नई दिल्ली 18 अप्रैल (वीएनआई) महरौली औलिया मस्जिद के पास शाही झरना- हौज-ए-शम्शी के संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम अंतिम पड़ाव मे है । इमारत को उसका वही पुराना स्वरूप देने के लिए उदड़ की दाल और गुड़ का उपयोग किया जा रहा है।
रिडेवलपमेंट का काम पुरातत्व विभाग द्वारा इन्टैक, दिल्ली चैप्टर द्वारा किया जा रहा है जिस पर 53 लाख रुपए का खर्च अनुमानित है.प्राप्त जानकारी के अनुसार के अनुसार बारिश के कारण काम में कुछ देरी हुई है पर इसे मई मध्य तक पूरा कर लिया जाएगा।
प्राप्त सूचना के अनुसार जीर्णोद्धार में पारंपरिक सामग्री जैसे उदड़ की दाल, गुड़, बेल (फल), चूना, शीरा, सुरखी का इस्तेमाल हो रहा है। इमारत को वास्तविक स्वरूप देने के लिए सीमेंट की जगह पुराने समय में इस्तेमाल होने वाली सामग्री प्रयोग की जा रही है ।
बताया जाता है कि झरने की इमारत पर एक से दो इंच तक सफेद पेंट था। इस पेंट को हटाने के लिए वैज्ञानिक पद्धतियों का सहारा लिया गया। इसमें काफी समय लग गया। इमारत पर फूल वालों की सैर के मेले के दौरान हर साल सफेद पेंट कर दिया जाता था। इस पेंट की मोटाई दो इंच तक पहुंच गई थी।
प्राप्त जानकारी के अनुसार महरौली का सारा इलाका अरावली पर्वत पर बसा हुआ है। यहां की जमीन पथरीली थी, कारण इस पूरे इलाके में पानी की बेहद कमी थी, इसी कमी से निजात पाने के लिए 3500 वर्ग मीटर के हौज-ए-शमशी को शम्शुद्दीन इल्तुतमिश के शासन 1211-1236 ई. के दौरान महरौली के दक्षिणी हिस्से में बनाया गया। इल्तुतमिश का शम्शी परिवार का होने के कारण इस हौज़ को यह नाम मिला ऐतिहासिक महत्व के इस तालाब के पानी को काफी पवित्र माना जाता था। कई किलोमीटर तक फैला यह तालाब एक समय यहां के लोगों की लाइफ लाइन हुआ करता था। बताया जाता है कि यह तालाब इतना विशाल था कि मशहूर घुमक्कड़ इबने बतूता ने इस तालाब को देखकर लिखा था कि उसने पूरी दुनिया की सैर की है, लेकिन इतना विशाल और भव्य तालाब कहीं नहीं देखा। उसने इसे भव्य जलस्रोत की संज्ञा दी थी। प्रसिद्ध गांधीवादी अनुपम मिश्र ने अपनी किताब \'आज भी खरे हैं तालाब\' में \'शम्शी तालाब\' का जिक्र किया है।