अमरकंटक, मध्य प्रदेश 27 सितंबर (शोभना जैन/वीएनआई) गहराती शाम रात मे तब्दील हो रही है.घने जंगल मे धीरें धीरें चाँदनी रात शीतल सफेदी सी बिखरा हीं है,आस पास के झरनों की कल कल आवाज मानों मौन माहौल में तिलस्म बन रही हैं.लेकिन ये सन्नाटा नही , शान्ति हैं,सम्पूर्ण शांति. पास ही निर्माणाधीन दिव्य जैन मंदिर से कुछ दूरी पर घने जंगलों मे कबीर चबूतरे पर धूनी रमाये साधु हाथ मे मंजीरे और एकतारा ले पूरी तन्मयता से नीरव वातावरण मे कबीर का भजन गा रहे हैं....
उड़ जाएगा हंस अकेला, जुग(जग) दर्शन का मेला.जैसे पात गिरे तसवर में, मिलना बहुत दुहेला.
ना जाने किधर गिरेगा, लगेया पवन का रेला. जब होवे उम्र पूरी, जब छुटेगा हुकुम हुजूरी.जम(यम) के दूत बड़े मजबूत, जम से पड़ा झमेला.
ये हैं अमरकंटक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ की सीमा पर बसा एक अनूठा पर्वतीय रमणीक स्थल,जहा प्राकृतिक सौन्द्रय हैं, अध्यात्म है. जहाँ पहाड़ों के बीच घने जंगलों के दरख़्तों से गिरे सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट रोमांचित करती है,औषधीय जड़ी बूटियों की सुगंध जहा ढहरी से हुई हैं,जहाँ घने जंगलों मे साँय साँय करती हवा माहौल मे बिखरी पौराणिक कथायें हौले हौले आपके कानों मे फुसफुसाती हैं, घने जंगलों की ऊबड़ खाबड़ पगडंडियों के किनारे पर धूनी जमाये साधु जहाँ भजन गाते सुनाई देते हैं.मंजीरों, और ढोल की थाप के बीच भजन की स्वर लहरियॉ मानों ईश्वर से साक्षातकार करती हों और नर्मदा, सोन नदी नदी जोहिला नदियों के उद्गम से निकलने वाले पानी की कलकल ध्वनी के बीच जहाँ तहाँ मंदिर के घंटों की आध्यात्मिक संगीत के सुर सुनाई देते हैं.
मध्य प्रदेश के अनूपपुर ज़िले मे समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्थान पर ही मध्य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाडि़यों का मेल होता है। विंध्य व सत्पुड़ा की पर्वत क्षृंखला के बीच मैकाल पर्वत क्षृंखला के बीचों बीच बसा अमरकंटक सिर्फ पर्वतों ,घने जंगलों , मंदिरों, गुफाओं, जल प्रपातों का पर्याय - एक रमणीक पर्यटनस्थल ही नही बल्कि एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल भी है जहाँ जीवन दाई नदियाँ हैं, जड़ी बूटियों से भरे जंगल हैं”.“ प्रकृति, अध्यात्म और जीवन का अद्भुत मेल"
मेकाल पर्वत पर चारों ओर से टीक और महुआ और अन्य घनेरे पेड़ो से घिरे अमरकंटक से ही नर्मदा और सोन नदी का उद्ग्म स्थल है। नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है। कभी पहाड चढते, कभी नदी के पास से गुज़रते, कभी घने जंगलों के रास्तों से गुजरती जीप से हम जा रहें है “यहाँ के खूबसूरत झरने, पवित्र तालाब, ऊंची पहाडि़यों और शांत वातावरण सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
तो चलते हैं अमरकंटक की यात्रा पर अपने उत्साही और "अपने अमरकंटक' से अभिभूत किशन "गाईड" के साथ उस की जीप पर ्यहा के रमणीक स्थलों की यात्रा पर.