मुख्यमंत्री थे।
वह 1972 में एक कैबिनेट मंत्री और विधान परिषद में कांग्रेस दल के नेता बने। उन्हें दो वर्ष बाद कांग्रेस की राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया गया। उन्हें सीएम पद का दावेदार माना जा रहा था लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अब्दुल्ला के साथ समझौता कर लिया और 11 साल के अंतराल के बाद मुख्यमंत्री के रूप में उनकी वापसी का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
जब कश्मीर में आतंकवाद बढा और सईद केंद्रीय गृह मंत्री बने तो उन्होंने फारूक अब्दुल्ला के विरोध के बावजूद जगमोहन को राज्यपाल नियुक्त किया। अब्दुल्ला ने इस्तीफा दे दिया और राज्य में 1990 में फिर से राज्यपाल शासन लागू हो गया। अब जब सब की निगाहें राज्य की इस विपरीत विचारधाराओ वाली साझा सरकार पर लगी हुई थी श्री सईद का निधन हो गया.वी एन आई