देवेंद्र झाजरिया ने बुलंद होंसलों से भारत को पैरालम्पिक खेलो में दिलाया दूसरा स्वर्ण

By Shobhna Jain | Posted on 14th Sep 2016 | देश
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रियो डी जनेरियो, 14 सितम्बर (वीएनआई)| पिछले महीने ब्राज़ील की मेजबानी में समाप्त हुए रियो ओलिंपिक खेलो में भारत के निराशाजनक क्रम को तोड़ते हुए पैरालम्पिक खेलो में भारतीय खिलाड़ियों का शानदार प्रदर्शन जारी है। रियो पैरालम्पिक खेलो में भारत को ऊँची कूद में मारियप्पन थांगावेलु के बाद बीते मंगलवार भारतीय एथलीट देवेंद्र झाजरिया ने पुरुषों की भाला फेंक स्पर्धा में दूसरा स्वर्ण पदक दिलाकर भारतीय तिरंगे को और ऊँचा लहर दिया है। भारत के पास अब पैरालम्पिक पदक तालिका में कुल चार पदक हैं। इसमें दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक शामिल है। 36 वर्षीय भारतीय एथलीट देवेंद्र झाजरिया ने रियो पैरालम्पिक में पुरुषों की भाला फेंक स्पर्धा में अपने 12 वर्ष पुराने 2004 एथेंस पैरालम्पिक रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 63.97 मीटर का प्रयास कर पैरालम्पिक खेलो में दूसरा स्वर्ण पदक जीता। देवेंद्र ने इससे पहले 2004 एथेंस पैरालम्पिक में 62.15 मीटर का रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता था। देवेंद्र के साथ इस स्पर्धा में भारतीय एथलीट रिंकु हुड्डा और सुंदर सिंह गुरजार ने भी हिस्सा लिया था। रिंकु को इसमें 54.39 मीटर पर पांचवा स्थान प्राप्त हुआ। वहीं सुंदर इस स्पर्धा की शुरुआत कर पाने में भी असफल रहे। विश्व रैंकिंग में देवेंद्र तीसरे स्थान पर हैं। भारत के लिए देवेंद्र ने इससे पहले साउथ कोरिया में हुए 2002 के फेसपिक खेल, एथेंस 2004 पैरालिंपिक, 2013 की वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप और में गोल्ड जीता था। देवेंद्र ने लियोन में 2013 में हुए अंतर्राष्ट्रीय पैरालम्पिक समिति (आईपीसी) के एथलेटिक्स विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक भी जीता था। उन्होंने पिछली बार 12 साल पहले पैरालम्पिक खेलों में एफ-46 स्पर्धा में हिस्सा लिया था, जबकि 2008 और 2012 पैरालम्पिक खेलों में हिस्सा नहीं ले पाए थे। देवेंद्र को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए 2004 में अर्जुन पुरस्कार और 2012 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वह यह पुरस्कार को प्राप्त करने वाले पहले पैरालम्पिक एथलीट बने। 10 जून 1981 को राजस्थान के चूरू जिले में जन्मे देवेंद्र पर आठ वर्ष की आयु में पेड़ में चढ़ने के दौरान बिजली गिर गई थी, बिजली का झटका इतना तेज था कि 11000 वॉल्ट से उनका हाथ पूरी तरह झुलस गया था, बहुत कोशिशो के बाद भी उनके बायां हाथ काटना पड़ा। लेकिन अपनी कमी को उन्होंने अपना हथियार बना लिया और अपने सपनों को पूरा करते हुए हुए उन्होंने भारत का भी नाम रोशन किया।

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