अमरकंटक का इतिहास बहुत सी परंपराओं और किवदंतियों से भरा हुआ है। किशन बता रहे हैं कि भगवान शिव की पुत्री नर्मदा जीवनदायिनी नदी रूप में यहां से बहती है। माता नर्मदा को समर्पित यहां अनेक मंदिर बने हुए हैं. एक स्थानीय सज्जन ्बतातें हैं “कालीदास के मेघदूत के बादलों का भी यही रास्ता है. वे बताते हैं "अमरकंटक दर्शन यात्रा यानि नर्मदाकुंड मंदिर , श्रीज्वालेश्वर महादेव, सर्वोदय जैन मंदिर, सोनमुदा ,कबीर चबूतरा कपिलाधारा, कलचुरी काल के मंदिर , न केवल आध्यात्मिक स्थल बल्कि प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है जी .” यात्रा का पहला पड़ाव यनी नर्मदाकुंड नर्मदा नदी का उदगम स्थल आते ही किशन की आँखों मे अद्भुत चमक आ जाती है. उतरते ही पहले अंजुली मे नर्मदा मैय्या का जल भर हाथ जोड़ नमन करता है. क्ष्र्द्धा. से हम सब भी नतमस्तक, “ अब इसके मंदिरों मे चलते हैं ,तेज़ी से कदम बढाते बताये जा रहा है ” इसके चारों ओर अनेक मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में नर्मदा और शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्रीराम जानकी मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, गुरू गोरखनाथ मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, वंगेश्वर महादेव मंदिर, दुर्गा मंदिर, शिव परिवार, सिद्धेश्वर महादेव मंदिर, श्रीराधा कृष्ण मंदिर और ग्यारह रूद्र मंदिर आदि प्रमुख हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव और उनकी पुत्री नर्मदा यहां निवास करते थे। माना जाता है कि नर्मदा उदगम की उत्पत्ति शिव की जटाओं से हुई है, इसीलिए शिव को जटाशंकर कहा जाता है।“किशन की गाड़ी का अगला डेरा है सोनमुदा सोन नदी का उदगम स्थल । यहां से घाटी और जंगल से ढ़की पहाडियों के सुंदर दृश्य देखे जा सकते हैं। किशन बताते हैं सोनमुदा नर्मदाकुंड से 1.5 किमी. की दूरी पर मैकाल पहाडि़यों के किनारे पर है। सोन नदी 100 फीट ऊंची पहाड़ी से एक झरने के रूप में यहां से गिरती है। सोन नदी की सुनहरी रेत के कारण ही इस नदी को सोन कहा जाता है जी ”।अचानक दूर एक भव्य निर्माणाधीन मंदिर पर निगाहें ठहरती हैं निर्माण के लिये जहाँ तहाँ बिखरे पत्थरों के बीच बने अस्थाई देवालय मे प्रतिष्ठित एक भव्य विशाल धातु की प्रतिमा. किशन बताता है “10 फुट ऊंची पद्मासन की मुद्रा मे प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की यह यह प्रतिमा 28000 किलो ग्राम वज़नी ह्ऐ तथा इस अष्टधातु के ही 24000 किलो ग्राम वज़नी कमल सिंहासन पर प्रतिष्ठित किया गया है अभीभूत किशन कहता है –“ मैडम जी मंदिर एक बहुत बड़े जैन तपस्वी संत आचार्य विद्या सागर जी की प्रेरणा से बन रहा है , एक बार अपने संघ के साथ विहार करते हुए यहाँ से गुज़र रहे थे , यहाँ की अद्भुत शान्ति, आध्यात्मिक वातावरण और प्राकृतिक सौन्दर्य देख कर उस पल उन्हे लगा कि यहाँ की सकारात्मक उर्जा क्षृद्धालुओं के लिये कल्याणकारी होगी उन्हे यहाँ शान्ति और ठहराव मिलेगा , बस क्या था जी... और शुरू हो गया अपनी तरह के ही निराले एक मंदिर का निर्माण , जल ही मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होती है. वह न्योता देता है "तब आप ज़रूर आना” अमरकंटक दर्शन जारी है.कितने ही बड़े साधु महात्माओं के यह आश्रम हैं.
जीप अब एक सुनसान सी अकेली सड़क की ओर मुड़ती है एक तरफ साफ सुथरी सी विशाल खूबसूरत झील दूसरी तरफ पहाड़ियों पर घने दरख़्तों के बीच का रास्ता घने जंगल की तरफ जा रहा है किशन बताता है “ जी अब हम कबीर चबूतरे की तरफ जा रहे हैं. घने जंगलों के झुरमुट में रह रह कर सूरज महाराज इसी ऑख मिचौली में भी कहीं भी जगह मिलतें ही झीर सी जगह में से भी अपनी जगह बनानें में जुटें दिखते हैं.जमे जंगल की ओर बढते शान्त और रूहानी से माहौल मे कोयल की आवाज़ गूंजती है और गूंज रही हैं पाखियों की चहचहाहट, सब कुछ अद्भुत,तिलस्म सा बुनता ...
