नई दिल्ली 31मार्च ( सुनील कुमार,वीएनआई)चांद तन्हा है आसमां तन्हा:
जिंदगी भर अकेलेपन के दर्द को झेलती और सच्चे प्रेम के लिये भटकती हिंदी फिल्मो की संवेदन्शील अभिनेत्री \'ट्रेजडी क्वीन\' मीना कुमारी ्के जन्म से ही शायद \'ट्रेजडी\' जुड़ गयी थी. दो बेटियो के जन्म के बाद उनके पिता पर तीसरी संतान के जन्म से पहले बेटे की चाहत इस कदर हावी हो गयी कि वे सोचने लगे अगर इस बार तीसरी भी बेटी हुई तो वह उसे घर नही लायंगे. उनके जन्म से पहले वे लगातार इस बात की दुआ कर रहे थे कि अल्लाह इस बार बेटे का मुंह दिखा दे पर बेटी होने की खबर आयी तो वह माथा पकड़ कर बैठ गये, उन्होने तय किया कि वह बच्ची को घर नहीं ले जायेंगे और वह बच्ची को अनाथालय छोड़ आये लेकिन बाद में माँ के आंसुओं ने बच्ची को अनाथालय से घर लाने के लिये उन्हें मजबूर कर दिया, बच्ची का चांद सा माथा देखकर उसकी मां ने उसका नाम रखा - माहजबीं.और शुरू हुई मीना कुमारी की जिंदगी की अजीब दास्तां .उथल पुथल भरी एक जिंदगी, जिसकी मंजिल ताउम्र पता ही नही चली . मीना (असली नाम माहजबीं बानो ) का जन्म 1 दिस्म्बर 1932 को मुंबई में हुआ, उनके पिता अली बक्श भी फिल्मों में और पारसी रंगमंच के कलाकार थे उनकी माँ प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो), भी एक नृत्यांगना थी, घर के माली हालात क्योंकि ठीक नहीं थे इस लिए 7 बरस की उम्र में ही मीना कुमारी ने फिल्मों में अभिनय करना शुरू कर दिया और उनकी पहली फिल्म थी प्रकाश पिक्चर के बैनर तले बनी फिल्म \'लेदर फेस\' इसी मे उनका उनका नाम रखा गया बेबी मीना। इसके बाद मीना ने बच्चों का खेल में बतौर अभिनेत्री काम किया और अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों के दिलों को छू लेने वाली महान अदाकारा मीना कुमारी ्बेबी मीना से बन गयी \'ट्रेजडी क्वीन\' मीना कुमारी
लगभग 30 वर्षों के अपने करियर में उन्होंने करीब 90 से ज्यादा फ़िल्मों में काम किया, जिनमें अधिकांश क्लासिक मानी गईं।वर्ष 1952 मे मीना कुमारी ने फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही के साथ शादी कर ली। इसी साल मीना कुमारी को विजय भटृ के निर्देशन में ही बैजू बावरा में काम करने का मौका मिला।, साल 1953 में फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला इस पुरस्कार को जीतने वाली मीना कुमारी पहली अभिनेत्री थी इसके अलावा मीना कुमारी को उनके बेहतरीन अभिनय के लिए चार बार फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार से नवाज़ा गया. इनमें फिल्म \'बैजू बावरा\', \'परिणीता\', \'साहिब बीबी और गुलाम\' और \'काजल\' शामिल हैं. इनके अलावा मीना के फ़िल्मी सफर की फिल्मों में \'आजाद\', \'एक हीं रास्ता\', \'यहूदी\', \'दिल अपना और प्रीत पराई\', \'कोहीनूर\', \'दिल एक मंदिर\', \'चित्रलेखा\', \'फूल और पत्थर\', \'बहू बेगम\', \'शारदा\', \'बंदिश\', \'भींगी रात\', \'जवाब\', \'दुश्मन\' को कौन भूल सकता है ?
1962 मीना कुमारी के सिने कैरियर का अहम पड़ाव साबित हुआ . इस साल उनकी ‘आरती’, ‘मैं चुप रहूंगी’ और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ जैसी फिल्में प्रदर्शित हुईं जिनमे उनके काम को बहुत सराहा गया. इन फिल्मों के बाद उनका कैरियर आगे ही बढता रहा.कामयाबी उन्के कदम छू रही थी.क्लासिक फ़िल्म \'साहिब, बीवी और गुलाम\' (1962) में मीना कुमारी ने छोटी बहू का रोल किया था और इसी अकेलेपन को दूर करने के लिये इस फिल्म के उस चरित्र की ही भांति शराब की आदी हो गईं। करियर की ऊंचाई पर पहुंचने के साथ ही मीना कुमारी अकेली होती जा रही थी अपना गम दूर करने के लिए बहुत ज़्यादा शराब पीने लगीं।
1964 मे अचानक मीना कुमारी और कमाल अमरोही मे मनमुटाव पैदा हो गया. इसके बाद मीना कुमारी और कमाल अमरोही अलग-अलग रहने लगे, कमाल अमरोही से अलग होने के बावजूद मीना कुमारी ने कमाल अमरोही की फिल्म पाकीजा की शूटिंग जारी रखी क्योंकि उनका मानना था कि \'पाकीज़ा\' जैसी फिल्मों में काम करने का मौका बार-बार नहीं मिल पाता है. यह एक सुपरहिट फिल्म रही थी. फिल्म \'पाकीज़ा\' के निर्माण में लगभग 14 साल लगे .
अकेलेपन का दर्द उनके अभिनय मे था,उनकी रचनाओं में समाया था.अपने आपको पूरी तरह शराब में डुबोने से उनका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया और वह लिवर सिरोसिस बीमारी की शिकार हो कर 31 मार्च 1972 को इस दुनियां को अलविदा कहकर चली गई...
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा,
हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी
दोनों चलते रहे कहां तन्हा,
जलती-बुझती सी रोशनी के परे
सिमटा-सिमटा सा एक मकां तन्हा,
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा.... वी एन आई