नई दिल्ली, 04 जुलाई, (वीएनआई), दिल्ली में चल रही अधिकारों की लड़ाई पर सर्वोच्च न्यायलय ने आज अपना फैसला सुनते हुए उप राज्यपाल को झटका देते हुए कहा असली ताकत मंत्रिपरिषद के पास है। गौरतलब है दिल्ली में सत्तारूढ़ केजरीवाल सरकार और दिल्ली के उप राज्यपाल के बीच पिछले तीन साल से अधिकारों को लेकर जंग जारी थी।
सर्वोच्च न्यायलय की पांच जजों के बेंच ने सर्वसम्मति से कहा कि मंत्रिपरिषद के सभी फैसलों से उप-राज्यपाल को निश्चित रूप से अवगत कराया जाना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इसमें उप-राज्यपाल की सहमति आवश्यक है। न्यायलय ने कहा कि उप-राज्यपाल को स्वतंत्र अधिकार नहीं सौंपे गए हैं। साथ ही दिल्ली सरकार और एलजी को आपसी तालमेल से काम करने की सलाह भी दी। न्यायलय ने आगे कहा कि दिल्ली में पुलिस, लॉ ऐंड ऑर्डर और लैंड के मामले में सभी अधिकारी एलजी के पास ही रहेंगे। इनसे अलग सभी मामलों में चुनी हुई सरकार कानून बना सकती है। गौरतलब है कि हाई कोर्ट ने अगस्त 2016 में दिए अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है और संविधान के अनुच्छेद 239 एए के तहत इसके लिए खास प्रावधान किए गए हैं। ऐसे में राजधानी में एलजी एडमिनिस्ट्रेटर की भूमिका में हैं।
मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.के. सीकरी, जस्टिस ए.एम. खानविलकर, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण की संवैधानिक बेंच इस मामले में फैसला सुनाया। तीन जजों ने एक फैसला पढ़ा, जबकि दो जजों चंद्रचूड़ और जस्टिस भूषण ने अपना फैसला अलग से पढ़ा। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि लोकतांत्रिक मूल्य सर्वोच्च हैं। सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होनी चाहिए। सरकार जनता के लिए उपलब्ध हो और शक्ति का समन्वय जरूरी है। केंद्र और राज्य को समन्वय के साथ काम करना होगा। संघीय ढांचे में राज्यों को स्वतंत्रता दी गई है। जनमत का महत्व है, इसे तकनीकी पहलुओं में नहीं उलझाया जा सकता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि एलजी दिल्ली के प्रशासक हैं। फैसले में यह भी कहा गया है कि उप राज्य्पाल कैबिनेट की सलाह और सहायता से काम करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा सिर्फ तीन मुद्दे लैंड, कानून और पुलिस को छोड़ दिल्ली सरकार कानून बना सकती है, लेकिन संसद के बनाए गए कानून सर्वोच्च हैं।
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