“पर्यट्कों और कबीरपंथियों के लिए कबीर चबूतरे का बहुत महत्व है। कहतें हैं संत कबीर ने कई वर्षों तक यहा साधना की थी. जोगिया वस्त्र पहनें कुछ लोग इधर ्बैठें हैं“ घने जंगल मे कटहल, केले से लदे पेड़ , लौकी तोरई की बेलों भरी मनोरम जगह, आस पास जड़ी बूटियों की झाड़ियाँ कुटिया मे कुछ औरतें खाना पका रहीं है , मिट्टी के चूल्हे पर एल्मूनियम की पतीली मे कु्छ पक रहा है आस पास बिखरे कुछ आलू और एक सीताफल के बीच ,घूँघट का्ढे एक औरत आटा गूँथ रही है , साथ बैठी एक बुज़ुर्ग महिला बताती हैं” यहाँ कुछ मिलता नहीं साग भाजी यहीं उगा लेतें है. किशन बताते हैं“कबीर चबूतरे के ठीक नीचे एक जल कुंड है जिसके बारे मे कहा जाता है कि सुबह की किरणों के साथ ही यहाँ के जलकुं डका पानी दूध जैसा सफेद हो जाता.जिसे क्षृद्धालु चमत्कार मानते हैं उनका कहना है यह जल नही दूध होता है. वहाँ खड़े खड़े अचानक लगा - जंगल शबद कीर्तन और कबीर के भजनों से पूरा जंगल गूँज रहा है.लगता हैं कि बस अब यहीं ढहर जायें, लेकिन चलना तो होगा ही.
किशन का अगला पड़ाव कपिलाधारा है, बता रहा है” लगभग 100 फीट की ऊंचाई से गिरने वाला कपिलाधारा झरना बहुत सुंदर और लोकप्रिय है। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि कपिल मु्नि यहां रहते थे। घने जंगलों,पर्वतों और प्रकृति के सुंदर नजारे यहां से देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि कपिल मुनी ने सांख्य दर्शन की रचना इसी स्थान पर की थी। कपिलाधारा के निकट की कपिलेश्वर मंदिर भी बना हुआ है“किशन बता रहा है थोड़ा आगे जायेंगे तो देख सकते हैं “कपिलाधारा के आसपास की अनेक गुफाएं जहां साधु संत ध्यानमग्न मुद्रा में देखे जा सकते हैं। किशन की हर हर महादेव के जाप के साथ हम अब श्रीज्वालेश्वर महादेव की तरफ बढ रहे हैं
श्रीज्वालेश्वर मंदिर अमरकंटक से 8 किमी. दूर शहडोल रोड पर स्थित है। किशन कह रहा है” यह खूबसूरत मंदिर भगवान शिव का समर्पित है। यहीं से अमरकंटक की तीसरी जोहिला नदी की उत्पत्ति होती है। विन्ध्य वैभव के अनुसार भगवान शिव ने यहां स्वयं अपने हाथों से शिवलिंग स्थापित किया था और मैकाल की पहडि़यों में असंख्य शिवलिंग के रूप में बिखर गए थे। पुराणों में इस स्थान को महा रूद्र मेरू कहा गया है। माना जाता है कि भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती से साथ इस रमणीय स्थान पर निवास करते थे।
फिर आ्या धुनी पानी यानी गर्म पानी का झरना । जिसके बारे मे कहा जाता है कि यह झरना औषधीय गुणों से से भरपूर है ऐसा ही एक और झरना , दूधधारा नाम का यह झरना काफी लोकप्रिय है। ऊंचाई से गिरते इसे झरने का जल दूध के समान प्रतीत होता है इसीलिए इसे दूधधारा के नाम से जाना जाता है। कलचुरी काल के मंदिर, मां की बगिया…कितना सब कुछ देखने को, पास मे ही है देश का पहला आदिवासी विश्वविद्यालय- आदिवासियों की शिक्षा के लिये खास तौर पर बनायी गयी यूनिवर्सिटी . शाम गहरी हो रही है...पहाड़ी के नीचें बसें गाँव में स्थानीय हाट लगा है. किशोरियाँ, युवतियॉ चूड़ियॉ, बिंदियॉ, लाली, खरीद रही हैं ,कहीं गंभीर सौदेबाजीं में लगें यहा के स्थानीय लोग सब्ज़ी तो कहीं जड़ी बूटी, छोटी मोटी चीजें खरीद रहे हैं.. शहर की चकाचौँध भरे मॉल्स और विशाल बाज़ारों के बनावटीपन से कोसों दूर सारा हाट ज़मीन पर ,बर्तन, चूड़ी, बिन्दी ,पशु ,जलेबी सब कुछ खरीदार के इन्तज़ार मे ,और इन सब के लिये भोली सी सौदेबाज़ी. शाम ढलनें लगी हैं इतना सब कुछ अपनी ऑखों में समा लेनें को आतुर, निःशब्द अब ह्म सब वापस अपने बसेरें पर लौट रहे हैं. ज्यो ज्यों हम आगें बढ रहे,ढोल मजीरों के साथ साधु संतों की आध्यात्मिक स्वरों में "उड़ जायेगा हंस अकेला,जुग दर्शन का मेला" क़ा गायन माहौल को "तिलस्मी" बना रहा हैं. "तिलस्म" शब्द के मायनें शायद ये ही हैं. वी एन आई
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