चाबहारः सुर्खियो के पीछे का सच

By Shobhna Jain | Posted on 9th Dec 2017 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, (शोभना जैन/ वीएनआई), पाकिस्तान की बौखलाहाट और चीन  की खीझ के बीच इरान मे चाबहार बंदरगाह के पहले चरण का आखिर गत रविवार को उद्घाटन हो ही गया, 'चाबहार' जो कि भारत के लिये सामरिक और आर्थिक दृष्टि से का्फी अहम है . "चारो मौसम मे बहार " के नाम वाली इस  बंदरगाह  की खासियत यह है कि एक तरफ जहां यह क्षेत्रीय व्यापार और संपर्क को बढावा देगी वही अब बिना बरास्ता पाकिस्तान  ईरान, भारत और  अफगानिस्तान के बीच एक नया रणनीतिक कॉरीडोर  खुल गया है साथ ही इससे मध्य एशिया और इस  के आगे के क्षेत्र मे भारत की समारिक,आर्थिक हित और मजबूत होंगे. दरअसल इस क्षेत्र के  बीच संपर्क बढाने के लिये एक एतिहासिक शुरूआत माने जाने वाली चाबहार बंदरगाह इरान के सिस्तान बलूचिस्तान  प्रांत मे स्थित  है जो कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान मे चीन द्वारा बनाये जा रहे चर्चित तथा सामरिक दृष्टि से बेहद अहम ्तथा पाकिस्तान और चीन दोनो की ही ऑख की किरकिरी बने ग्वादर  बंदरगाह से महज 80 किली मीटर ही दूर है.ऐसे मे चाबहार पोर्ट  को  पाकिस्तान मे चीन द्वारा बनाई जा रही सैन्य बंदरगाह  ग्वादर पर  भारत का सामरिक जबाव माना जा सकता है.चीन  46 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे सी पी ई सी कार्यक्रम के तहत ही इस पोर्ट को बनवा रहा है।चीन का तर्क है कि  इस पोर्ट के जरिए एशिया में ्वह नए व्यापार और परिवहन मार्ग खोलना चाहता है ्लेकिन हकीकत ्तो यही है कि इस क्षेत्र मे वह भारत की घेराबंदी कर रहा है. अपने वर्चस्व को बढाने की जुगत मे लगे चीन के लिये यह  इस क्षेत्र मे अपनी पैठ बढाने की चाल  है.

ओमान की खाड़ी से लगे चाबहार बंदरगाह के जरिये भारत को अब  अफगानिस्तान से व्यापार के लिये पाकिस्तान के रास्ते का सहारा लेने की जरूरत नही है बल्कि इस से भारत  पाकिस्तान से गुज़रे बगैर ईरान और अफगानिस्तान के साथ एक आसान और नया व्यापारिक मार्ग अपना सकता है. वैसे भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्ते अच्छे नही चल रहे है. कभी भारत को दोस्त और पाकिस्तान को बड़े भाई बताने का दौर खतम हो चुका है,अफगानिस्तान के अंदरूनी हालात मे पाक की दखलदांजी से क्षुब्ध अफगानिस्तान को भी अपने व्यापार को बढाने के लिये चाबहार जैसे बंदरगाह की जरूरत है.  निश्चय ही चाबहार के खुलने से भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच ्त्रिपकक्षीय  व्यापार को बड़ा बल मिलेगा. साथ ही इस परियोजना के पूरी होने पर चाबहार अंतर राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन कॉरीडोर से जुड़ जायेगा जो कि खाड़ी मे इरान के बंदर अब्बास बंदरगाह से ले कर रूस, यूरेशिया और योरोप तक फैला हुआ है.इस कॉरीडोर के  रेल, सड़क और समुद्री मार्ग से जोड़े जाने की महत्वाकांक्षी परियोजना से भारत को रूस, मध्य एशियायी देश, एशिया और योरोप का बाजार अपने आर्थिक उत्पादो के लिये मिल सकेगा.ऑकड़ो के अनुसार इन मार्गो के जरिये भारत का यूरेशिया के साथ व्यापार बढ कर 170 अरब डॉलर हो सकता है.कहा यह जा रहा है कि  चीन ने  इस पूरे क्षेत्र को जोड़ने के मंसूबे के साथ जो  चर्चित 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना शुरू की है, चाबहार और  इस कॉरीडोर के साथ जुड़ने से  यह उसका  सटीक जवाब हो सकता है.

