भोपाल, 2 जुलाई ( संदीप पौराणिक) मध्यप्रदेश में यह अजब संयोग है कि यहां की सरकार रविवार को छह करोड़ से ज्यादा पेड़ रोपकर इतिहास रचने को बेताब है, वहीं दूसरी ओर सरदार सरोवर की ऊंचाई बढ़ने से नर्मदा नदी के पानी के डूब में आने वाले इलाके में लाखों पेड़ों की कटाई की तैयारी चल रही है, जिससे लोगों में बेचैनी है।
राज्य सरकार नर्मदा नदी को प्रवाहमान बनाने के लिए छह करोड़ से ज्यादा पौधे नर्मदा बेसिन में लगा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगभग 148 दिन की 'नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा' निकाली और यह यात्रा 11 दिसंबर से 15 मई तक चली। इसमें उन्होंने यही संदेश दिया कि नर्मदा को बचाने के लिए पेड़ लगाने होंगे, क्योंकि यह नदी किसी ग्लेशियर से नहीं, बल्कि पेड़ों की जड़ों से रिसने वाले पानी से प्रवाहमान होती है।
मुख्यमंत्री के इसी आह्वान पर रविवार को नर्मदा बेसिन में छह करोड़ से ज्यादा पौधे रोपे गए। इसके लिए राज्य के बाहर से भी बड़े पैमाने पर पौधे मंगाए गए, क्योंकि राज्य की नर्सरी में इतने पेड़ ही नहीं हैं। इस काम में पूरी सरकारी मशीनरी को लगा दिया गया है। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री ने हर व्यक्ति से एक पेड़ लगाने का आग्रह किया है, ताकि मध्यप्रदेश का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कराया जा सके।
छह करोड़ पौधे लगेंगे, इनमें वृक्ष में कितने बदल पाएंगे, इसका अंदाजा किसी को नहीं है। पूर्व वन अधिकारी आजाद सिंह डबास कहते हैं कि इतनी तादाद में पेड़ लगेंगे, उनकी रखवाली कैसे होगी और कितने प्रतिशत पौधे जीवित रह पाएंगे, इस पर कुछ कहना संभव नहीं है। हां, इसे एक 'इवेंट' जरूर कहा जा सकता है।
वहीं दूसरी ओर नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 138 मीटर किए जाने से बड़ा हिस्सा डूब में आ रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर का कहना है कि डूब में धार, बड़वानी आदि जिलों के 192 गांव और एक नगर आ रहा है। एक गांव में औसतन साढ़े तीन हजार वृक्ष हैं, जिनकी आयु सौ वर्ष तक हो चुकी होगी। इस तरह 192 गांव में लगभग सात लाख वृक्ष हैं। वहीं चालीस हजार परिवार प्रभावित होंगे।
मेधा बताती हैं कि राज्य सरकार को 31 जुलाई तक पुनर्वास करना है, मगर जमीन पर कुछ नहीं हुआ है। लोगों को धमकाया जा रहा है, गांव खाली कराए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, वृक्षों को काटने की तैयारी भी शुरू हो गई है। इसका यहां के लोग विरोध कर रहे हैं। लोगों ने चिपको आंदोलन शुरू कर दिया है।
इंदौर के आयुक्त संजय दुबे ने आईएएनएस से कहा कि सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ने से सिर्फ 88 गांव प्रभावित हो रहे हैं। इन गांव के लोगों का पुनर्वास 31 जुलाई तक कर दिया जाएगा। आवास बन चुके हैं, सुविधाएं उपलब्ध हैं। जहां तक पेड़ की बात है, तो कुछ संख्या में डूब में आने वाले पेड़ काटे जाएंगे, जबकि अधिकांश को बचाया जाएगा, क्योंकि बांध का फुल टैंक होने पर पेड़ साल में मुश्किल से एक माह पानी में रहेंगे। जहां तक लाखों पेड़ की बात है, तो झाड़ियां भी गिनें तब भी इतने नहीं होंगे।
वे आगे कहते हैं कि गांव वाले नहीं चाहेंगे तो पेड़ नहीं काटे जाएंगे, लेकिन डूब में आने के कारण कई पेड़ सड़ जाएंगे और मछुआरों को दिक्कत होगी। नाव फंसेगी, जाल फंसेंगे।
वन विभाग के पूर्व अधिकारी डबास का कहना है कि रोपे जाने वाले पौधों के वृक्ष बनने की गारंटी तो नहीं है, मगर वृक्ष कटने से पर्यावरण को नुकसान होगा यह तय है। पेड़ को डुबोने से बेहतर काटना होगा, क्योंकि यह राष्ट्र की संपत्ति है, डूब में आने से इसका नुकसान होगा।
पर्यावरण के जानकार कहते हैं कि वृक्ष काटने से पहले पेड़ लगाने का प्रावधान है, मगर राज्य सरकार ने नियमों का सीधे उल्लंघन करते हुए एक तरफ बसे परिवारों को उजाड़ रही है तो दूसरी ओर वृक्षों को काटने की तैयारी है। यह सभी जानते हैं कि बांध की ऊंचाई बढ़ने से लाभ गुजरात को होगा और नुकसान मध्यप्रदेश को, मगर भाजपा शासित दोनों राज्यों की सरकारें 'उफ्फ' तक करने की स्थिति में नहीं हैं।
--आईएएनएस