नई दिल्ली,8 अप्रैल (वीएनआई) हिंदुओं का नया साल यानी नव संवत्सवर आज से शुरू हो गया । आज चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि है एवं हिंदू पंचांग के अनुसार इसी दिन से हिंदुओं के नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है। 8 अप्रैल से ही विक्रम संवत 2073 का भी प्रारंभ हो गया। विक्रम संवत का शुभारंभ गुप्त वंश के प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य के काल में हुआ था और उन्हीं के नाम पर इसका नाम विक्रम संवत पड़ा। जिस तरह अंग्रेजी का ग्रेगोरियन, चीन का चंद्र आधारित या फिर अरबों का अपना कैलेण्डर है, उसी तरह राजा विक्रमादित्य के काल में भारतीय वैज्ञानिकों ने विक्रम कैलेण्डर यानी विक्रम संवत विकसित किया था।
विक्रम संवत- विक्रम संवत को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर के पाँच प्रकार हैं सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास। विक्रम संवत में सभी का समावेश है। विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवी पूर्व में हुई। इसको शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य थे इसीलिए उनके नाम पर ही इस संवत का नाम है। इसके बाद 78 ईसवी में शक संवत का आरम्भ हुआ। विक्रम संवत को दुनिया का सबसे प्राचीन संवत्सर कहा जाता है। 12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। विक्रम कैलेंडर की इस धारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया। बाद में भारत के अन्य प्रांतों ने अपने-अपने कैलेंडर इसी के आधार पर विकसित किए।
प्राचीन संवत- विक्रम संवत को चलन में रहने वाला दुनिया का सबसे प्राचीन संवत्सर कहा जाता है। वैले विक्रम संवत से पूर्व 6676 ईसवी पूर्व से शुरू हुए प्राचीन सप्तर्षि संवत को हिंदुओं का सबसे प्राचीन संवत माना जाता है, जिसकी विधिवत शुरुआत 3076 ईसवी पूर्व हुई मानी जाती है। सप्तर्षि के बाद नंबर आता है कृष्ण के जन्म की तिथि से कृष्ण कैलेंडर का फिर कलियुग संवत का। कलियुग के प्रारंभ के साथ कलियुग संवत की 3102 ईसवी पूर्व में शुरुआत हुई थी। आज से ही कलियुगी संवत का 5118 वां वर्ष भी शुरू हो गया ।
संवत्सर के पाँच प्रकार हैं सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास। विक्रम संवत में सभी का समावेश है। मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क आदि सौर वर्ष के माह हैं। यह 365 दिनों का है। इसमें वर्ष का प्रारंभ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से माना जाता है। फिर जब मेष राशि का पृथ्वी के आकाश में भ्रमण चक्र चलता है तब चंद्रमास के चैत्र माह की शुरुआत भी हो जाती है। सूर्य का भ्रमण इस वक्त किसी अन्य राशि में हो सकता है।
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्रवर्ष के माह हैं। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है, जो चैत्र माह से शुरू होता है। चंद्र वर्ष में चंद्र की कलाओं में वृद्धि हो तो यह 13 माह का होता है। जब चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में होकर शुक्ल प्रतिपदा के दिन से बढ़ना शुरू करता है तभी से हिंदू नववर्ष की शुरुआत मानी गई है।
सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं। लगभग 27 दिनों का एक नक्षत्रमास होता है। इन्हें चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा आदि कहा जाता है। सावन वर्ष 360 दिनों का होता है। इसमें एक माह की अवधि पूरे तीस दिन की होती है।
प्रतिपदा के दिन ब्रह्मा ने की थी सृष्टि की रचना-ब्रह्म पुराण के अनुनिसार इसी तिथि से प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की शुरुआत की थी। भगवान विष्णु ने अपने दस अवतारों में से एक मत्स्य अवतार इसी दिन लिया था। चारों युगों में से सबसे पुराने और पहले युग सतयुग की शुरुआत भी इसी तारीख से हुई थी। भगवान राम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था और पूरे अयोध्या नगर में विजय पताका फहराई गई थी। इसी दिन से बासंतिक नवरात्र यानी चैती नवरात्र की शुरुआत भी मानी जाती है। इसी दिन कलश स्थापना के साथ तमाम धार्मिक एवं शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।
नवसंवत्सर का महत्व-भारत के अलग-अलग प्रांतों में नव वर्ष को अलग-अलग तिथियों के अनुसार मनाया जाता है। ये सभी महत्वपूर्ण तिथियाँ मार्च और अप्रैल के महीने में ही आती हैं। नववर्ष को विभिन्न प्रातों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। फिर भी पूरा देश चैत्र माह से ही नववर्ष की शुरुआत मानता है और इसे नव संवत्सर के रूप में जाना जाता है। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, उगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, आदि सभी की तिथियां इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है। वीएनआई