इस सब के चलते चाबहार चीन और पाकिस्तान दोनो के लिये ही परेशानी का सबब है. चीन अपने 46 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे कार्यक्रम के तहत  इस पोर्ट को बनवा रहा है। चीन तर्क देता है कि इस पोर्ट के जरिए ्वह एशिया में नए व्यापार और परिवहन मार्ग खोलना चाहता है।्जाहिर है न/न केवल पाकिस्तान के जरिये बल्कि इस क्षेत्र मे चीन ्द्वारा   की जा रही घेराबंदी से क्षेत्र मे तनाव बना है, ऐसे मे चाबहार के पहले चरण का ्पूरा हो जाना और अगले चरणो के यात्रा के लिये आगे बढना दोनो देशो के लिये ही बड़ी समस्या है.हालांकि पकिस्तान के प्रतिनिधि  चाबहार के पहले चरण  के उदघाटन समारोह मे मौजूद थे लेकिन इसे ले कर पाकिस्तान की बौखलाहट किसी से छुपी नही है.गौरतलब है कि ग्वादर बंदरगाह 43 वर्षो तक  यानि 2059 चीन के पास पट्टे पर रहेगा.पट्टा खत्म  होने के बाद यह पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा नौसैनिक अ्डडा होगा. सामरिक दृष्टि से बेहद अहम ग्वादर बंदरगाह  3218 किलो मीटर लंबे चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर सी पी ई सी का हिस्सा है जो कि इस मार्ग को चीन के शिन्झियांग प्रांत को जोड़ेगाT. इस मे सड़के, रेल तथा पाईपलाईन है. गौरतलब है किसी ्सी पी ई सी चीन के संवेदनशील वन बेल्ट, वन रोड के लिये बहुत अहम है जिस के जरिये  चीन ने योरोप तथा एशिया से ्जुड़ने की योजना बनाई है.

पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान और मध्य एशिया जाने का रास्ता  हालांकि भारत के लिये सबसे आसान और सस्ता पड़ता है लेकिन पाकिस्तान के विद्वेषपूर्ण  रवैये की वजह से इस मार्ग का विकल्प भारत के लिये नही रहा है ऐसे मे चाबहार उस के लिये एक बेहतर सुगम विकल्प बन जाता है,न/न केवल भारत बल्कि इस सबके साथ ही इससे  अफगानिस्तान को क्षेत्रीय तथा वि्श्व बाजार मे वैकल्पिक मार्ग भी मिल सकेगा. अफगानिस्तान और भारत के बीच नज़दीकियो से बौखला्या पाकिस्तान प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से आरोप लगाता रहा है कि भारत अफ़ग़ानिस्तान में हस्तक्षेप कर रहा है. जबकि सच्चाई यही है कि अफ़ग़ानिस्तान के साथ उसके संबंध ऐतिहासिक रहे हैं और वह मानवता के वास्ते वहा राहत कार्यों/पुनर्निर्माण कार्यो में हिस्सा ले रहा है. उम्मीद है चाबहार इन नजदीकियो को और बढे विश्वास मे बदलेगा.दरअसल इरान के लिये भी चाबहार बहुत अहमियत रखता है.अपने परमाणु कार्यक्रम को ले कर अमरीका सहित दुनिया भर से आर्थिक प्रतिबंधो की मार झेल चुके इरान के लिये इस बंदरगाह ने एक मजबूत आर्थिक ताकत बनने का अवसर दिया है.अपने आस पास के क्षेत्र मे वह फिर से एक ताकत बनने की कोशिशो मे  लगा है.सीरिया, लेबनान  आदि मे हस्तक्षेप कर के अपनी ताकत दिखा चुके इरान की रणनीति अब यह है कि वह पश्चिम एशिया और मध्यपूर्व एशिया को बताये कि वह  भले ही  वह चौ्धराहट नही कर रहा है लेकिन वह एक मजबूत ताकत है और आर्थिक प्रतिबंधो के दौरान विश्व समुदाय से अलग-थलग किये जाने का दौर अब बीते दिनो की बात हो गई है .इस बंदरगाह के ज़रिये वह अमरीका को  भी संदेश देना चाहता है कि उस के पास समुद्री व्यापार का एक मजबूत आधार है, उसे नजरदांज नही किया जा सकता है. 

उल्लेखनीय है कि गत वर्ष मई मे  इस बंदरगाह को भारत, इरान तथा अफगानिस्तान के बीच परिवहन गलियारे के रूप मे विकसित किये जाने के बारे मे प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी, इरान के राष्ट्रपति रूहानी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के  बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते के बाद पिछले महीने भारत ने अफगानिस्तान को गेहूं से भरा पहला जहाज़ इसी बंदरगाह के रास्ते भेजा था,जिस का अफगानिस्तान की जनता ने बहुत स्वागत किया और इरान ने पड़ोसी अफगानिस्तान की जनता को अनाज पहुचने पर खुशी जताई.्वैसे इस परियोजना के जरिये अफगानिस्तान और इरान भी अपने रिश्तों को एक नई परिभाषा दे रहे है जो पश्चिम एशिया और मधय एशिया की विषम कूटनीति के लिये अच्छी बात है. भारत के लिए यह मध्य एशिया, रूस और यहां तक कि यूरोप तक पहुंचने का प्रयास है. चाबहार बंदरगाह को रेल नेटवर्क से भी जोड़ने का प्रस्ताव है और इसमें भी भारत मदद करेगा. साथ ही चाबहार बंदरगाह की क्षमता भी बढ़ाई जाएगी.दिलचस्प बात यह है कि गुजरात के कांडला बंदरगाह एवं चाबहार बंदरगाह के बीच दूरी, नई दिल्ली से मुंबई के बीच की दूरी से भी कम है। इसलिए इस समझौते से भारत पहले वस्तुएं ईरान तक तेजी से पहुंचाने और फिर नए रेल एवं सड़क मार्ग के जरिए अफगानिस्तान ले जाने में मदद मिलेगी। इस बंदरगाह के जरिए ट्रांसपोर्ट लागत और समय की बचत होगी। इस परियोजना से दुनिया के अन्य देशों को भी जुड़ने में खासी मदद मिलेगी। चाबहार बंदरगाह के इस पहले चरण को शाहिद बेहेश्ती बंदरगाह के तौर पर भी जाना जाता है.दरअसल चाबहार परियोजना की शुरूआत ्पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तत्कालीन एन डी ए सरकार के कार्यकाल के दौरान 2007 मे भारत  इरान और अफगानिस्तान के बीच  त्रिपक्षीय सहयोग समझौते बतौर शुरू हुई थी लेकिन अमरीका द्वारा इरान पर लागू प्रतिबंधो के चलते इस को आगे बढाने मे बाधा आयी लेकिन 2015 मे अमरीका  द्वारा इरान के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध हटाये जाने के बाद परियोजना के ्क्रियान्वन मे तेजी आयी. इस विस्तार से इस बंदरगाह की क्षमता तीन गुना बढ़ जाएगी.इस बंदरगाह की सालाना मालवहन क्षमता 85 लाख टन होगी जो अभी 25 लाख टन है. इस विस्तार में पांच नई गोदिया हैं जिनमें से दो पर कंटेनर वाले जहाजों के लिए सुविधा दी गई है.भारत ने पिछले साल इस बंदरगाह और इससे जुड़ी रेल एवं सड़क परियोजनाओं के लिए 50 करोड़ डॉलर की सहायता के लिए प्रतिबद्धता जताई थी.
  
चाबहार पहला चरण पूरा तो हो गया, परियोजना चार चरण मे पूरी होनी है और उम्मीद है तब इस की वार्षिक कार्गो क्षमता 8 करोड़ 20  लाख टन होने की उम्मीद होगी. इस की सामरिक और आर्थिक उपयोगिता काफी कुछ इस के बाकी चरणो के पूरा होने  और इस की उपयोगिता पर निर्भर करेगी बहरहाल जहां यह परियोजना भारत के सामरिक और आर्थिक हितो के लिये खासी अहम साबित हो सकती है वही एक विशे्षज्ञ विचार यह भी है कि हो सकता है कि इरान सदैव ही भारत के भू सामरिक उद्द्द्देश्यो के साथ अपने को जोड़ कर नही रखे.इरान ने हालांकि भारत अमरीका के बीच बढती नजदीकियो पर खुले तौर पर कुछ नही कहा है लेकिन उस के कुछ कदमो के चलते भारत सतर्कता बरत रहा है मसलन  उसने भारत को तेल सौदो मे दी गई कुछ रियायते वापस ले कर झटका देने की कौशिश की और फिर रूस ने जिस तरह से इरान के खिलाफ जारी आर्थिक प्रतिबंधो पर खुल कर उस का साथ दिया उस पर भी भारत कीकूटनीतिक नजर है.इरान के बुनियादी हितो के लिये  चीन काफी  अहम  है, शायद यही वजह है कि उसने कभी भी चीन पाकिस्तान की साझी परियोजना ग्वादर बंदरगाह परियोजना का कभी खुलकर  विरोध नही कियी. ऐसे हालात मे भारत को इरान के साथ अपने संबंधो को ले कर ज्यादा सपने नही पाल लेने चाहिये और व्यवाहरिक स्थति के अनुसार आगे बढना चाहिये . इरान के राष्ट्रपति रूहानी ने  भी उद्घाटन समारोह मे प्रतिद्वंद्विता की बात को हल्का करते हुए अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि इससे आसपास के क्षेत्रीय देशों के बीच ‘संपर्क और एकता’ बढ़ेगी. उन्होंने कहा, ‘हमें सकारात्मक प्रतिस्पर्धा के लिए आगे बढ़ना चाहिए. हम क्षेत्र में अन्य बंदरगाहों का स्वागत करते हैं, हम ग्वादर के विकास का भी स्वागत करते हैं.’बहरहाल सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण  चाबहार  बंदरगाह  से इस क्षेत्र मे संपर्क बढेगा ,आर्थिक गतिविधिया बढ़ेगी, और इरान के इस क्षेत्र के स्थानीय लोगो को रोजगार भी मिलेगा लेकिन साथ ही चाबहार पश्चिम एशिया और मध्य पूर्व एशिया की राजनीति और कूटनीति के लिये भी अच्छी खबर है. साभार -लोकमत दैनिक समाचार पत्र (लेखिका वीएनआई समाचार सेवा की प्रधान संपादक है)


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